फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
देखें कहीं सजा गलती से बड़ी ना हो जाए
Dec 11, 2021
देखें कहीं सजा गलती से बड़ी ना हो जाए
हाल ही में कंसलटेंसी के अपने कार्य की वजह से एक विद्यालय जाना हुआ। विद्यालय में दाखिल होते ही बच्चों को मैदान पर खेलते, मस्ती करते देख सुखद अनुभूति हुई। ऐसा लग रहा था बचपन कोरोना से आज़ाद होकर चैन की साँस ले रहा है। एक बच्चे को मैदान के कोने में अकेला खड़ा देख मेरी यह ख़ुशी आश्चर्य में बदल गई। मैं तुरंत उस बच्चे के पास गया और उससे बात करने लगा। बात करने पर मुझे एहसास हुआ कि वह बच्चा, दोस्तों द्वारा सोशल बॉयकॉट की सजा एक ऐसी गलती के लिए भुगत रहा है, जो उसने करी ही नहीं थी।
मैंने उसी वक्त बच्चों को कहानी सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार थी-
राजा राघवेंद्र के पास इंसानी भाषा में बात करने वाला एक बहुत सुंदर और बुद्धिमान तोता था। राजा के मेहमान, राज्य के लोग उस तोते की मीठी आवाज़ में बुद्धिमत्ता पूर्ण बातें सुनकर अचंभित रह ज़ाया करते थे। राजा भी अपने तोते को बहुत प्यार करता था और उसका ध्यान रखा करता था।
एक दिन तोते ने महाराजा को प्रणाम करते हुए कुछ दिनों के लिए घर जाने की इजाज़त माँगते हुए कहा, ‘राजन, आपके पास अच्छे से रहते हुए मुझे वर्षों हो गए और इतने समय में मैं एक बार भी अपने परिवार से मिलने के लिए नहीं गया हूँ। मेरे घर वाले मेरे बारे में चिंतित होंगे और मुझे भी उनकी बहुत याद आ रही है। मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि मुझे एक सप्ताह के लिए आज़ाद कर दें, जिससे मैं अपने परिवार से मिलकर आ सकूँ।
तोते की बात सुन सबने राजा को समझाने का प्रयास किया कि आज़ाद करते ही यह तोता हमेशा के लिए उड़ जाएगा। हमें इसकी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए। लेकिन राजा को तोते की वफ़ादारी पर पूरा यक़ीन था उन्होंने तुरंत उसका निवेदन मानकर एक सप्ताह के लिए आज़ाद कर दिया।
आज़ाद होते ही तोता जंगल की ओर उड़ गया और अपने माता-पिता, भाई-बहनों के पास पहुँच गया। हंसी-ख़ुशी कब पाँच दिन गुजर गए पता ही नहीं चला। छठे दिन उसने अपने परिवार से आज्ञा ली और वापस राजमहल की ओर उड़ चला। उड़ते-उड़ते रास्ते में तोते के मन में विचार आया कि मुझे महाराज के लिए कुछ-ना-कुछ लेकर जाना चाहिए। अगर वे मुझ पर विश्वास ही नहीं करते तो मैं कभी भी अपने परिवार से मिल नहीं पाता।
विचार आते ही तोते ने रास्ता बदल जंगल की ओर उड़ना शुरू कर दिया। असल में वह राजा के लिए उपहार स्वरूप अमर फल ले जाना चाहता था। जिसे खाते ही जीव अमर हो जाता था। जंगल पहुँचते ही उसने सबसे पहले एक अच्छा सा अमर फल तोड़ा और उसे अपने पास ही पेड़ पर रख रात गुज़ारने के उद्देश्य से सो गया। रात को एक साँप की नज़र उस फल पर पड़ी उसने तुरंत अमर होने की चाह में उस फल को डस लिया। साँप के डँसते ही वह फल विषाक्त हो गया। तोते को इस बात का पता ही नहीं चला और वह विषाक्त फल लेकर ही राजा के पास जाने के लिए उड़ गया।
तय दिन, तय समय से पूर्व तोते को अपने सामने देख महाराज प्रसन्न थे उन्होंने गर्व भारी निगाहों से पहले तोते को और फिर अपने मंत्रियों की ओर इस तरह देखा मानो कह रहे हों, ‘देखो तुम सब ग़लत सोच रहे थे। तोता जैसा मैंने सोचा उससे ज़्यादा ईमानदार था।’ तोते ने भी महाराज को देखते ही प्रणाम करा और अपने साथ लाया फल उसको देते हुए बोला, ‘महाराज रास्ते में पड़ने वाले जंगलों के बीच पहाड़ी के ऊपर स्थित एक विशेष पेड़ से मैं आपके लिए औषधीय गुणों से भरपूर यह अमृत फल लाया हूँ। कृपया इसे ग्रहण करें।
राजा तोते से लेकर उस फल को खाने वाले ही थे कि मंत्री ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘महाराज मैंने तो कभी ऐसे किसी फल के बारे में नहीं सुना। मेरी सलाह मानिए और खाने से पहले इस फल को जाँच लीजिए। राजा को मंत्री का विचार अच्छा लगा, उन्होंने उस फल का एक टुकड़ा काटा और उसे अपने पालतू कुत्ते को दे दिया।
फल खाते ही कुत्ता ज़हर की वजह से तड़प-तड़प कर मर गया। राजा बहुत क्रोधित हुआ और उसने बिना कुछ सोचे-समझे या तोते से इसकी वजह पूछे अपनी तलवार से तोते के सिर को धड़ से अलग कर दिया और फल के बचे वे टुकड़े को बाहर खुली ज़मीन पर फेंक दिया। कुछ सालों में जहां राजा ने फल फेंका था वहाँ अमर फल का पेड़ उग आया और उस पर फल लगने लगे। लेकिन तोते वाली बात सभी को पता थी इसलिए डर के मारे कोई भी इस फल को नहीं खाया करता था। एक दिन, बीमारियों से परेशान एक बूढ़े आदमी ने जान देने के उद्देश्य से फल तोड़कर खा लिया। लेकिन यह क्या! फल खाते ही उस बूढ़े व्यक्ति की सभी बीमारियाँ खत्म हो गई और वह एकदम से युवा हो गया। सभी लोग फल का कमाल देख हैरान थे और उन्हें पछतावा हो रहा था कि उन्होंने आज तक इस फल का लाभ क्यों नहीं उठाया। राजा को भी तोते को मृत्युदंड देने पर पछतावा हो रहा था।
कहानी पूरी होते ही मैंने बच्चों से पूछा क्या राजा को तोते को सजा देना सही था? सभी बच्चों ने एक साथ ना करा। उनके ना कहते ही मैंने बच्चों से कहा कई बार हम भी इसी तरह गलती करते हैं और बिना सच्चाई जाने अपने लोगों से बातचीत करना, उनके साथ रहना बंद कर देते हैं और बिना गलती के ही उन्हें अपने से दूर कर अलग रहने के लिए मजबूर करते हैं।
दोस्तों, मेरी बात बच्चे तो समझ गए थे आइए आज से हम भी निर्णय लेते हैं कि किसी को भी अपराधी ठहराने या सजा देने से पहले यह सुनिश्चित करेंगे कि उसने गलती की भी है या नहीं। कहीं भूलवश किसी अपने, किसी निर्दोष को सजा देने तो नहीं जा रहे हैं अन्यथा बाद में पछताना पड़ेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर