फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
प्रत्येक क्षण में सच्चा आनंद तलाशें


Sep 4, 2021
प्रत्येक क्षण में सच्चा आनंद तलाशें!!!
अमीरपर गाँव में सभी समृद्ध और खुश लोग रहा करते थे। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण उस गाँव का मुखिया रामस्वरूप था। रामस्वरूप ने एक दीर्घकालिक योजना पर काम करते हुए समूचे गाँव और गाँववासियों का विकास किया था इसलिए हर कोई उनकी बात को ‘पत्थर की लकीर के समान ’ मानता था और जब भी किसी को कोई दुविधा होती थी तो उनके पास सलाह के लिए आया करता था।
वैसे रामस्वरूप स्वयं एक दुविधा या परेशानी में जीवन जी रहा था। उसकी सबसे बड़ी परेशानी उसका लापरवाह बेटा था। वह अपना पूरा समय दोस्तों के साथ घूमने, सोने में बर्बाद किया करता था और हमेशा बिना कुछ करे अमीर बनने के सपने देखा करता था। जब भी रामस्वरूप उसे कोई काम बताते, वह आलस के मारे उसे टाल जाता था।
कई साल ऐसे ही बीत गए, बढ़ती उम्र की वजह से रामस्वरूप की चिंता और बढ़ने लगी। उन्होंने अपने बेटे को जीवन का असली लक्ष्य और मेहनत के महत्व पर आधारित महत्वपूर्ण पाठ सिखाने के लिए एक योजना बनाई और एक दिन उसे अपने पास बुलाया और एक बेग, जिसमें रोज़मर्रा की ज़रूरत और खाने का कुछ सामान था, देते हुए कहा, ‘बेटा अब तुम बड़े हो गए हो और अब जीवन के सही उद्देश्य को पहचानने और उसके अनुसार ज़िम्मेदारी के साथ कार्य करने का समय आ चुका है। ख़ुशी और आनंद के साथ जीवन जीने के लिए यह आवश्यक है। मैं चाहता हूँ तुम इस दिशा में एक प्रयास करो। मैं तुम्हें एक ख़ज़ाने का नक़्शा दे रहा हूँ, इसे लेकर जाओ और उसे खोजकर लाओ।’
बेटे को पिता का यह विचार अच्छा लगा। वह सोच रहा था ख़ज़ाने के साथ-साथ उसे घूमने को भी मिल जाएगा और कुछ दिनों के लिए पिता की फ़ालतू बातें भी नहीं सुनना पड़ेगी। उसने पिता का दिया हुआ बेग और नक़्शा उठाया और उसी वक्त ख़ज़ाने की खोज में निकल गया।
ख़ज़ाने की चाह इतनी ज़्यादा थी कि सालभर की लम्बी यात्रा भी उसे सामान्य लग रही थी। नक़्शे के अनुसार लक्ष्य तक पहुँचने में उसने सभी मौसमों के साथ-साथ रास्ते में पड़ने वाले जंगल, नदी, पहाड़, पठार सभी को पार करा लेकिन वह किसी भी मौसम या स्थान का मज़ा नहीं ले पाया। ख़ैर, नक़्शे के हिसाब से गंतव्य पर पहुँचने पर उसने अपनी पूरी क्षमता के साथ ख़ज़ाना ढूँढने का प्रयास करा पर वह उसे नहीं मिला।
तीन दिनों तक जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने घर लौटने का निर्णय लिया। वह पिता द्वारा बोले गए झूठ से निराश ज़रूर था, पर लौटते समय उसने रास्ते में पड़ने वाले नदी, पहाड़, पठार, जंगल, बदलते मौसम आदि सभी का मज़ा लिया। इस बार उसे रंगबिरंगे फूल, सुंदर पौधे, पक्षी, सूर्योदय और सूर्यास्त सब कुछ देखने में मज़ा आ रहा था।
लौटते समय उसने स्वयं की रक्षा करना, खुद के लिए भोजन व अन्य ज़रूरी संसाधन जुटाना, पैसे कमाना और इन सब चीजों को सहेजना सीखा। यात्रा के इसी चरण में उसने योजना बनाना और उसके अनुसार कार्य करना, भी सीख लिया था। रास्ते में वह जरूरतमंद लोगों की मदद भी करता जा रहा था।
यात्रा का दूसरा हिस्सा उसे ज़्यादा आनंददायक लग रहा था। लौटते समय में सफ़र कैसे कट गया, उसे पता ही नहीं चला। घर पहुँचते ही उसका सामना पिता से हुआ, उसने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। वहीं पिता ने आशीर्वाद देते ही उसे गले लगाया और उससे पूछा, ‘यात्रा कैसी रही और तुम्हें ख़ज़ाना मिला या नहीं?’
