फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
धारणा नहीं, समग्र नज़रिए से करें कार्य


Nov 11, 2021
धारणा नहीं, समग्र नज़रिए से करें कार्य!!!
कल एक विद्यालय में कुछ बच्चों से मिलने, चर्चा करने का मौक़ा मिला। चर्चा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को शिक्षा, भविष्य को लेकर सही मार्गदर्शन देना था। बच्चों से बात शुरू करने के पहले मैंने शिक्षकों से उनके बारे में जानकारी लेने का निर्णय लिया। शिक्षकों के साथ हुई बातचीत में मैंने महसूस किया कि उन्होंने ज़्यादातर बच्चों, उनके परिवार, रिश्तों आदि के बारे में कुछ-ना-कुछ धारणा बना रखी थी।
मैंने बुनियादी जानकारी के साथ बच्चों से बात शुरू करी तो पाया कि बच्चों ने भी विभिन्न विषयों, क्षेत्र, शिक्षक और विद्यालय यहाँ तक मुझसे मिलने के विषय में भी कुछ-ना-कुछ धारणा बना रखी थी। वैसे दोस्तों बच्चों, शिक्षक या विद्यालय को ही क्यों दोष दिया जाए, हम में से ज़्यादातर लोग किसी ना किसी रूप में, किसी ना किसी व्यक्ति, परिस्थिति, देश यहाँ तक कि धर्मों के बारे में भी धारणा बनाकर रखते हैं। लेकिन याद रखिएगा दोस्तों, धारणाएँ व्यक्तिगत सोच होती हैं, इसलिए यह गलत भी हो सकती हैं और इसीलिए कहते हैं कि धारणाओं के साथ जीवन में कुछ भी बहुत बड़ा कर पाना नामुमकिन ही है। लेकिन अधूरी जानकारी या ज्ञान के आधार पर धारणा बनाने के स्थान पर जब आप तटस्थ रहते हुए गहराई से पूरी बात समझ कर कार्य करते हैं तब आप अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं। इसे मैं आपको एक बहुत ही प्यारी सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ -
बात लगभग 5 दशक पुरानी है, एक दिन चेन्नई के समुद्र तट पर बैठे हुए एक सज्जन धोती और शॉल पहने भागवत गीता का पाठ कर रहे थे। तभी एक युवा वहाँ पहुँचा और उन पर कटाक्ष करता हुआ बोला, ‘महोदय, जिस अंतरिक्ष युग में लोग चाँद पर पहुँच गए हैं उस युग में आप आज भी ऐसी किताबें पढ़ते हैं? इस विज्ञान के युग में आप कब तक गीता और रामायण पर अटके रहेंगे?’
उन सज्जन ने इस युवा के प्रश्न का जवाब देने के स्थान पर उसी से प्रश्न कर लिया कि तुम गीता के बारे में क्या जानते हो? उस युवा ने प्रश्न के उद्देश्य पर ही सवाल खड़ा करते हुए बड़े उत्साह से कहा, ‘मैं एक वैज्ञानिक हूँ और विक्रम साराभाई अनुसंधान संस्थान का छात्र हूँ। ऐसी किताबें पढ़ने से क्या होगा? गीता पाठ मेरे किसी काम का नहीं है।’
उस युवा की बातें सुनते ही वे सज्जन जोर से हंस दिए। वे इस बात को आगे बढ़ाते उससे पहले ही वहाँ पर दो गाड़ियाँ आकर रुकी और उनमें से एक कार से कुछ कमांडो और दूसरी में से कुछ सिपाही नीचे उतरे। सिपाही ने उन सज्जन को देखते हुए सलामी दी और कार का पिछला दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया। गीता पाठ करने वाले सज्जन ने अपनी गीता को प्रणाम कर बेग में रखा और कार की पिछली सीट पर बैठ गए।
इस पूरे घटनाक्रम को देख वह युवा आश्चर्यचकित था। उसे लगा हो ना हो यह सज्जन ज़रूर कोई बड़े आदमी होंगे। वह युवा लगभग दौड़ता हुआ उनके पास पहुँचा और लगभग हकलाते हुए बोला, ‘सर… सर… आप कौन हैं?’ वे सज्जन हल्की मुस्कुराहट के साथ बोले, ‘मैं विक्रम साराभाई हूँ।’
उनका नाम सुनते ही वह युवा एकदम अवाक् था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले? वह तो उनके नाम के संस्थान में होने की वजह से ही सातवें आसमान में उड़ रहा था। इस घटनाक्रम ने उस युवा की धारणा को तोड़ा और उसके बाद इस युवा ने ना सिर्फ़ गीता, बल्कि महाभारत और रामायण जैसे अन्य धार्मिक ग्रंथों व सांस्कृतिक विरासतों का अध्ययन किया और शायद इसी वजह से वह हर भारतीय के दिल पर राज कर पाए। जी हाँ दोस्तों, उन्होंने वाक़ई में हर भारतीय के दिल पर राज किया और आज इस दुनिया से जाने के बाद भी हम उनको उसी सम्मान के साथ याद करते हैं। मैं बात कर रहा हूँ भारत के महान वैज्ञानिक और हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ए॰पी॰जे॰ अब्दुल कलाम की।
अगर आप भी अपने जीवन में वाक़ई कुछ बड़ा, कुछ अनूठा करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी धारणाओं से आगे जाकर समग्र नज़रिए के साथ अपने लक्ष्य, अपनी योजना पर काम करें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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