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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

धारणा के आधार पर धारणा ना बनाएँ

धारणा के आधार पर धारणा ना बनाएँ
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Dec 19, 2021

धारणा के आधार पर धारणा ना बनाएँ !!!


आइए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत हम एक ऐसी कहानी से करते हैं जिसे आपने अपने जीवन में कई बार सुना होगा। लेकिन यक़ीन मानिएगा अगर हम उस कहानी पर बारीकी से मनन करें तो यह हमारा लोगों के प्रति दृष्टिकोण बदल सकती है। तो चलिए शुरू करते हैं-


दूसरी कक्षा को गणित सिखा रही शिक्षिका ने कक्षा के सबसे मेधावी छात्र ब्रायन को गणित का एक प्रश्न पूछते हुए कहा, ‘ब्रायन, अगर मैं तुम्हें एक सेब और एक सेब और एक सेब दूँ, तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब होंगे?’ कुछ पल सोचने के बाद बोला ब्रायन बोला, ‘चार सेब मैडम!’ शिक्षिका ब्रायन से सही उत्तर तीन की उम्मीद कर रही थी, इसलिए ग़लत उत्तर सुन वो थोड़ी निराश हो गयी। उन्हें लगा शायद ब्रायन ने ठीक से नहीं सुना है। उन्होंने अपनी बात दोहराते हुए कहा, 'ब्रायन, ध्यान से सुनो, मैंने तुमसे बहुत ही सरल प्रश्न पूछा है, अगर तुम ध्यान से इसे हल करोगे तो सही उत्तर दे पाओगे। चलो अब बताओ, अगर मैं तुम्हें एक सेब और एक सेब और एक सेब दूँ, तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब होंगे?’


ब्रायन को शिक्षक के चेहरे के भाव कुछ अजीब से लगे, इस बार उसने ज़्यादा सजग रहते हुए अपनी उँगलियों पर गणना करी और बोला, ‘चार सेब मैडम!’ उसे आशा थी की शायद इस बार मैडम उसके सही उत्तर से खुश हो जाएँगी लेकिन शिक्षिका के चेहरे पर उदासी और मायूसी देख वह भौचक्का रह गया। 


दूसरी ओर एक बार फिर ग़लत उत्तर पा शिक्षिका हैरान-परेशान थी उसे लगा ब्रायन को शायद सेब पसंद नहीं है इसलिए शायद वह उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा है। इसलिए एक बार इसी प्रश्न को उसके पसंद के फल अमरूद से जोड़ कर देखते हैं। शिक्षिका ने अब ब्रायन से फल बदलकर वही प्रश्न पूछा, ‘ब्रायन अगर मैं तुम्हें एक अमरूद, फिर एक अमरूद और फिर एक और अमरूद दूँ तो अब तुम्हारे पास कितने अमरूद होंगे। ब्रायन ने एक बार फिर उँगलियों पर गणना की और बोला, ‘मैडम मेरे पास तीन अमरूद होंगे।’ 


ब्रायन के मुँह से सही जवाब सुन शिक्षिका उत्साहित हो गई। उसे लगा मेरा आइडिया काम कर गया है। शिक्षिका ने इस सफलता पर पहले तो खुद की पीठ थपथपाई और फिर ब्रायन की तारीफ करते हुए बोली, ‘बहुत ख़ूब ब्रायन, आख़िरकार तुमने जोड़ना सीखकर सही उत्तर दे ही दिया। चलो अब एक बार पहले प्रश्न को फिर से हल करके देख लेते हैं। मैंने अगर तुम्हें एक सेब दिया, फिर एक सेब और फिर एक और सेब दिया तो बताओ तुम्हारे पास कितने सेब हैं।’ ब्रायन ने बिना समय गँवाए कहा, ‘कुल चार सेब!’


ब्रायन से ग़लत जवाब सुन शिक्षिका थोड़ा सा चिढ़ गई और कठोर होते हुए चिड़चिड़ी आवाज़ में बोली, ‘क्या तुम मुझे समझा सकते हो की चार सेब कैसे हुए?’ मैडम की बदली हुई आवाज़ सुन ब्रायन थोड़ा सा डर गया लेकिन फिर भी खुद को सम्भालते हुए बोला, ‘आपने मुझे तीन सेब दिए और एक सेब मेरे पास पहले से ही है इसलिए मैडम मेरे पास कुल चार सेब हो गए।’ ब्रायन का जवाब सुन अब शिक्षिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें क्यूँकि ब्रायन सही होते हुए भी सिर्फ़ उनकी बनाई हुई धारणा के आधार पर ग़लत था।


जी हाँ दोस्तों, उस शिक्षिका ही तरह अक्सर हम भी यही गलती अपने जीवन में कई बार करते हैं और धारणा के आधार पर धारणा बनाकर लोगों को, उनकी क्षमताओं को तोलना शुरू कर देते हैं। जब भी कोई हमारी अपेक्षा से भिन्न किसी सवाल का जवाब देता है, हम तुरंत उसे ग़लत ठहरा देते हैं। जबकि यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि सामने वाला ग़लत हो। अगर आप बेहतरीन संवाद करना सीखना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको दूसरे के दृष्टिकोण के साथ साथ हर सम्भावना के आधार पर चीजों अथवा परिस्थितियों को देखना सीखना होगा। 


दोस्तों जब भी आप अपने दृष्टिकोण के आधार पर कोई समाधान, निर्णय अथवा कार्य किसी पर थोपने का प्रयास करते हैं उस काम के ग़लत होने की सम्भावना कई गुना बढ़ जाती है और फिर आप बाद में सर पकड़ कर सोचते हैं कि आख़िर गलती कहाँ हो गई। तो चलिए दोस्तों, जीवन को आसान बनाने और दूसरों से मनचाहे परिणाम पाने के लिए एक निर्णय लेते हैं, ‘आज से जब भी हमें अपनी आशा के विपरीत दूसरों से कुछ भी सुनने को मिलेगा तो हम उसे ग़लत ठहराने, अपनी बात थोपने से पहले उसके दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे और उससे पूछेंगे, ‘क्या आप विस्तार से इसे समझा सकते हैं? जिससे मैं आपके नज़रिए को अच्छे से समझ पाऊँ।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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