फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
पात्रता बढ़ाएँ, क़िस्मत बनाएँ


Aug 19, 2021
पात्रता बढ़ाएँ, क़िस्मत बनाएँ!!!
दो मछुआरे दोस्त थे। दोनों में से एक मछुआरा रमेश, रोज़ ढेर सारी बड़ी मछलियाँ पकड़ कर लाता था वहीं दूसरा सुरेश बहुत थोड़ी सी छोटी मछलियाँ ला पाता था। कम मछलियाँ ला पाने की वजह से सुरेश अकसर परेशानी और तंगी में अपने दिन बिताया करता था। लेकिन स्वाभिमानी होने की वजह से वह किसी से मदद नहीं माँगता था।
एक दिन रमेश इस बात को भाँप गया कि सुरेश परेशानी के दौर से गुजर रहा है। पर वह हैरान था क्यूँकि रमेश का मानना था कि जिस तालाब में वे मछलियाँ पकड़ने जाते हैं वहाँ बहुत सारी मछलियाँ है और सुरेश उससे बेहतर तरीक़े से मछलियाँ पकड़ सकता है और साथ ही वह उससे ज़्यादा मेहनती भी है। रमेश ने सुरेश की मदद करने का निर्णय लिया, पर समस्या यह थी कि किस तरह मदद की जाए उसे समझ नहीं आ रहा था। रमेश को पता था सुरेश अपने आत्मसम्मान के कारण किसी भी प्रकार की मदद नहीं लेगा।
रमेश ने एक योजना बनाई और सुरेश के घर जाकर उससे बोला, ‘सुरेश कल से हम दोनों एक साथ मछली पकड़ने जाएँगे। इससे हमें साथ रहने का समय भी मिल जाएगा और हमारे काम का भी नुक़सान नहीं होगा।’ सुरेश को रमेश की बात अच्छी लगी और उसने तुरंत हाँ कह दिया।
अगले दिन सुबह दोनों एक साथ तय समय पर मछली पकड़ने के लिए तालाब पर पहुँच गए। कुछ ही पलों में रमेश के डाले काँटे में एक बहुत बड़ी मछली फँसी। उसने तुरंत उस मछली को साथ लाए एक बड़े से आईस बॉक्स में रख दिया और साथ लाए सामान जैसे बर्तन, मसाले आदि निकाल कर खाना पकाने की तैयारी करने लगा। इतनी देर में उसके काँटे में एक और मछली फँस गई। उसने उसे बाहर निकाला और बाज़ार में बेचने ले जाने के लिए उसे अलग रख दिया।
कुछ देर बाद उसका ध्यान सुरेश की एक अजीब सी हरकत पर गया, सुरेश काफ़ी मेहनत से पकड़ में आयी बड़ी मछलियों को वापस तालाब में छोड़ता जा रहा था और छोटी-छोटी मछलियों को बाज़ार में बेचने के लिए अलग रखता जा रहा था। सुरेश के इस रवैए को देख रमेश हतप्रभ था पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सुरेश ऐसा कर क्यों रहा ह? लेकिन उसने उस वक्त सुरेश से कुछ ना कहने का निर्णय लिया।
दोपहर को दोनों दोस्तों ने साथ में भोजन किया। भोजन के पश्चात रमेश ने सुरेश से एक प्रश्न किया, ‘सुरेश, तुम इतनी मेहनत से पकड़ी गई बड़ी मछलियों को वापस तालाब में क्यों छोड़ रहे हो?’ रमेश बोला, ‘क्यूँकि मेरे पास इन मछलियों को बाज़ार तक ले जाने लायक़ एवं उसे पकाने लायक़ बड़ा बर्तन व अन्य साधन नहीं है। इसलिए मैं सिर्फ़ छोटी मछलियों की ही तलाश में रहता हूँ, उन्हें ही पकड़ कर झोले में रखता हूँ।’ सुरेश की प्रतिक्रिया सुन रमेश हैरान तो था पर खुश भी क्यूँकि उसे सुरेश की परेशानी की मुख्य वजह समझ आ गयी थी।
दोस्तों जिस तरह रमेश और सुरेश दोनों के पास एक समान अवसर थे पर सुरेश ने अपनी पात्रता बढ़ाने के स्थान पर मौक़ों को छोड़ना बेहतर समझा और मौक़ों को छोड़ना ही उसकी समस्या का मुख्य कारण था। ठीक इसी तरह ईश्वर इस पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान को एक अवसर देता है लेकिन हम में से ज़्यादातर लोग उन मौक़ों, अवसरों को गँवा देते हैं, अपनी क़िस्मत को ठुकरा देते हैं। क्यूँकि हम ज्ञान बढ़ाकर अपनी पात्रता बढ़ा कर ईश्वर जो हमें दे रहा है वह लेने के स्थान पर मौक़ों को नज़रंदाज़ करते हुए उन चीजों को पाने का प्रयास करते हैं जो हम चाहते हैं।
इसीलिए तो एरिक हैंडलर ने कहा है, ‘हममें से ज़्यादातर लोग मौक़ों को गुजरने के बाद पहचान पाते हैं।’ जी हाँ दोस्तों अगर जीवन में सफल होना है, आगे बढ़ना है, तो चमत्कार होने का इंतज़ार करने के स्थान पर, हमें मौक़ों को पहचानना और उन्हें पकड़ना सीखना होगा और साथ ही हाथ आए मौक़ों पर काम करना होगा ताकि हम अपने जीवन में उसका अधिकतम लाभ ले सकें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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