फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
नई शुरुआत से करें मनचाहा अंत


Aug 5, 2021
नई शुरुआत से करें मनचाहा अंत!
कल एक चर्चा में भाग लेने का मौक़ा मिला, विषय था, ‘सफलता के लिए लोग शॉर्टकट क्यूँ अपनाते हैं?’, काफ़ी देर तक उपस्थित लोगों के विचार सुनने के बाद मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद सफलता का अर्थ सिर्फ़ भौतिक सुख के संसाधन जुटा लेना ही रह गया है।
शायद इसीलिए ज़्यादातर लोग इन संसाधनों को जुटाने के प्रयास में आत्मिक संतुष्टि को भूल ही जाते हैं। इसका परिणाम सब कुछ पाने के कुछ ही वर्षों में दिखने लगता है, जब यह तथाकथित सफल लोग, सब कुछ होने के बाद भी तनाव में, असंतुष्टि के भाव के साथ अपना जीवन जीते हैं। दोस्तों इन लोगों में असंतुष्टि का यह भाव आया कैसे? मुझे लगता है शायद ‘सफलता सही क़ीमत पर’ के स्थान पर ‘सफलता किसी भी क़ीमत पर’ विश्वास करने की वजह से।
जी हाँ दोस्तों, आपको समाज में कई लोग मिल जाएँगे जो पहले तो साम, दाम, दंड, भेद चारों को अपनाकर संसाधन इकट्ठा करते है और फिर इन्हीं का प्रदर्शन कर स्वयं की पहचान स्थापित करने का प्रयास करते हैं क्यूँकि इस वक्त उन्हें एहसास होता है कि संसाधनों को इकट्ठा करने के प्रयास में वे सबसे पीछे, अकेले छूट गए है और अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जी चुके हैं। जीवन के इस चरण पर उन्हें इस बात की चिंता सताती है कि ‘इस दुनिया से जाने के बाद लोग उन्हें किस तरह याद रखेंगे?’
हर इंसान इस दुनिया से जाने से पहले अपना एक अच्छा निशान, पहचान विरासत के रूप में छोड़ना चाहता है और अगर हम लोगों को किसी तरह दैनिक जीवन में किए गये कार्यों को इस पहचान से जोड़ना सिखा दें, तो शायद उन्हें सफलता के सही मायने सिखाए जा सकते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक सच्ची कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात काफ़ी पुरानी है, अपनी आदतानुसार एक सज्जन सुबह-सुबह, चाय के साथ समाचार पत्र पढ़ रहे थे। तभी अचानक ‘शोक संदेश’ कॉलम में गलती से छपे एक विज्ञापन ने उन्हें आश्चर्यचकित करने के साथ-साथ डरा भी दिया था। अख़बार ने गलती से उनकी खुद की मृत्यु की खबर प्रकाशित कर दी थी। खुद की मौत की खबर पड़कर वे स्तब्ध थे। कुछ देर पश्चात जब वे मानसिक रूप से थोड़े शांत हुए तो उन्होंने सोचा, ‘चलो अब यह तो देखा जाए कि लोग किस तरह की प्रतिक्रिया इस समाचार पर दे रहे हैं।’
उन्होंने अपनी मृत्यु पर लोगों की प्रतिक्रिया को ध्यान से पढ़ना शुरू किया। कोई उनके बारे में ‘डाइनामाइट किंग डाइज़’ तो कोई उन्हें ‘मृत्यु का सौदागर’ बता रहा था। असल में यह सज्जन डाइनामाइट के अविष्कारक थे। इन समाचारों को पढ़कर वे और ज़्यादा परेशान हो गए और उन्होंने स्वयं से एक प्रश्न करा, ‘क्या मैं इस तरह याद किया जाना पसंद करूँगा?’ जवाब नहीं में पाकर उन्होंने इसे बदलने का निर्णय लिया और उसी दिन से ही उन्होंने विश्व शांति की दिशा में काम करना शुरू कर दिया। वैसे दोस्तों आप सभी इस शख़्स को जानते हैं, मैं श्री अल्फ्रेड नोबेल की बात कर रहा हूँ जिन्हें आज हम सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार, ‘नोबेल पुरस्कार’ की स्थापना के लिए याद किया जाता है।
नोबेल पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1895 में की गई थी जब श्री अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी आखिरी किताब लिखी थी। जिसके अनुसार उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी अधिकांश सम्पत्ति को इस पुरस्कार की स्थापना के लिए छोड़ दिया था। इसी के आधार पर वर्ष 1901 से भौतिकी, रसायन विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य एवं शांति के क्षेत्र में पूरी दुनिया में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति को यह पुरस्कार दिया जाता है।
दोस्तों उक्त कहानी से हम जीवन को बेहतर बनाने के लिए दो बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ सीख सकते हैं। पहला, हर कार्य को करने से पूर्व, स्वयं से प्रश्न पूछना कि ‘यह कार्य क्या हमें अच्छी विरासत छोड़ने में मदद करेगा?’ या ‘आने वाले 5, 10 या 15 वर्षों में यह कार्य हमारे जीवन में महत्व रखेगा या फिर हमारे जीवन को बेहतर बनाएगा?’ आपको कई ग़लतियों और समय बर्बाद करने से बचा सकता है।
दूसरा, जीवन को बचपन से या पहले करी हुई ग़लतियों को ना दोहराते हुए फिर से जीना असम्भव है। लेकिन हम किसी भी पल एक नई शुरुआत कर सकते हैं जो हमें मनचाहा अंत करने में मदद कर सकती है। जी हाँ दोस्तों, नई शुरुआत करने के लिए कभी देर नहीं होती!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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