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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

पैसा नहीं इंसानियत कमाएँ

पैसा नहीं इंसानियत कमाएँ
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April 23, 2021
पैसा नहीं इंसानियत कमाएँ!!!

दोस्तों जो लोग आपदा की इस स्थिति को मुनाफ़ा कमाने का अवसर मान रहे है, उन सभी लोगों से मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ, क्या आपने सोचकर देखा है आपकी यह आदत दुनिया को किस ओर लेकर जा रही है? या किसी इंसान की जान की क़ीमत आप क्या लगा रहे हैं? शायद नहीं!

मैं इसे एक सच्ची घटना से जोड़कर समझाता हूँ। एक समूह ने मानवता की सेवा के लिए, निशुल्क उपलब्ध करवाने हेतु, बीस ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ाम किया लेकिन इन्हें उपयोग लायक़ बनाने हेतु ऑक्सीमीटर जो आमतौर पर 700-800 रुपए में मिल जाता है, वह 2000 रुपए में ख़रीदने के लिए भी परेशान होते देखा है। अर्थात् मुनाफ़ाख़ोरों की नज़र में एक जान की क़ीमत शायद 1200 रुपए है। यह तो मात्र एक उदाहरण है, पीड़ित परिवारों से मिलकर देखिए ऐसे हज़ारों किस्से सुनने को मिल जाएँगे। दोस्तों कुछ लोग आजकल ना तो क़ायदे पसंद कर रहे हैं, ना ही वायदे, वे तो बस फ़ायदा पसंद करते हैं।

पिछले कई दिनों से जहां एक ओर डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ़, सफ़ाई कर्मचारी, एम्बुलेंस चालक व बहुत सारे समाजसेवी बिना दिन रात देखे मानवता की सेवा कर रहे हैं वहीं कुछ लोग सिर्फ़ अपने मुनाफ़े पर निगाह गढ़ाकर बैठे हुए हैं। बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती है जो लोग गलत तरीक़े से कमा रहे हैं वे सही काम करने वालों को, ना सिर्फ़ ग़लत नज़रों से देख रहे हैं बल्कि उन्हें ग़लत सिद्ध करने की कोशिश भी कर रहे हैं। दोस्तों मेरा आपसे निवेदन है कि गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल डाकू का क़िस्सा ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को सुनाएँ जिससे शायद उन्हें हक़ीक़त का एहसास हो सके। वैसे आप सभी को यह क़िस्सा पता है लेकिन फिर भी एक बार याद दिला देता हूँ।

एक बार गौतम बुद्ध मगध देश के एक गाँव में गए। वहाँ की जनता ने उनका बहुत अच्छे से स्वागत सत्कार किया। कुछ दिन वहाँ रुकने पर गौतम बुद्ध को एहसास हुआ कि वहाँ का माहौल कुछ तो अजीब है। दिनभर तो सब कुछ ठीक चलता था लेकिन शाम होते ही सब लोग अपने घर में दुबककर बैठ ज़ाया करते थे। थोड़ा पता करने पर महात्मा बुद्ध को अंगुलिमाल के बारे में पता चला। अंगुलिमाल इतना ख़ूँख़ार डाकू था कि उसका ख़ौफ़ मगध देश की जनता को शाम के बाद घर से नहीं निकलने देता था। वह घने जंगल में रहता था और जब भी कोई उस जंगल से गुज़रता था तो अंगुलिमाल उसे लूटकर मार दिया करता था और फिर उसकी उँगली काटकर, माला के रूप में अपने गले में पहन लेता था। इसी वजह से उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया था।