बेटा बोला, ‘मुझे माफ करें पिताजी, मैं ख़ज़ाना तो नहीं ढूँढ पाया लेकिन यात्रा बड़ी मज़ेदार थी।’ पिता मुस्कुराते हुए बोले, ‘वहाँ कोई ख़ज़ाना था ही नहीं तो तुम्हें मिलता कैसे?’ पिता की बात सुन बेटा आश्चर्यचकित था। बेटे द्वारा पिता से वहाँ भेजने का कारण पूछने पर पिता ने उसे पहले यात्रा के संस्मरण सुनाने के लिए कहा।
बेटा बोला, ‘पिताजी, ख़ज़ाना खोजने जाते समय यात्रा एकदम उबाऊ और थकाने वाली थी। जाते समय मुझे सिर्फ़ ख़ज़ाने की चिंता थी। मुझे लग रहा था कि मुझे वहाँ पहुँचने में देरी ना हो जाए अन्यथा मुझसे पहले कोई और ख़ज़ाना ले जाएगा। लेकिन, लौटते समय स्थिति इसके एकदम विपरीत थी। मुझे किसी बात की जल्दी नहीं थी, मैंने हर दिन आनंदपूर्वक बिताया। लौटते समय मैंने प्रकृति, प्राकृतिक नज़ारे, पशु-पक्षी सबके साथ मज़ेदार समय बिताया, कुछ नए दोस्त बनाए और ईश्वर के असंख्य चमत्कार देखे। मैंने एक अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक कलाएँ और कौशल सीखा। कुल मिलाकर मैंने इतना कुछ सीखा कि मुझे ख़ज़ाना ना मिलने का कोई दुःख ही नहीं है।’
बेटे की बात सुनते ही पिता बोले, ‘बेटा जाते वक्त तुम्हारा ध्यान सिर्फ़ ख़ज़ाने पर था, जो तुम्हारा एकमात्र लक्ष्य था लेकिन लौटते वक्त तुम निश्चिंत थे और अपने हर पल को जीने का प्रयास कर रहे थे। इस दौरान तुमने ना सिर्फ़ उपलब्ध चीजों का आनंद लिया बल्कि साथ ही तुमने जीवन के लिए आवश्यक कौशल भी सीखे। याद रखना बेटा जीवन में लक्ष्य ज़रूरी है लेकिन यह कभी भी सिर्फ़ भौतिक नहीं होते और वैसे भी असली ख़ज़ाना जिसकी खोज में मैंने तुम्हें भेजा था वह तो तुम्हें मिल ही गया है।’
जी हाँ दोस्तों, जीवन का लक्ष्य सिर्फ़ भौतिक संसाधन इकट्ठा करना या पाना नहीं होता। कई बार जब आप जीवन में मिलने वाले हर अनुभव को आनंद के साथ स्वीकारते हैं, उसके साथ आगे बढ़ते हैं, तभी जीवन के प्रत्येक क्षण में सच्चे आनंद का ख़ज़ाना पाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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