top of page

फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

दें तिलांजलि अपने अहंकार को

दें तिलांजलि अपने अहंकार को
global_herald_logo_1.png

Sep 25, 2021

दें तिलांजलि अपने अहंकार को !!!


हाल ही में एक सज्जन का फ़ोन आया और वे बोले, ‘सर, मुझे आपका नम्बर आपके गुरु ने दिया है। मैंने अपने बेटे की काउन्सलिंग के लिए उनसे सम्पर्क करा था। उन्होंने मुझे बताया कि आपका भोपाल आना होता रहता है। आप मेरे बेटे की काउन्सलिंग कब कर देंगे?’ वैसे उनका ‘कब कर देंगे’ पूछना मुझे थोड़ा अटपटा लगा, फिर भी मैंने उन्हें अपने आगामी प्रोग्राम से अवगत करवा दिया तो वे बोले, ‘सर, क्या आपका प्रोग्राम एक दिन आगे बढ़ सकता है?’ मैंने हैरानी के साथ इसका कारण पूछा तो वे बोले, ‘सर, असल में उस दिन मुझे फलाने नेता से मिलने जाना है।’ उनका जवाब सुन मैं हैरान था और सोच रहा था कि असल ज़रूरत किस की है?


ख़ैर बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, बातों ही बातों में उन्होंने मुझसे भोपाल आने का कारण पूछा। कारण बताते ही उन्होंने मेरे क्लाइंट के साथ अपने प्रगाढ़ रिश्तों के बारे में बताना शुरू कर दिया। अगले ही दिन मैंने ‘गलती’ से अपने दैनिक कॉलम ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है’ की प्रति उन्हें व्हाट्सएप कर दी। मेरा मैसेज मिलते ही उन्होंने ‘ग्लोबल हेराल्ड परिवार’ से अपनी नज़दीकियों के बारे में बताना शुरू कर दिया। 


इस पूरे घटनाक्रम में मेरे मन में सिर्फ़ एक प्रश्न चल रहा था, ‘जो वे कर रहे थे क्या वह मायने रखता है?’ अर्थात् उनके सम्बन्ध, उनकी प्रतिष्ठा या समाज में उनका प्रभुत्व आदि का काउन्सलिंग के मेरे कार्य या उसकी गुणवत्ता से कुछ लेना देना है? वो कोई भी हों अगर मुझे मेरे ब्रांड और उससे ज़्यादा मेरी अपनी मानसिक शांति की चिंता है, तो मैं अपना सर्वश्रेष्ठ दूँगा ही और दूसरा शुरुआती बातचीत के लिए उन्होंने मेरे गुरु का संदर्भ मुझे दे ही दिया है और उससे बड़ा कोई और परिचय हो नहीं सकता।


इस घटना ने मुझे कुछ दिन पूर्व पढ़ी ‘हाथी और मक्खी ’ की कहानी याद दिला दी, जो इस प्रकार थी। 

एक दिन जंगल में एक हाथी अपनी मदमस्त चाल से चलता हुआ जा रहा था। अचानक कहीं से एक मक्खी उड़ती हुई आयी और उसकी पीठ पर बैठते हुए भिनभिनाते हुए बोली, ‘हाथी भाई, मैं तुम्हारे ऊपर बैठ के कुछ दूर चल रही हूँ, कोई तकलीफ़ हो तो बता देना।’ उसकी कही बात हाथी सुन नहीं पाया लेकिन मक्खी ने इसे उसकी मौन स्वीकृति माना और उसकी पीठ पर बैठ गई। 


कुछ दूर चलने पर उसने फिर हाथी से कहा, ‘मेरे वजन से तुम्हें तकलीफ़ हो रही हो तो मुझे बोल देना।’ हाथी को इस बार भी उसकी आवाज़ सुनाई नहीं दी और ना ही उसे मक्खी की मौजूदगी का एहसास था। पर मक्खी बड़े मज़े से इठलाते हुए उसके ऊपर बैठ के सैर कर रही थी। चलते-चलते हाथी एक नदी पर बने पुल पर पहुँच गया। नदी और पुल को देखते ही मक्खी फिर बोली, ‘हाथी भाई, पुल मज़बूत तो है ना? कहीं हम दोनों के वजन से यह टूट तो नहीं जाएगा? अगर तुम्हें ज़रा भी संशय हो तो मुझे बोल देना, मैं उड़ कर भी नदी पार कर सकती हूँ।’


