फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
दुनिया बदलना है तो अपनी दृष्टि बदलें
Aug 1, 2021
दुनिया बदलना है तो अपनी दृष्टि बदलें!
धन्ना सेठ अपने इलाक़े के नगर सेठ कहलाते थे। वैसे तो उनका नाम रामनरेश था लेकिन अटूट सम्पत्ति के मालिक होने की वजह से वह धन्ना सेठ कहलाने लगे। वे काफ़ी भले लेकिन सनकी स्वभाव के व्यक्ति थे। धन्ना सेठ स्वयं को सबसे बुद्धिमान मानते थे और एक बार जो दिमाग़ में आ जाए उसे पूरा करने में भिड़ जाते थे। अपनी इसी आदत या सनक की वजह से वे कई बार खुद का बड़ा नुक़सान कर लिया करते थे।
एक बार धन्ना सेठ को आँखों की बीमारी हो गई। अपनी आदतानुसार पहले तो वे अपने ही तरीक़े से उसे ठीक करने का प्रयास करने लगे, लेकिन बीमारी ठीक होने के स्थान पर और ज़्यादा बढ़ गई। अब धन्ना सेठ की आँखों में काफ़ी दर्द रहने लगा। उन्होंने कई डॉक्टरों से इलाज करवाया लेकिन उन्हें उससे कोई फ़ायदा नहीं मिला। थक़ कर सेठ ने एक बुद्धिमान साधु से इलाज करवाने का निर्णय लिया, जो जटिल बीमारियों का इलाज करने के लिए प्रसिद्ध थे। साधु ने बहुत ध्यान से उस आदमी की आँखों का परीक्षण करा और धन्ना सेठ को इसे ठीक करने के लिए बड़ा ही अजीबोगरीब उपाय बताया।
साधु ने धन्ना सेठ से कहा कि उसे अगले एक माह तक सिर्फ़ हरे रंग को ही देखना है। सिर्फ़ यही तरीक़ा तुम्हें इस असहनीय दर्द से छुटकारा दिलाएगा। मरता क्या न करता, वह तो इस असहनीय दर्द से छुटकारा पाने के लिए बेताब था, धन्ना सेठ तुरंत इस उपाय के लिए राज़ी हो गया।
धन्ना सेठ ने अगले दिन अपने शहर के सभी पेंटरों को नौकरी पर रख लिया और हज़ारों लीटर हरा रंग ख़रीद लिया। हरा रंग आने के पश्चात धन्ना सेठ ने पेंटरों को निर्देश दिया कि वे हर उस वस्तु रंग दे जो उसकी आँखों के सामने आ सकती है। बस फिर क्या था धन्ना सेठ जहां भी जाते, उनसे पहले पेंटर वहाँ पहुँच जाते और हर सामान को हरा रंगने लगते।
तय कार्यक्रम के अनुसार ठीक एक माह बाद साधु धन्ना सेठ की आँखों का पुनः परीक्षण करने के लिए आए। साधु देखना चाहते थे कि धन्ना सेठ की तबियत में कितना सुधार हुआ है। जैसे ही साधु धन्ना सेठ के कमरे में उनसे मिलने के लिए जाने लगे वहाँ मौजूद एक पेंटर ने उनके ऊपर हरे रंग की बाल्टी उँडेल दी। साधु को कुछ समझ ही नहीं आया कि चल क्या रहा है? फिर उनका ध्यान गलियारे, कमरे और फ़र्निचर आदि सभी सामान पर गया, सभी हरे रंग से पुते हुए थे। धन्ना सेठ के पास पहुंचते ही साधु ने सेठ से उनका हाल पूछने के स्थान पर हर किसी चीज़ को हरा रंगने का कारण पूछा। धन्ना सेठ, साधु को प्रणाम करते हुए बोले, ‘महाराज! मैं तो सिर्फ़ आपकी सलाह, आपकी आज्ञा का पालन कर रहा था।’
इतना सुनते ही साधु महाराज खिलखिलाकर हंसते हुए बोले, ‘वत्स, यह कार्य तुम मात्र कुछ सौ रुपए खर्च कर एक हरा चश्मा लेकर भी कर सकते थे। साधु महाराज की बात सुनते ही धन्ना सेठ को समझ नहीं आ रहा था कि बोलें तो बोलें क्या?
इस कहानी को यहीं छोड़ते हैं दोस्तों और इससे ज़िंदगी का आज का फ़लसफ़ा सीखने का प्रयास करते हैं। अकसर जीवन में हम भी तो धन्ना सेठ की भाँति व्यवहार करते हैं। जो हमारी छोटी सी समझ ने हमें समझा दिया उसे ही परम या अंतिम सत्य मान लेते हैं और जीवन में अमूल्य चीज़ पाने का मौक़ा गँवा देते हैं। जी हाँ दोस्तों, मैंने अमूल्य चीज़ जान बूझकर कहा है। जितना ज्ञान आपको होता है आप अपनी समझ से उतना ही सोच पाते हैं। जबकि जब आप कुछ भी नया सुनते हैं तब ज़्यादातर इस बात की सम्भावना रहती है कि आप कुछ नया सीख सकते हैं, और ज़्यादा ज्ञानी बन सकते हैं।
वैसे दोस्तों धन्ना सेठ की भाँति सोचने और कार्य करने से हम कई सारे नुक़सान करते हैं। जैसे
पहला - आप अपनी क्षमता का बहुत थोड़ा सा ही हिस्सा जागृत कर पाते हैं। अर्थात् अपनी पूर्ण क्षमता का कभी एहसास ही नहीं कर पाते हैं और जब एहसास ही नहीं है तो उसे प्रयोग करना तो बहुत दूर की बात है। जब उपयोग ही नहीं करा तो उसका फल मिलना तो असम्भव ही है।
दूसरा - आप अपने जीवन का बड़ा हिस्सा याने बहुत सारा समय व्यर्थ बातों में गँवा देते हैं।
तीसरा - आप ईश्वर द्वारा दिए गए, आशीर्वाद रूपी संसाधनों को गँवा देते हैं।
इसके स्थान पर दोस्तों अगर आप अपनी पूर्ण क्षमता का प्रयोग करना चाहते हैं, जीवन को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको अपने नज़रिए को बदलना होगा। याद रखिएगा अपने नज़रिए को क़ायम रखते हुए पूरी दुनिया को हरा रंगना असम्भव ही है। नज़रिया बदलने के बाद दूसरा कार्य जो आपके जीवन को बेहतर बनाता है, वह है, ‘हमेशा सीखने के लिए तैयार रहना।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर