फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
बाहर नहीं, अपने अंदर तलाशें ख़ुशियाँ
Aug 29, 2021
बाहर नहीं, अपने अंदर तलाशें ख़ुशियाँ !!!
दोस्तों अकसर लोग अपनी ख़ुशियों को किसी ना किसी लक्ष्य के साथ जोड़कर टालते रहते हैं। जैसे, पहले परीक्षा या प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए सब कुछ छोड़कर तैयारियों में जुटना, फिर नौकरी या व्यापार और उसके बाद कार, घर आदि के लिए पागलपन की हद तक काम करना। लेकिन अकसर इन लक्ष्यों को पाने के प्रयास में हम जीना ही भूल जाते हैं। याद रखिएगा दोस्तों, जीवन ना तो आने वाले पल में हैं ना ही गुजरे हुए पल में। अगर आप वाक़ई जीवन का मज़ा लेना चाहते हैं तो वर्तमान को आनंद पूर्वक जीना सीखें। आइए इसे एक बहुत प्यारी कहानी से सीखने का प्रयास करते हैं।
सुदूर समुद्र के किनारे पर एक बहुत सुंदर गाँव था, उस गाँव की ख़ासियत वहाँ के लोग थे जो हमेशा, हर हाल में खुश रहा करते थे, सिवाय एक बूढ़े आदमी के। वह बुढ़ा आदमी स्वयं को दुनिया के सबसे दुर्भाग्यशाली लोगों में से एक मानता था। इसलिए उदास भी रहता था, उसे हर किसी से, किसी ना किसी बात पर शिकायत रहती थी।
उसे बुरे मूड में देख गाँव के हर शख़्स ने कभी ना कभी उसे खुश रखने की कोशिश करी थी लेकिन कभी भी कोई सफल नहीं हो पाया। हर गुजरते दिन के साथ उसके शब्दों में कड़वाहट बढ़ती जा रही थी। उसके ज़हरीले शब्द लोगों का दिल दुखा देते थे इसलिए गाँव के लोगों ने धीरे-धीरे उससे दूरी बनाना शुरू कर दी। यह स्वभाविक भी था क्यूँकि उसके बुरे शब्द एक संक्रामक बीमारी की तरह दूसरों के मूड को भी ख़राब कर दिया करते थे।
एक दिन गाँव के लोगों ने उस अस्सी वर्षीय बूढ़े शख़्स का अविश्वसनीय रूप देखा। उस दिन वह शख़्स हंसता हुआ एकदम खुश नज़र आ रहा था। उसे किसी व्यक्ति या चीज़ से कोई शिकायत नहीं थी। कुछ ही देर में यह खबर आग की तरह पूरे गाँव में फैल गई। शुरू में तो लोगों ने इसे अफ़वाह माना लेकिन जब उन्होंने उस बुजुर्ग का ख़ुशी से चमकता हुआ चेहरा देखा तो सभी हैरान रह गए। लेकिन इसके बाद भी गाँव के कई लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही बुजुर्ग व्यक्ति हैं।
थोड़ी देर तो लोगों ने इसे चमत्कार की भाँति देखा लेकिन जब पूरे दिन ही वह एकदम खुश रहा तो गाँव वालों ने मिलकर उस बूढ़े आदमी से पूछा, ‘क्या बात है दादा, आज अचानक इतने खुश कैसे नज़र आ रहे हैं? आज ऐसा क्या चमत्कार हो गया जो आप इतने परिवर्तित हो गए हैं?’ बुजुर्ग व्यक्ति बोले, ‘कुछ खास नहीं। अस्सी साल तक मैं खुशी का पीछा कर रहा था अर्थात् उसे पाने के लिए प्रयत्न कर रहा था पर यह एक बेकार आईडिया था। कल मैंने निर्णय लिया कि अब मैं ख़ुशी की तलाश नहीं करूँगा, उसके बिना अपने जीवन का आनंद लेते हुए जियूँगा और बस उस फ़ैसले के बाद से ही मैं आनंद पूर्वक जीवन जी रहा हूँ और इसीलिए खुश हूँ।
जी हाँ दोस्तों, जीवन को पूरी योजना के साथ जीना असम्भव है। जिस तरह हम अपने जीवन को जीने के लिए योजना बनाते हैं ठीक उसी तरह ईश्वर ने भी हमारे लिए कुछ योजना बना रखी है। कई बार आपकी योजना और ईश्वर की योजना एक जैसी होती है तो आपको लगता है मैं सफल हो गया और हम खुश हो जाते हैं। लेकिन कई बार स्थिति इसके ठीक विपरीत रहती है, आपकी और ईश्वर की योजना अलग-अलग होती है और अंततः काम ईश्वर की योजना के अनुसार हो जाता है और ऐसी स्थिति में मनमाफ़िक परिणाम ना मिल पाने की वजह से हम दुखी हो जाते हैं, परेशान रहने लगते हैं या शिकायत करने लगते हैं।
दोस्तों, जब हर हाल में योजना ईश्वर की ही चलनी है तो किसी भी परिणाम से दुखी क्यों होना? जीवन का रहस्य बिना परिणाम की चिंता किये अपना सौ प्रतिशत देने में हैं। किसी भी तरह की अपेक्षा रखना, फिर चाहे वह परिणाम की ही क्यों ना हो, हमारे दुखों की मुख्य वजह होती हैं।
इसीलिए तो कहा गया है, ‘खुश रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने जीवन का आनंद लें। यही सबसे ज़्यादा मायने रखता है क्यूँकि ख़ुशी के लिए काम करेंगे तो ख़ुशी नही मिलेगी। लेकिन खुश होकर काम करेंगे तो ख़ुशी ज़रूर मिलेगी। याद रखिएगा दोस्तों, ख़ुशी इस बात पर निर्भर नही करती कि आप कौन है या आपके पास क्या है बल्कि यह इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर