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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

परम्पराएँ और त्यौहार : रूढ़िवादिता या जीवन जीने का सलिका

परम्पराएँ और त्यौहार : रूढ़िवादिता या जीवन जीने का सलिका
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Mar 28, 2021

परम्पराएँ और त्यौहार : रूढ़िवादिता या जीवन जीने का सलिका…


सर्वप्रथम आप सभी को ग्लोबल हेराल्ड परिवार एवं ड्रीम्स अचीवर्स टीम की ओर से रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।


आज सुबह घर की ज़रूरतों का सामान लेने के लिए बाज़ार जाना हुआ। दुकान पर थोड़ी सी भीड़ देख मैं थोड़ी दूर ही रुक गया। मेरे पास ही 10-12 साल के दो बच्चे आपस में बात कर रहे थे। अनायास ही उनके द्वारा बोले गए एक वाक्य ने मेरा ध्यान खींचा। छोटा दिखने वाला बच्चा बोला, ‘भैया, यहाँ हमें कितनी देर और लगेगी? हमारा कितना सारा समय बर्बाद हो रहा है। जब भी टेस्ट या परीक्षा आती है उसी समय हमारे यहाँ कोई ना कोई त्यौहार आ जाता है।’


त्यौहार के बारे में बच्चों की धारणा देख मैं हैरान था। मेरे मन में कई सारे सवाल उठ रहे थे, क्या हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारी संस्कृति को हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए बोझ बनाती जा रही है? या ‘किताबी ज्ञान’ और ‘परीक्षा के नम्बर’ इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि हमारे लिए उत्सव और ख़ुशी का कोई मायना ही नहीं बचा है? दोस्तों इन बातों पर विचार करना बहुत ज़रूरी है। सोचकर देखिएगा कहीं हम शारीरिक ग़ुलामी से आज़ाद होकर मानसिक ग़ुलामी की ओर तो नहीं जा रहे हैं?


दोस्तों पैसे, पद, और प्रतिष्ठा की अंधी दौड़ हमें जीवन के प्रमुख लक्ष्य ‘खुश, मस्त और स्वस्थ रहना’ से दूर ले जा रही है। बच्चे आजकल तार्किक ज़्यादा हैं इसलिए हमें उन्हें तार्किक आधार पर ही हमारी संस्कृति को समझाना होगा। जैसे हमारे यहाँ त्यौहारों का सम्बंध सीधे-सीधे ऋतुओं से था। जिस तरह मौसम में परिवर्तन के समय प्रकृति में परिवर्तन होता है, ठीक उसी तरह हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है। मौसम के परिवर्तन के दौरान जिस तरह प्रकृति के तत्व, जैसे वृक्ष-पहाड़, पशु-पक्षी आदि सभी प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए, उससे होने वाली हानि से बचने का प्रयास करते हैं। ठीक उसी तरह मनुष्य को भी ऐसा करवाने के लिए ऋषियों ने ऐसे त्यौहार और नियम बनाए, जिनका पालन करके व्यक्ति न सिर्फ़ बदलते मौसम के प्रभाव से बच सकता था बल्कि सुखमय जीवन भी व्यतीत कर सकता था।

वैसे दोस्तों इसके कुछ अन्य फ़ायदे भी हैं जैसे-


1) निश्चित अंतराल पर त्यौहारों का होना समाज को, उसके हर वर्ग को एक साथ जोड़े रखता है।

2) यह कार्य अथवा व्यवसायिक तनाव से निश्चित अंतराल में कट कर परिवार के साथ समय बिताने का मौक़ा देता  है।

3) त्यौहार के बहाने से हम समाज के पिछड़े हुए तबके की मदद कर पाते हैं।

4) प्रकृति एवं ईश्वर ने हमें बहुत कुछ दिया है, त्यौहार पर किए जाने वाले पूजन के द्वारा हम उनका आभार व्यक्त  कर पाते हैं।

5) सभी त्यौहार हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं


आईए दोस्तों होली के इस पावन त्यौहार से हम अपने जीवन को बेहतर बनाने के तीन सूत्र सीखते हैं-


पहला सूत्र - अच्छाई आपकी जीत सुनिश्चित करती है

राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान से बड़ा मानते थे और सामान्य लोगों पर अत्याचार किया करते थे वहीं उनके पुत्र प्रह्लाद उनकी पूजा करने के स्थान पर भगवान विष्णु का पूजन किया करते थे। इसलिए उन्होंने भक्त प्रह्लाद को मारने के कई प्रयत्न करे लेकिन सफल नहीं हुए और अंत में जीत भक्त प्रह्लाद की हुई अर्थात् यह त्यौहार भी बुराई पर अच्छाई, अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।


धर्म और धार्मिकता हर कार्य और हर युग में पायी जाती है। अगर आप इसे आज के परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो आप पाएँगे कि हर कार्य के दो पक्ष होते हैं, एक सही और दूसरा ग़लत। सफलता के मामले में भी यही होता है। समाज में दोनों तरह के लोग होते है पहले वे जो सही क़ीमत पर अर्थात् मूल्यों पर आधारित सफलता चाहते हैं। दूसरे वे, जो किसी भी क़ीमत पर सफल होना चाहते हैं। हो सकता है शुरुआती दौर में दूसरे तरह के लोगों को जल्दी सफलता मिलती दिखे लेकिन अंततः सही मूल्य पर सफलता चाहने वाले लोग ही संतुलित और खुशहाल जीवन जी पाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे हिरण्यकश्यप ने होलिका, जिन्हें आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था की मदद से अपना गलत कार्य साधना चाहा, लेकिन वे इसमें असफल हुए और अंततः होलिका ही अग्नि में भस्म हो गई।


अगर आप सफल होना चाहते हैं तो अपने कर्मों को समय-समय पर मूल्यों के आधार पर जाँचें। सोचें कि आप जो कर रहे हैं वह समाज के लिए हितकारी और फलदायी रहेगा या नहीं। हमारे शब्द किसी की भावनाओं को आहत तो नहीं कर रहे हैं। हमेशा समाज में सामंजस्यपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करें और अपने कार्य और व्यवहार के माध्यम से दुनिया की प्रगति में सहायक बनें। वैसे इसे आप नकारात्मक भाव को जलाकर सकारात्मक जीवन जीने की याद दिलाने वाला त्यौहार भी मान सकते हैं।


दूसरा सूत्र - रिश्तों में कड़वाहट दूर करें और मिठास बढ़ाएँ

इस त्यौहार का एक उद्देश्य लोगों में प्रेम और सद्भाव फैलाना भी है। होली को खेलते वक्त हमेशा कहा जाता है ‘बुरा ना मानो होली है!’ यह एक वाक्य हमें आपसी द्वेष, रिश्तों की कड़वाहट को भुलाकर प्रेम और सद्भाव बढ़ाने का मौक़ा देता है। दोस्तों होली पर एक दूसरे से मिलने जाने की, बधाई देने की परम्परा है, जो 'क्षमा और भूल' के सिद्धांत पर कार्य करके रिश्तों को बेहतर बनाने का मौक़ा देती है। होली हमें क्षमा माँगने और क्षमा करने की आदत को अपनाने की सीख देती है जिससे हम रिश्तों  में गरमाहट बरकरार रख सकें।


तीसरा सूत्र - जीवन के हर रंग को स्वीकारें

होली रंगों का त्यौहार है, पारम्परिक तौर पर इसे वसंत ऋतु में प्रकृति से उपहार में मिले अनेकों रंगीन फूल, पत्तियों के द्वारा रंग बनाकर खेला जाता था। सोचकर देखिए अगर इस त्यौहार को किसी एक ही रंग से खेला जाता, तो क्या यह इतना मज़ेदार होता? शायद नहीं।


ठीक इसी तरह दोस्तों जीवन में भी सुख, दुःख, सफलता, असफलता हर रंग ज़रूरी है। एक व्यक्ति बुद्धिमान और सफल तब ही बन सकता है जब उसने अच्छे समय के साथ बुरा समय, समस्याएँ, चुनौतियाँ, असफलता सभी का स्वाद चखा हो, सभी को समान रूप से एक जैसी ऊर्जा और उत्साह के साथ स्वीकारा हो।

इन्हीं विचारों के साथ एक बार फिर आप सभी को रंगों के त्यौहार होली की शुभकामनाएँ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

dreamsachieverspune@gmail.com

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