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बच्चों के ख़राब व्यवहार को सम्भालने के 5 तरीक़े


Mar 29, 2021
बच्चों के ख़राब व्यवहार को सम्भालने के 5 तरीक़े…
एक बार छत्तीसगढ़ में कार्यक्रम के पश्चात आयोजक के घर चाय और नाश्ते के लिए जाने का मौक़ा मिला। परिवार के आत्मीय भाव व सभी से परिचय करके बहुत अच्छा लग रहा था। परिचय की अंतिम कड़ी में मैं उनके 5-6 वर्षीय बेटे से मिला। परिवार वाले बच्चे के पीछे पड़े हुए थे कि वो सभी को नमस्ते करे और बच्चा पर्दे के पीछे छुपना पसंद कर रहा था। थोड़ी देर बाद परिवार के कुछ सदस्य गाना अथवा कविता सुनाने के लिए पीछे पड़ गए। मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे वह बच्चा नहीं कठपुतली हो।
बच्चे के अनजानों को नमस्ते और कविता ना सुनाने पर परिवार द्वारा कम से कम पंद्रह-बीस बार ‘नो’, ’बेड हैबिट्स’, ‘गुड बॉय’, ‘बेड बॉय’ आदि बोला गया। बात बदलने के मेरे प्रयास के बाद भी वे उसकी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करने पर अड़े रहे। नाश्ते में अपनी पसंदीदा चीज़ देख बच्चा सबके बीच आकर सोफ़े पर चढ़ के उसके बैक पर बैठ गया। उसके ऐसा करते ही कई आँखें उसे एक साथ घूरने लगी। कुछ देर इंतज़ार के बाद बच्चे ने एक हाथ से नाश्ते में रखे लड्डू को और दूसरे हाथ से नमकीन उठा लिया। ऐसा करना परिवार के एक सदस्या को नागवार गुजरा और उन्होंने एक थप्पड़ उस बच्चे को मार दिया। बच्चा रोता हुआ वहाँ से चला गया।
उस वक्त मेरे मन में एक विचार चल रहा था, यह थप्पड़ पड़ना किसे चाहिए था? उस बच्चे को तो बिलकुल भी नहीं क्यूँकि बच्चा एकदम नैचुरल था। उसने वही करा जो वो सामान्य तौर पर घर में किया करता था। वह दो चेहरे रखने लायक़ स्मार्ट नहीं हुआ था। मेरा मानना है कि बच्चों को संस्कार सिखाने के पहले हमें उनसे किस तरह व्यवहार करना चाहिए, सीखना होगा। आईए आज हम बच्चों के ख़राब बर्ताव या व्यवहार को सम्भालने के पाँच तरीक़े सीखते हैं-
१) बच्चे सुनने से ज़्यादा देखकर सीखते हैं-
बच्चे बोली गई बातों से ज़्यादा आप जो करते हैं, उसे देखकर सीखते हैं, अर्थात् बच्चा आपका प्रतिबिम्ब होता है। वह पिता को ‘सुपर मेन’ और माँ को ‘एंजल’ मानता है और इसीलिए उनके व्यवहार की नक़ल करता हैं। अगर आप बच्चे में कोई भी बुरी आदत देखें तो सबसे पहले अपने व्यवहार पर ध्यान दें। हो सकता है आप काम के अत्यधिक दबाव, तनाव, नकारात्मक भाव या भावनात्मक रूप से परेशान हों, पर बच्चे के सामने इसे प्रदर्शित करना बंद करें। इसके स्थान पर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीखें। खुद उसके सामने वही व्यवहार करें जो आप उससे चाहते हैं।
२) अपने शब्दों पर अटल रहें अर्थात् वादा निभाएँ
