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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

परिस्थितियाँ बदलनी हैं तो मनःस्थिति बदलें

परिस्थितियाँ बदलनी हैं तो मनःस्थिति बदलें
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Oct 1, 2021

परिस्थितियाँ बदलनी हैं तो मनःस्थिति बदलें…


आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत हम एक प्यारी सी कहानी के साथ करते हैं। शहर के बीज एक बुजुर्ग दम्पत्ति रहा करते थे। दिनभर आते-जाते वाहनों के शोर और दूसरी चिल्ल-पों के बीच दिन कैसे गुजर जाता था, उन्हें पता ही नहीं चलता था। लेकिन शाम के समय उस इलाक़े में मिलने वाली शांति उनकी दिनभर की सारी परेशानी भुला दिया करती थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से यह बुजुर्ग दम्पति एक नई समस्या से जूझ रहा था। उनके घर के सामने ख़ाली जगह पर शाम से देर रात तक बच्चों ने खेलना शुरू कर दिया। अब सुबह की ही तरह शाम को भी इलाक़े में शोर रहने लगा। वृद्ध दम्पति ने मिलकर इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए काफ़ी सोच विचार करा पर उन्हें एकदम से कोई हल समझ नहीं आया।


एक दिन वह वृद्ध महिला उन बच्चों के पास गई और उन्हें अपनी परेशानी बताते हुए, समझाने का प्रयास करा कि वे पास के खेल  के मैदान में जाकर खेल लें। पर बच्चों पर इस वृद्धा की बात का कोई असर नहीं पड़ा बल्कि वे सब मिलकर उस महिला को और ज़्यादा परेशान करने लगे। कई बार तो वह वृद्ध उन बच्चों पर चिढ़कर चिल्ला भी दिया करती थी।


वृद्ध महिला की बढ़ती चिड़चिड़ाहट को देख उसके पति ने इस समस्या को सुलझाने की ज़िम्मेदारी अपने हाथ में ली और वह अगले ही दिन बाज़ार से बच्चों के खेलने के लिए कुछ नई गेंद व अन्य सामान ले आया। शाम को जैसे ही बच्चे खेलने के लिए आए वह उनके पास गया और उन्हें खेलने का नया सामान देते हुए बोला, ‘बच्चों, तुम्हारे खेलने से मेरी पत्नी को थोड़ी परेशानी ज़रूर होती है पर मुझे तुम्हारा खेलना, ऊँची आवाज़ में बात करना या गाना सुनना बहुत पसंद है। तुम्हारा ऐसा करना मुझे अपने बचपन को याद कर खुश होने का मौक़ा देता है। मैं तुम्हारे साथ एक डील करना चाहता हूँ, अगर तुम सब कल फिर से आने का वादा करते हो तो मैं तुम सब को 100-100 रुपए देने का वादा करता हूँ।


खेल के साथ ईनाम की बात सुनते ही सभी बच्चे खुश हो गए और अगले दिन आने का वादा कर अपने सौ-सौ रुपए लेकर घर चले गए। अगले दिन सभी बच्चे और ज़्यादा उत्साह के साथ, मस्ती से खेले और फिर घर जाने से पहले उस वृद्ध व्यक्ति के पास पहुंचे। उस व्यक्ति ने अपने वादे के अनुसार फिर से सभी बच्चों को सौ-सौ रुपए दिए। 


तीसरे दिन फिर से शाम को सभी बच्चे एकत्र हुए और पूरी ऊर्जा के साथ मस्ताते हुए खेलने लगे। खेल पूरा होने के बाद सभी बच्चे वृद्ध के पास पहुंचे तो वृद्ध ने सभी बच्चों को मात्र 50-50 रुपए ही दिए। बच्चे थोड़े असंतुष्ट थे पर वे बिना कुछ बोले वहाँ से पैसे लेकर चले गए। चौथे दिन फिर सभी बच्चे शाम को खेलने के लिए पहुंचे, पर आज उनमें उत्साह थोड़ा कम था। पिछले दोनों दिन की ही तरह खेल पूरा होने के पश्चात वे वृद्ध के पास पहुंचे तो वृद्ध व्यक्ति ने सभी को मात्र 10-10 रुपए दिए और समझाते हुए बोला, ‘अभी पैसों की कुछ दिक़्क़त चल रही है, घर में रखे हुए पैसे भी ख़त्म हो रहे हैं इसलिए इससे ज़्यादा दे पाना सम्भव नहीं होगा।’


सभी बच्चे मात्र 10 रुपए देख बड़े असंतुष्ट थे। पर वृद्ध ने अपनी बात कहना जारी रखते हुए पूछा, ‘बच्चों आप सभी कल तय समय पर खेलने तो आ जाएँगे ना?’ वृद्ध की बात सुन बेहद निराश बच्चों में से एक बच्चा बोला, ‘बिलकुल नहीं! अब हम कभी यहाँ खेलने नहीं आएँगे, मात्र 10 रुपए के लिए इतनी ऊर्जा बर्बाद करना उचित नहीं है।’ और सभी बच्चे वहाँ से चले गए और फिर कभी वहाँ खेलने नहीं आए।


दोस्तों इस कहानी में जीवन को बेहतर बनाने के कई राज छिपे हुए हैं, आइए उन राजों को जीवन बेहतर बनाने के तीन प्रमुख सूत्रों के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं- 


प्रथम सूत्र - लक्ष्य से ना भटकें 

दोस्तों इन प्यारे बच्चों की ही तरह कई बार हम भी जीवन में भौतिक चकाचौंध के चक्कर में अपने मुख्य लक्ष्य जैसे स्वस्थ और मस्त रहना आदि को भूल जाते हैं और अपनी क़िस्मत, परिस्थितियों, लोगों, परिवार आदि को दोष देने लगते हैं। अगर जीवन में आप किसी बड़े लक्ष्य या मक़सद को पाना चाहते हैं तो हमेशा अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहें।


दूसरा सूत्र - रचनात्मकता को दें प्राथमिकता 

बच्चों को शिक्षा देते वक्त याद रखें अकादमिक शिक्षा और तकनीकी कौशल जितना ही बल्कि शायद उससे ज़्यादा ज़रूरी बच्चों या सभी में रचनात्मकता अर्थात् क्रीएटिविटी बरकरार रखना है। रचनात्मकता विषम से विषम परिस्थितियों में भी आपको मनमाफ़िक परिणाम प्राप्त करने में मदद कर सकता है।


तीसरा सूत्र - परिस्थितियाँ बदलनी है तो मनःस्थिति बदलें

जीवन में अकसर हम उन बातों या स्थितियों से लड़ने का प्रयास करते हैं जिनका कंट्रोल हमारे हाथ में नहीं होता है। उदाहरण के लिए गाड़ी चलाते वक्त ट्रैफ़िक पर दोष देना, दूसरों के कार्य करने के तरीक़ों अथवा सोच देखकर खुद परेशान होना आदि। लेकिन सोचकर देखिए दोस्तों आपके परेशान होने से परिस्थितियाँ बदल जाएँगी क्या? बिलकुल नहीं, तो फिर वैसी सोच रखने का क्या फ़ायदा? दोस्तों याद रखिएगा, परिस्थिति नहीं बल्कि मनःस्थिति बदलने से आपका जीवन बेहतर बनेगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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