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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

परीक्षा उत्तीर्ण करना ज्ञानी बनने की गारंटी नहीं है

परीक्षा उत्तीर्ण करना ज्ञानी बनने की गारंटी नहीं है
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Mar 13, 2021
परीक्षा उत्तीर्ण करना ज्ञानी बनने की गारंटी नहीं है…

आज कार्य के सिलसिले में उज्जैन-इंदौर रोड पर स्थित छोटे से क़स्बे धरमपुरी जाना हुआ। वहाँ पर मेरे क्लायंट अपने बेटे से चर्चा करते हुए मिले। देखने पर लग रहा था कि उनका युवा बेटा उनसे थोड़ा सा नाराज़ है। मुझे देख उन्होंने अपने बेटे से कहा मैं सर के साथ चर्चा कर लेता हूँ फिर हम इस विषय पर निर्णय लेंगे। बेटे के जाने के बाद उन्होंने मुझे कहा, ‘बेटे की पढ़ाई अब पूरी हो गई है और अब यह मेरे साथ ही काम कर रहा है। आजकल अपने एमबीए के ज्ञान के आधार पर कुछ नई नीतियाँ बना रहा है, उसी पर मुझसे चर्चा कर रहा था।’ मैंने कहा, ‘सर लेकिन वह थोड़ा नाराज़ लग रहा था।’ इस पर वे सज्जन बोले, ‘सर वैसे मैंने तीन माह पूर्व एक यूनिट बेटे को सम्भालने के लिए दे दी है। लेकिन जब कभी मुझे लगता है इसने कोई निर्णय ग़लत लिया है और लम्बे समय में वो निर्णय हमारे व्यापार के लिए ज़्यादा नुक़सानदायक होगा तो मैं उसे सचेत करता हूँ। लेकिन जब भी मैं उसे कुछ बताने का प्रयत्न करता हूँ उसे लगता है मैं उस पर विश्वास नहीं कर रहा हूँ और वह यह बताने का प्रयास करता है कि मैंने यह सब अपनी एमबीए की शिक्षा में पढ़ा हुआ है। आज का ही क़िस्सा ले लीजिए, हमारे यहाँ एक कर्मचारी हैं जो पिछले 20 वर्षों से हमारी फ़ैक्टरी की मशीनों की देखभाल कर रहे हैं। आज इसे उनके कम शिक्षित होने पर व कम शिक्षित होते हुए भी इतना ज़्यादा वेतन देने पर ऐतराज है। अब आप ही बताइए कैसे मैं उसे समझाऊँ?’

मैंने उनसे कहा, ‘आप उसे सीधे रोकने, टोकने या उसके निर्णय को बदलने के स्थान पर उसे बुलाकर तार्किक रूप से समझाया करें कि आप क्या और क्यों चाहते हैं। इसके लिए आप अपने अनुभव, कोई कहानी अथवा किस्से का प्रयोग भी कर सकते हैं। जैसे, यह कहानी आपकी मदद कर सकती है।’ कहानी शुरू करने के पूर्व ही उनका बेटा भी वहाँ आ गया। मैंने रुकने की जगह अपनी बात जारी रखी और कहानी सुनाना प्रारम्भ कर दिया-

चार दोस्त शहर से अपनी स्नातक की पढ़ाई कर वापस घर लौट रहे थे। चारों ने ही कक्षा में अपने-अपने विषय में टॉप किया था। चारों को ही अपने ज्ञान पर गर्व था इसलिए वे चारों रास्ते में कॉलेज में लिए गये अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए चल रहे थे। चलते-चलते जब काफ़ी समय हो गया तो उन्होंने एक जगह रुककर रात्रि विश्राम के लिए पड़ाव डाला। चारों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर भोजन प्रबंध करने का निर्णय लिया।

विज्ञान विषय से शिक्षित तर्क विशेषज्ञ ने बर्तन व आटे के प्रबंध करने की ज़िम्मेदारी ली और सामान का इंतज़ाम करने के उद्देश्य से बाजार गया। वहाँ से लौटते वक्त किसी ने उससे एक प्रश्न पूछ लिया, ‘जिस बर्तन में चावल व अन्य सामान ला रहे हो वह बड़ा है या उसके अंदर का सामान?’ स्वयं को तार्किक रूप से सही सिद्ध करने के चक्कर में उसने बर्तन को उल्टा कर दिया। सारा खाने का सामान ज़मीन पर बिखर गया।

दूसरी ओर ललित कला से शिक्षित कला विशेषज्ञ ने चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी का इंतज़ाम करने की ज़िम्मेदारी ली और लकड़ी काटने के लिए जंगल चला गया। जंगल जाकर उसने सबसे सुंदर हरे-भरे वृक्ष को लकड़ी काटने के लिए चुना। उसने कुछ गीली टहनियों को काटा और उन्हें साथ लेकर वापस आ गया।  बड़ी मुश्किलों से जैसे-तैसे चूल्हा जलाया गया।

तीसरे दोस्त पाक शास्त्री ने बड़ी मुश्किलों के साथ उपलब्ध साधनों व सामान से भोजन पकाना शुरू किया। पात्र में सभी सामान को डालकर उसने उसे चूल्हे पर चढ़ा दिया और खुद कुएँ से पीने का पानी लेने के लिए चला गया। इधर चौथा साथी जो भाषा विशेषज्ञ था वह सभी को अच्छे से खाना खिलाने की व्यवस्था करने लगा। अचानक उसका ध्यान चूल्हे पर रखे गए बर्तन में से आती आवाज़ पर गया। वह अपना पूरा ध्यान लगाकर उस आवाज़ को सुनने लगा। थोड़ी ही देर में उसे लगने लगा कि व्याकरण के हिसाब से पूरी आवाज़ गलत है। अपनी आदतानुसार उसने एक डंडा उठाया और चूल्हे पर रखे बर्तन पर दे मारा। सारा पका हुआ खाना ज़मीन पर फैल गया और अंत में सब कुछ होने के बाद भी सभी को भूखा सोना पड़ा। 

कहानी पूरी होने के पश्चात मैंने उनसे कहा, ‘देखिए, शिक्षा लेने के लिए हमारे पास दो तरह की शिक्षा प्रणाली हैं। पहली, औपचारिक शिक्षा प्रणाली, इसमें आप किसी संस्थान में प्रवेश लेते हैं और फिर निश्चित समय में निश्चित ज्ञान लेने का प्रयास करते हैं मतलब स्ट्रक्चर्ड तरीक़े से सीखते हैं। इसके अनेक फ़ायदे हैं लेकिन इसमें प्रैक्टिकल नॉलेज की थोड़ी कमी रहती है।

दूसरी, व्यवहारिक शिक्षा प्रणाली, यहाँ आपको स्ट्रक्चर्ड तरीक़े से सीखने को तो नहीं मिलता है लेकिन आप अनुभव व अपनी बुद्धि के बल पर व्यवहारिक तरीक़े से काम करते हुए सीखते हैं। दोनों ही तरीक़ों का अपना महत्व है, लेकिन जब तक किताबी अर्थात् औपचारिक शिक्षा को व्यवहारिक तरीक़े से काम में ना ले लिया जाए वह अधूरी ही रहती है। इसीलिए तो कहा जाता है दोस्तों, किताबी ज्ञान की तुलना में व्यवहारिक ज्ञान व अनुभव का महत्व व मूल्य दोनों ही अधिक है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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