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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

परेशानियाँ आपको बेहतर बनाने के लिए आती हैं

परेशानियाँ आपको बेहतर बनाने के लिए आती हैं
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Feb 1, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

परेशानियाँ आपको बेहतर बनाने के लिए आती हैं…


हाल ही में एक शिक्षिका ने मुझसे प्रश्न करा, ‘सर, आप हमेशा कहते हैं, ‘हरी इच्छा!, अर्थात् जो होता है प्रभु की इच्छानुसार होता है।’ मैंने कहा, ‘बिल्कुल!’ शिक्षिका ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘तो फिर कई बार हमारे साथ बुरा क्यों होता है?’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘क्यूँकि, ईश्वर आपके लिए कुछ बहुत ही बड़ा अच्छा करने के लिए तैयारी कर रहे होते हैं, इसलिए।’ मेरे दार्शनिक से जवाब के उत्तर में वह जोर से हंसी और बोली, ‘सर, समझाने के लिए यह तरीक़ा बहुत अच्छा है, लेकिन ऐसा होता नहीं है कभी। क्या आप इसे अपने जीवन की किसी घटना से समझा सकते हैं।’ मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा, ‘ज़रूर, और अपने जीवन का एक क़िस्सा सुना दिया जो कुछ इस प्रकार था।’


बात 2007 से 2011 के बीच की है, जब मैं कम्प्यूटर हार्डवेयर का कार्य बंद कर ऑनलाइन शिक्षा पर आधारित नेटवर्किंग कम्पनी के साथ काम कर रहा था। इसी दौरान मैं अपने गुरु से मोटिवेशनल स्पीकर बनने की ट्रेनिंग और वरिष्ठ शिक्षाविद पद्मश्री अरविंद गुप्ता जी से शिक्षा के सही अर्थ को समझने के साथ-साथ उन बातों को विद्यालय और शिक्षकों तक पहुँचाने के गुर भी सीख रहा था। उस वक्त विभिन्न क्षेत्रों में हाथ आज़माने की वजह या सारी जद्दोजेहद अपने कोर टेलेंट की मदद से अपनी आर्थिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए ही थी। नए-नए क्षेत्रों में हाथ आज़माने और अपनी ओर से पूरी मेहनत करने के बाद भी मुझे वैसी सफलता नहीं मिल पा रही थी, जिसकी मुझे उम्मीद थी। कई बार मनचाहा परिणाम पा आशा जगती थी, तो कभी आशानुरूप परिणाम ना मिलना हताश कर देता था। ऐसे ही कई उतार-चढ़ाव के बीच जीवन चल रहा था।


एक दिन मुझे अचानक मेरे बड़े भाई श्री अजय भटनागर ने नीमच से फ़ोन करा और कहा, ‘अशासकीय शाला संघ, नीमच द्वारा 5 सितम्बर 2011 को शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में शिक्षक महासम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में नीमच ज़िले के सभी अशासकीय विद्यालय के शिक्षक और मैनेजमेंट के सदस्य मौजूद रहेंगे और इसमें चुने हुए शिक्षकों का सम्मान किया जाएगा। मैं इस कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में तुम्हारे गुरु, मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर राजेश अग्रवाल को बुलाना चाहता हूँ।’ मैंने तुरंत खुश हो कर हाँ कर दिया और सर को भी इस बाबत सूचना दे दी। 


इस खबर से में उत्साहित था क्यूँकि इस बहाने मुझे अपने गुरु के साथ कुछ वक्त बिताने का मौक़ा मिलने वाला था। लेकिन इसके बाद कई दिनों तक भैया से इस विषय में चर्चा नहीं हुई। मुझे लगा शायद संस्था ने उक्त कार्यक्रम को आगे बढ़ा दिया है या फिर निरस्त कर दिया है। तय कार्यक्रम के कुछ दिन पूर्व, मुझे बड़े भैया का फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे सर के कार्यक्रम के संदर्भ में मुझसे पूछा। मैंने तुरंत सर से सम्पर्क करा लेकिन तब तक उन्होंने वह तारीख़ किसी अन्य संस्था को दे दी थी। भैया थोड़े ग़ुस्से में थे, वे मुझसे बोले, ‘हमने बोल तो दिया था उन्हें, फिर उन्होंने यह तारीख़ किसी और को क्यों दे दी? मैं नहीं जानता अब यह कार्यक्रम तुमको करना होगा।’


अचानक से आई इस आफ़त से मैं हैरान और परेशान था, शुरू में तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे दोनों के बीच में, मैं पिस रहा हूँ। लेकिन तभी मुझे सर की बात याद आई, ‘ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है।’ और ‘जब किसी चीज़ को बदल पाना सम्भव ना हो तो उसे पूरे दिल से स्वीकार लेना चाहिए।’ मैंने तुरंत भैया के आदेश को स्वीकारा और 5 सितम्बर 2011 को तय समय पर कार्यक्रम स्थल पर पूरी तैयारी के साथ पहुँच गया। लेकिन वहाँ का नजारा देख मैं हैरान था वहाँ 2000 से ज़्यादा लोग बैठे हुए थे। पहले तो मुझे घबराहट हुई लेकिन मैंने अपने ज्ञान और पूरी क्षमता के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। 


यक़ीन मानिएगा मैडम, वह कार्यक्रम मेरे जीवन के सर्वोत्तम कार्यक्रम में से एक बन गया और मैंने उस दिन एजुकेशनल कंसलटेंट व शिक्षकों का ट्रेनर बनने का निर्णय लिया। उस दिन अचानक से आई विपत्ति ने मेरे जीवन को एक नई दिशा दे दी थी और उसी की वजह से मैं आज इतने सारे विद्यालय, कॉलेज और विश्वविद्यालय के लिए कार्य कर पा रहा हूँ। इतना ही नहीं आज आपको समझाने का प्रयास कर रहा हूँ। 


जी हाँ साथियों, ईश्वर जो करता है हमारे अच्छे के लिए ही करता है। जिस तरह किसी पत्थर को हाथ से रगड़-रगड़ कर मूर्ति नहीं बनाया जा सकता उसी तरह हमेशा सहारा देकर ईश्वर हमें अपनी ताक़त का एहसास नहीं करवा सकता है। जिस तरह पत्थर छेनी-हथौड़ी से नफ़रत नहीं करता, बल्कि उन्हें अपने ऊपर वार करने, चोट मारने की इजाज़त देता है, उन चोटों को स्वीकार करता है, जिससे वह अपने अंदर छुपी मूर्ति को बाहर ला सके उसी तरह हमें भी पूरी तरह स्वीकारना चाहिए की ईश्वर हमें निखारने के लिए, हमारा सर्वोत्तम बाहर लाने के लिए ही विपरीत परिस्थितियों या चुनौतीपूर्ण स्थिति में डालता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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