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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले

बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले
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Sep 27, 2021

बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले…


आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत हम चिड़िया की एक कहानी से करते हैं। सुदूर जंगल के सुरम्य वनों के बीच एक बड़ी प्यारी सी आज़ाद चिड़िया रहती थी। मैं उसे आज़ाद चिड़िया इसलिए कह रहा हूँ क्यूँकि वह जंगल के कोने-कोने को देखने, नए-नए अनुभव लेने के उद्देश्य से स्वच्छंदता के साथ इधर-उधर उड़ा करती थी। गर्मी का मौसम हो या बारिश का, उसकी इस आदत में कोई परिवर्तन नहीं आता था।


उड़ते-उड़ते ही उसे जहां भूख लगती थी वह दाना चुग लेती थी, जहां प्यास लगती थी आस-पास पानी ढूँढकर पी लिया करती थी। कुछ आदतों को छोड़ दें तो वह किसी भी अन्य चिड़िया या पक्षी के ही समान थी। उसकी विचित्र आदतों में से एक आदत थी, अपने जीवन में घटी अच्छी या बुरी यादों को ज़मीन से उठाए पत्थरों से जोड़कर याद रखना। प्रतिदिन जब भी उसे समय मिलता था वह उन पत्थरों को लेकर बैठ जाती और एक-एक पत्थर उठाकर उनसे जुड़ी घटनाओं को याद करती। अगर वह घटना अच्छी हो तो वह मुस्कुराती थी और अगर वह घटना बुरी होती थी तो वह रोया करती थी।


इन पत्थरों से उसका लगाव इतना अधिक था कि वह कहीं भी जाए उन्हें हमेशा अपने साथ रखती थी। फिर चाहे वह आसमान में उड़ रही हो या धरती पर दाना चुग रही हो। जीवन जीने के इन्हीं विचित्र तरीक़ों के साथ कई वर्ष बीत गए, उसे एहसास ही नहीं हुआ कि बढ़ते हुए पत्थरों की संख्या के साथ उसकी जीवनशैली भी बदलती जा रही है। अब वह अपने सपनों, अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उतना समय नहीं दे पाती थी। उसका ज़्यादातर समय पत्थरों के साथ पुरानी यादों के बीच ही बीत ज़ाया करता था। बीतते दिनों के साथ उसका उड़ना मुश्किल होता जा रहा था।


पत्थरों की बढ़ती संख्या की वजह से जीवनशैली में आए परिवर्तन का उसे एहसास ही नहीं था। कुछ दिनों बाद ऐसी स्थिति हो गई कि स्वच्छंद आकाश में उड़ने वाली चिड़िया अब ढंग से चल भी नहीं पाती थी। पत्थरों के बढ़ते वजन से दैनिक कार्यों में तकलीफ़ होने के बाद भी इस बहादुर चिड़िया ने पुरानी बातों को याद करना नहीं छोड़ा अर्थात् वो अभी भी पत्थरों को साथ लेकर चलने का प्रयास करती थी और दिन में कई बार एक-एक पत्थर लेकर बीते हुए पलों को याद कर, कभी रोती तो कभी मुस्कुराती थी और एक दिन इसी प्रक्रिया के बीच वह भूख और प्यास से मर गई। अब बस वहाँ पड़ी पत्थरों की थैली यदा कदा उसकी याद दिला दिया करती थी।


वैसे दोस्तों यह कहानी किसी चिड़िया की नहीं बल्कि आपके-मेरे बीच मौजूद कई लोगों की है। हम सभी लोग बचपन में असंख्य सपनों के साथ ऊँची उड़ान भरते हैं और पूरी दुनिया को खंगालने, अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। इन्हीं प्रयासों के बीच कई बार हमें अपनी इच्छानुसार सकारात्मक परिणाम मिलते हैं तो कई बार नकारात्मक। 


गुजरते वक्त के साथ यही परिणाम हमारे लिए खट्टे-मीठे अनुभव बनते जाते हैं और यही अनुभव धीरे-धीरे हमारे जीवन के प्रति दृष्टिकोण का निर्माण करता है और धारणा का रूप लेकर हमारे जीवन को प्रभावित करने लगता हैं। दोस्तों अगर सही वक्त पर इन भावों, यादों, अनुभवों को प्रबंधित ना किया जाए, इसके भार से मुक्त ना हुआ जाए तो यह हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करने की ताक़त रखता है।


उदाहरण के लिए लोगों द्वारा आमतौर पर कहे जाने वाले इन वाक्यों को याद करके देख लीजिए- ‘आजकल तो सभी रिश्ते मतलबी होते जा रहे हैं।’ या ‘आजकल तो किसी पर विश्वास करना खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने के समान है।’ या फिर ‘यह हमेशा ऐसा ही करता है, लोग ऐसे ही होते हैं।’ आदि… यह सब वाक्य आए कहाँ से? निश्चित तौर पर अतीत के नकारातमक अनुभवों से।


दोस्तों याद रखिएगा यह जीवन वैसा ही है जैसा आप इसे देखते हैं। अगर आप चंद नकारात्मक अनुभवों या यादों को सब कुछ मान लेंगे तो यह नकारात्मक है और अगर आप उन्हें भूल कर सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ेंगे तो यह वैसा ही है। अगर आप अपने जीवन को पूर्णता के साथ जीना चाहते हैं तो इस बात को अपना मूल मंत्र बना लें, बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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