इस बार हाथी को मक्खी की भिनभिनाहट थोड़ी समझ आयी पर उसने उसे नज़र अन्दाज़ कर दिया और मज़े से अपनी ही धुन में मगन चलता रहा। नदी पार करते ही मक्खी ने हाथी से विदा लेने का निर्णय लिया, शायद वह अपने गंतव्य तक पहुँच गई थी। इस बार फिर वह हाथी से भिनभिनाते हुए बोली, ‘आपके साथ यात्रा बड़ी सुखद रही, मदद करने व मित्र बनाने के लिए शुक्रिया। कभी भी कोई काम हो तो मुझसे कहना, चलो अब मैं जाती हूँ।’ 


इस बार मक्खी हाथी के कान के पास भिनभिनाते हुए बोल रही थी इसलिए हाथी ने पूरी बात सुन ली। वह बोला, ‘तू है कौन? तू कब आई, कब मेरी पीठ पर बैठी और कब तू मेरे शरीर से उड़ गई मुझे पता भी नहीं।’ हाथी की तेज़ चिंघाड़ भरी आवाज़ सुन मक्खी घबरा गई और उड़ गई।


दोस्तों, इस दुनिया में हमारी उपस्थिति इस मक्खी की ही भाँति है। बल्कि हाथी और मक्खी के अनुपात की तुलना में इस ब्रह्मांड में हमारी मौजूदगी और भी कई गुना छोटी है। इतने बड़े ब्रह्मांड में हमारे रहने, ना रहने से क्या फ़र्क़ पड़ेगा? ना तो हमारे होने से पहले किसी का काम रुका था, ना ही हमारे जाने से किसी का काम रुकेगा। लेकिन उसके बाद भी हम ‘मेरा ये’, ‘मेरा वो’ का शोर मचाते हैं। आख़िर ये शोरगुल किस लिए है? शायद अहंकार वश अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए। 


शायद इसीलिए तो हम दूसरों को दिखाने के लिए अच्छे वस्त्र पहनते हैं, नहा-धोकर सज-संवरकर घर से निकलते हैं। बड़ी गाड़ी, बड़ा घर लेते हैं, धन एकत्र करते हैं। इन सभी के माध्यम से हम लोगों को सिर्फ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ यह एहसास करवाना चाहते हैं कि हम साधारण नहीं, विशिष्ट हैं।  


जी हाँ दोस्तों, अकसर हम ऐसे झूठे अभिमान का शिकार हो जाते हैं, जिससे किसी भी हाल में हमारे जीवन की गुणवत्ता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अपितु लम्बे समय में हम अनावश्यक ही खुद के ऊपर दबाव बनाने लगते हैं। आइए आज से निर्णय लेते हैं और इस झूठे अहंकार को तिलांजलि देकर, सब का सम्मान करना शुरू करते हैं। याद रखिएगा, जब तक हम सब में आत्मा के रूप में परमात्मा का अंश है तब ही तक हमारी क़ीमत है अन्यथा मिट्टी से ज़्यादा क़ीमत नहीं है हमारी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

1_edited_edited.jpg

Be the Best Student

Build rock solid attitude with other life skills.

05/09/21 - 11/09/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)

Duration - 14hrs (120m per day)

Investment -  Rs. 2500/-

DSC_5320_edited.jpg

MBA

( Maximize Business Achievement )

in 5 Days

30/08/21 - 03/09/21

Free Introductory briefing session

Batch 1 - For all adults

Duration - 7.5hrs (90m per day)

Investment - Rs. 7500/-

041_edited.jpg

Goal Setting

A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.

01/10/21 - 04/10/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)

Duration - 10hrs (60m per day)

Investment - Rs. 1300/-

bottom of page