top of page

फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले

बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले
global_herald_logo_1.png

Dec 17, 2021

बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले…


दोस्तों यह गाना तो निश्चित तौर पर आपने सुना ही होगा, ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली भाई, कभी ये हंसाए, कभी ये रुलाए!!!’ ज़िंदगी कैसी है पहेली अर्थात् जीवन ऐसे गूढ़ प्रश्नों से भरा हुआ  है जिसका निराकरण सहज नहीं है। जिसमें रोज़ हमारे सामने नए प्रश्न, नई समस्याएँ, चुनौतियों और अनिश्चितताओं के साथ हमारे सामने खड़ी होती हैं और जब आप रोज़ नई चुनौतियों, नए सवालों का जवाब खोजने का प्रयास करते हैं तो कई बार ग़लतियाँ कर बैठते हैं और इन्हीं ग़लतियों के लिए कई बार आप रो लेते हैं और कई बार मनमाफ़िक मिले परिणाम पर हंस लेते हैं। 


यहाँ तक तो सब ठीक है दोस्तों, लेकिन एक ही गलती पर बार-बार रोना, खुद को दोषी मानना, कहीं से भी उचित है क्या? बिलकुल नहीं! जो काम करेगा, निर्णय लेगा वही ग़लतियाँ भी करेगा। ग़लतियाँ ही तो उसे कुछ नया सीखने, बेहतर बनने का अवसर देती हैं। लेकिन कई बार हम इन ग़लतियों को अपने ज़हन में इतनी ज़्यादा जगह दे देते हैं कि उन्हें चाहकर भी भूल नहीं पाते हैं और उसकी वजह से चिंता, तनाव, दबाव के शिकार हो जाते हैं। इस स्थिति को मैं आपको एक बोध कथा से समझाने का प्रयास करता हूँ-


बात कई दशक पुरानी है। एक साधु अपने शिष्य के साथ अपने मठ की ओर जा रहे थे तभी अचानक बारिश आ गयी। बारिश से बचने के लिए साधु अपने शिष्य के साथ एक पेड़ के नीचे रुक गए।


बारिश रुकने के पश्चात साधु महाराज ने अपने शिष्य के साथ अपने मठ की ओर चलना शुरू ही किया था कि उनका ध्यान कुछ दूरी पर खड़ी एक महिला पर गया जो बहुत परेशान लग रही थी। साधु महाराज ने उस महिला की मदद करने का निर्णय लिया और उसके पास जाकर उसकी समस्या समझी। महिला ने साधु महाराज को बताया कि उसके लिए बहते और भरे हुए पानी में रास्ता पार करना मुश्किल हो रहा है और घर पर बच्चा अकेला होने की वजह से, वह परेशान है।


साधु महाराज ने कुछ पल विचार करा उसके बाद उस महिला को उठाकर सड़क के दूसरी ओर छोड़ दिया और मठ की ओर चल दिए। गुरु को महिला को छूते देख शिष्य दुविधा में पड़ गया। मठ पहुँचने पर उसने बड़ी हिम्मत जुटाकर गुरु से पूछा, ‘गुरु महाराज, आपने हमें सिखाया था कि एक भिक्षुक, साधु या महात्मा के रूप में हम किसी भी महिला को छू नहीं सकते हैं, क्या यह सही है? शिष्य का प्रश्न सुन गुरुजी बोले, ‘हाँ, यह बिलकुल सही है।’ गुरु के हाँ कहते ही शिष्य बोला, ‘गुरुजी फिर आपने उस महिला को कैसे उठा लिया?’


शिष्य का प्रश्न सुनते ही गुरु को ज़ोर से हंसी आ गई। उन्हें हँसता देख शिष्य फिर से बोला, ‘गुरु जी मैं इतना दुविधा में हूँ और आप हंस रहे हैं। मैं आपका दोहरा व्यवहार, दोहरे नियम समझ नहीं पा रहा हूँ।’ शिष्य की बात सुन गुरुजी गम्भीर वाणी के साथ बोले, ‘मैंने तेज़ बहाव वाले स्थान को सुरक्षित पार करने के लिए उस महिला को अपनी माँ मान गोदी में उठाया था और दूसरी ओर सुरक्षित छोड़ दिया था। लेकिन तुम उसे अभी तक उठाए-उठाए घूम रहे हो। इसीलिए मुझे हंसी आ रही थी।’ 


गुरुजी की बात सुन शिष्य को तो अपनी भूल का एहसास हो गया था, लेकिन दोस्तों अक्सर हम इसी गलती को अपने जीवन में बार-बार दोहराते हैं और रोज़मर्रा के कार्यों में जाने-अनजाने में की गई ग़लतियों, उससे मिले नकारात्मक अनुभवों, क्या सही और क्या ग़लत की उलझनों, भविष्य अथवा मनचाहे परिणाम की चिंता, खुद से और बेहतर करने की अपेक्षा, जैसे, अनगिनत बोझ लिए घूमते रहते हैं और खुद के प्रति इतने कठोर हो जाते हैं कि अपनी ख़ुशी के बीच में खुद ही रोड़े बन जाते हैं।


इंसान ग़लतियाँ करके उतना परेशान या दुखी नहीं होता, जितना उन्हें बार-बार याद करके होता है। खुद को माफ़ ना करना दोस्तों हमारे ऊपर विचारों का भार इतना बढ़ा देता है कि अक्सर उसके बोझ के साथ खुलकर जीना असम्भव हो जाता है। जीवनभर इस अनावश्यक बोझ को उठाए जीवन जीने के स्थान पर अगर आप खुलकर अपने जीवन को सौ प्रतिशत जीना चाहते हैं तो सबसे पहले खुद को व्यर्थ की चिंता के भार से मुक्त करें, अर्थात् फ़ालतू की चिंता करना बंद करें। इसके लिए आपको सबसे पहले अपने सोचने के तरीक़े में बदलाव करना होगा। जब भी आप स्वयं को व्यर्थ की चिंता या दुविधा में पाएँ तो खुद के प्रति कठोर होने के स्थान पर बड़े प्यार से स्वयं को याद दिलाएँ कि आपने वही किया जो आपके चेतन मन ने उस वक्त करने के लिए कहा था या उन परिस्थितियों में जो आपको उचित लगा था या जो आप उस वक्त कर सकते थे। अब वह समय बीत चुका है, कार्य खत्म हो चुका है। अब उस निर्णय, उस क्रिया को बदल पाना असंभव है। ऐसे में अब जो परिणाम सामने आ चुका है या आएगा अब हम उसका यथासंभव समझ बूझ, शक्ति और ईमानदारी से सामना करेंगे। 


याद रखिएगा दोस्तों, ग़लती करना मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है, ईश्वर ने उसे ऐसा ही बनाया है। वह सब कुछ इस दुनिया में आकर ही सीखता है। अगर वह ग़लतियाँ नहीं करेगा तो सीखेगा कैसा? इसलिए बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

1_edited_edited.jpg

Be the Best Student

Build rock solid attitude with other life skills.

05/09/21 - 11/09/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)

Duration - 14hrs (120m per day)

Investment -  Rs. 2500/-

DSC_5320_edited.jpg

MBA

( Maximize Business Achievement )

in 5 Days

30/08/21 - 03/09/21

Free Introductory briefing session

Batch 1 - For all adults

Duration - 7.5hrs (90m per day)

Investment - Rs. 7500/-

041_edited.jpg

Goal Setting

A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.

01/10/21 - 04/10/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)

Duration - 10hrs (60m per day)

Investment - Rs. 1300/-

bottom of page