महात्मा बुद्ध को जब लोगों के डरने का कारण पता लगा, उन्होंने जंगल जाकर अंगुलिमाल से मिलने का निश्चय किया। गाँव वालों को गौतम बुद्ध के निर्णय के बारे में पता चला तो उन्होंने बुद्ध को रोकने का बहुत प्रयास किया। लेकिन गौतम बुद्ध कहाँ मानने वाले थे। उन्होंने अपना कमंडल उठाया और एकदम शांत भाव के साथ घने जंगल की ओर चल पड़े। उन्हें चलते हुए कुछ ही देर हुई थी कि एक कर्कश आवाज़ उनके कानों में पड़ी, ‘ठहर जा, कहाँ जा रहा है?’, गौतम बुद्ध ने उस आवाज़ को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ गए। अब पीछे से आने वाली आवाज़ और तेज हो गई, ‘मैं कहता हूँ ठहर जा।’ इस बार गौतम बुद्ध रूक गए और जैसे ही पीछे पलटकर देखा, अपने सामने एक काले रंग और ऊँची क़द काठी के ख़ूँख़ार डाकू को खड़ा पाया। जिसके नाखून और बाल बहुत बड़े हुए थे, उसके हाथ में एक खुली हुई तलवार चमचमा रही थी और उसके गले में कटी हुई उँगलियों की एक माला लटक रही थी। कुल मिलाकर वह बहुत ही डरावना लग रहा था।

गौतम बुद्ध समझ गए, यही अंगुलिमाल है। एकदम शांत भाव के साथ मुस्कुराते हुए बुद्ध बोले, ‘मैं तो ठहर गया हूँ, लेकिन तू कब ठहरेगा?’, अंगुलिमाल अचंभित था क्यूँकि आजतक वह जिसके भी सामने जाता था वो उसे देखकर डर जाता था लेकिन गौतम बुद्ध डरना तो दूर उसके सामने शांत खड़े रहकर ना सिर्फ़ मुस्कुरा रहे थे बल्कि उससे प्रश्न भी कर रहे थे। अंगुलिमाल लगभग चिल्लाते हुए कर्कश आवाज़ में बोला, ‘हे सन्यासी! तुझे डर नहीं लग रहा? देख मैंने कितने लोगों को मारकर उनकी उँगलियों का हार बनाकर पहना हुआ है।’ बुद्ध ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘तुझसे क्या डरना! डरना हो तो उससे डरो जो सचमुच ताकतवर हो।’ अंगुलिमाल अट्टहास लगाते हुए हँसा और बोला, ‘सन्यासी तुझे शायद मेरी ताक़त का अंदाज़ा नहीं है, मैं एक बार में 10 लोगों के सर काट सकता हूँ।’

बुद्ध अभी भी एकदम शांत थे, वे बोले, ‘अच्छा चलो अगर तुम ताकतवर हो तो सामने वाले पेड़ के पाँच पत्ते तोड़ लाओ।’ अंगुलिमाल ज़ोर से हँसा और बोला, ‘पत्ते क्या तुम बोलो तो पूरा पेड़ उखाड़ लाऊँ।’ बुद्ध बोले नहीं बस पत्ते तोड़ लाओ।’ अंगुलिमाल ने पाँच की जगह दस पत्ते तोड़े और भगवान बुद्ध के समक्ष पहुँच गया और बोला, ‘यह लो!’ बुद्ध तुरंत बोले, ‘अगर वाक़ई ताकतवर हो तो इन पत्तों को वापस पेड़ पर लगा आओ।’ अंगुलिमाल क्रोधित होते हुए बोला, ‘भला कहीं टूटे हुए पत्ते वापस से जुड़ सकते है?’ उसका जवाब सुनते ही गौतम बुद्ध बोले, ‘जिस चीज़ को तुम जोड़ नहीं सकते उसे तोड़ने का अधिकार तुम्हें किसने दिया? भला निहत्थे और सीधे-सादे लोगों के सिर काटने में क्या बहादुरी है?’ अंगुलीलाल एकदम अवाक था, उसे समझ ही नहीं आया कि वह अब क्या करे?

गौतम बुद्ध की बातों ने उसे हक़ीक़त का एहसास करा दिया था। आज उसे उससे शक्तिशाली और ताकतवर इंसान मिल गया था। हृदय परिवर्तन होते ही उसे आत्मग्लानि होने लगी और वह गौतम बुद्ध के चरणों में गिर कर माफ़ी माँगने लगा और अपना शिष्य बना लेने के लिए विनती करने लगा।

जी हाँ दोस्तों, हमें भी ऐसा ही कुछ करना होगा, धीरे-धीरे ही सही हमें समाज में लोगों को एहसास कराना होगा कि व्यक्ति बड़ा पैसे से नहीं, बल्कि इंसानियत का भाव रखकर बनता है। इसके लिए पहले कदम पर हमें पैसे वालों से ज़्यादा इंसानियत के लिए कार्य करने वालों को सम्मान देना होगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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