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बच्चे शब्दों को बहुत गम्भीरता से लेकर लम्बे समय तक याद रखते हैं। इसलिए अगर आपने उनसे वादा करा है तो उसे हर हाल में निभाएँ, भले ही उसके लिए आपको अतिरिक्त कार्य क्यूँ ना करना पड़े। वादे पूरे ना करना बच्चों में निराशा का भाव लाता है और वे नासमझी की वजह से इसे अशिष्ट व्यवहार से प्रदर्शित करते हैं।
३)बच्चे को कठपुतली ना समझें-
यदि आपके बच्चे को गाना गाना, डाँस करना, चेहरे बनाना, ड्रॉइंग करना, कोई इंस्ट्रुमेंट बजाना, कुछ विशिष्ट शब्दों को बोलना आता है तो उसे लोगों के सामने उसका प्रदर्शन करने के लिए बाध्य ना करें। इसी तरह बच्चे के सामने अपने नकारात्मक व्यवहार पर चर्चा करना या बच्चे के नकारात्मक व्यवहार के बारे में बताना उसे ग़लत व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। इसके स्थान पर लोगों को उसकी सकारात्मक और अच्छी आदतों के बारे में बताएँ। ऐसा करना उसका आत्मविश्वास बढ़ाकर उसके अंदर गर्व का भाव पैदा करता है, उसे ज़िम्मेदार बनाता है।
४) अच्छा व्यवहार सुनिश्चित करें-
बच्चों के सामने लड़ना, गलत शब्दों का प्रयोग करना, व्यसनों में उलझे रहना उसके बाल मन पर गहरा असर करता है। बार-बार ऐसा करना उसकी इस धारणा को मज़बूत करता है कि विपरीत परिस्थितियों से निपटने के यही तरीक़े होते हैं। इसके स्थान पर विशेषज्ञों की मदद लेना, अपनों से बड़ों की राय लेकर काम करना, बड़ों का आदर करना, छोटों का ख़याल रखना, अच्छे कार्यों के लिए बच्चे की पीठ थपथपाना, तारीफ़ करना, पुरस्कृत करना उसे जीवन जीने का सही तरीक़ा सिखा देता है। याद रखें पुरस्कार सरल और विचारशील होने चाहिए, न कि भौतिकवादी। इसलिए पुरस्कार में खिलौने के स्थान पर उसे नई किताब दें, उसे कहीं घुमाने ले जाएँ या अतिरिक्त समय दें।
५) बच्चे की भावनाओं को समझें और उसका सम्मान करें -
कुछ बच्चे बात को जल्दी जबकि कुछ ज़्यादा समय लेकर समझते हैं। किसी एक अनुभव के आधार पर बच्चे के बारे में धारणा ना बनाएँ। कई बार बच्चे शब्द ना होने की वजह से अपनी बात समझा नहीं पाते और हम उन्हें ज़िद्दी या कुछ अन्य शब्दों से लेबल कर देते हैं। कई बार सिर्फ़ भूख या नींद भी उन्हें किसी काम में भाग लेने से रोक देती है, उनकी भावनाओं को समझें और उसका सम्मान करें। अगर वह आपकी अपेक्षा के विरुद्ध व्यवहार कर रहा है तो उसे डाँटने के स्थान पर पूछें, ‘आपने ऐसा क्यूँ किया?’ बिना किसी वजह के भी आप उससे मुस्कुराकर पूछ सकते हैं, ‘और बताओ तुम्हारे सब दोस्त कैसे हैं?, आजकल कैसा चल रहा है?, तुम कभी-कभी बुरा व्यवहार क्यों करते हो? आदि…’ ऐसा करना आपको बच्चे के सोचने, समझने के तरीक़े को पहचानने का मौक़ा देगा।
याद रखिएगा दोस्तों, विभिन्न अध्ययनों के अनुसार अत्यधिक डाँटना, सजा देना या टोकना नकारात्मक परिणाम ही सामने लाता है और हम पेरेंटिंग के महान अनुभवों से वंचित रह जाते है। इसके स्थान पर अपने अंदर उपरोक्त बदलाव लाएँ और पेरेंटिंग के अनुभव को जीवन की एक सुखद अनुभूति बनाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com