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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

भावना नहीं, कर्तव्य है बड़ा

भावना नहीं, कर्तव्य है बड़ा
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May 14, 2021
भावना नहीं, कर्तव्य है बड़ा…

दोस्तों हम सभी इस वक्त विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे हैं और कहीं ना कहीं पिछले एक वर्ष में आम मध्यमवर्गीय परिवार ने ही सबसे अधिक नुक़सान सहन किया है। फिर चाहे वह नुक़सान आर्थिक हो या मानसिक या फिर भावनात्मक। लेकिन इसके बाद भी यही मध्यमवर्गीय परिवार अपना सर्वस्व लगाकर मैदान में डटा हुआ है क्यूँकि वह चाहता है कि किसी तरह हम इस महामारी पर क़ाबू पाकर सामान्य स्थिति में आ जाएँ।

लेकिन दोस्तों, इसी समय हमारे बीच एक और वर्ग सक्रिय है जो इस आपदा में अवसर को खोज रहा है और हर स्तर पर सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिए कार्य कर रहा है। फिर चाहे आम लोगों की ज़रूरतों की चीजों की कालाबाज़ारी करके आर्थिक फ़ायदा उठाना हो या कुतर्क के द्वारा धार्मिक अस्थिरता फैलाकर राजनैतिक फ़ायदा उठाना हो। लेकिन मुख्य परेशानी इसके बाद शुरू होती है, हम में से ही कुछ लोग इस विपरीत समय में, बिना गहराई से सोचे या तथ्यों को परखे उनकी बातों को समाज में फैलाना शुरू कर देते हैं और गलत फ़ायदा चाहने वाले लोगों को उनके मक़सद में सफल बना देते हैं।

हो सकता है दोस्तों हमारी सरकार कुछ मुद्दों पर विफल रही हो, हो सकता है उन्होंने कुछ ग़लत निर्णय करे हों पर एक बार सोच कर देखिए इस तरह विचारों का युद्ध करके, अनावश्यक रूप से समाज को बाँटकर क्या हम इस महामारी से निपट पाएँगे? क्या यह विचारों का युद्ध सरकार को बदल देगा? दोस्तों इस वक्त हमारी प्राथमिकता सिर्फ़ और सिर्फ़ एक होना चाहिए कि हम सब कंधे से कंधा मिलाकर अपना सकारात्मक योगदान इस वायरस से निपटने के लिए दें। याद रखिएगा मूक दर्शक बनकर भीड़ लगाने या अपने अधिकार के लिए चिल्लाने या भीख माँगने से कुछ नहीं होगा। इस वक्त जल्दी जीतना है तो अधिकार की नहीं कर्तव्य की बात करें।

इसे मैं आपको पद्म विभूषण श्री घनश्यामदास जी बिड़ला, जो कि भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी.के.के.एम. बिड़ला के संस्थापक होने के साथ ही स्वाधीनता सेनानी भी थे, के जीवन की एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। एक बार श्री घनश्यामदास दास जी बिडला आवश्यक कार्य से अपने कार्यालय जा रहे थे। उस दिन उनका ड्राइवर जल्दी कार्यालय पहुँचने के उद्देश्य से गाड़ी को तीव्र गति से चला रहा था। रास्ते में एक तालाब के पास उन्हें काफ़ी भीड़ खड़ी हुई दिखी। उन्होंने अपने ड्राइवर से इसका कारण पूछा तो ड्राइवर ने कहा, ‘साहब, शायद कोई तालाब में डूब गया होगा।’

उन्होंने ड्राइवर से तुरंत गाड़ी रुकवाई और दौड़ते हुए उस तालाब के किनारे तक पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा एक 8-9 वर्षीय लड़का डूब रहा है और लोग उसे बचाने के स्थान पर सिर्फ़ बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे हैं। वे सूट-बूट पहने हुए ही तालाब में कूद गए और उस बच्चे को पानी से बाहर निकाल लाए और उसे अपनी कार से ही अस्पताल ले गए और वहाँ भीगे हुए कपड़ों में ही तब तक रुके रहे, जब तक बच्चा ख़तरे से बाहर नहीं आ गया।

अस्पताल से निकल कर वे बिना समय गँवाए अपने कार्यालय पहुँच गए। उन्हें भीगे कपड़ों में देख सभी कर्मचारियों को आश्चर्य हो रहा था लेकिन जैसे ही उन्हें पूरी घटना का पता चला वे श्री  घनश्यामदास जी बिड़ला के द्वारा किए गए कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए बोले, ‘सर, आप तो महान है।’ श्री बिडला ने सभी को रोका और बोले, ‘यह तो हमारा कर्तव्य था।’ और भीगे कपड़ों में ही अपने केबिन में जाकर अपना कार्य करना शुरू कर दिया।

दोस्तों लोग कर्तव्य निर्वहन से महान बनते हैं और महान लोगों से महान देश का निर्माण होता है। श्री बिडला ने अपनी व्यवसायिक प्राथमिकता से ज़्यादा ज़रूरी किसी अनजान की जान बचाना समझा। ठीक उसी तरह हम सभी को वक्त की ज़रूरत को देखते हुए क्या होना था, क्या हुआ, कौन सही है, कौन गलत है, जैसी लोगों के मनोबल को तोड़ने वाली बातों को छोड़कर, इससे निपटने के लिए क्या कर सकते हैं, पर ध्यान लगाना होगा, तभी हम इससे जीतकर जल्द सामान्य स्थिति में आ पाएँगे।

याद रखिएगा कर्मों की ध्वनि शब्दों से ऊँची होती है और भावना में बहकर प्रायः व्यक्ति कर्म से भटक जाता है। इसलिए भावना में बहने से बचें और जल्द जीतने के लिए अधिकार की नहीं, कर्तव्य की बात करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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