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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

मन के जीते जीत है, मन के हारे हार

मन के जीते जीत है, मन के हारे हार
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April 27, 2021
मन के जीते जीत है, मन के हारे हार!!!

दोस्तों माना इस वक्त हम मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं लेकिन हमें एक बात हमेशा याद रखना चाहिए कि सोना आग में तप कर  ही निखरता है। हो सकता है ईश्वर हमें और ज़्यादा निखारने का प्रयास कर रहा हो। हो सकता है वह हमें वापस से ज़िंदगी का कोई महत्वपूर्ण पाठ सिखाना चाहता हो। हम सभी अपने जीवन में कभी ना कभी, किसी ना किसी रूप में असफल होते हैं, कई बार वह असफलता बहुत छोटी सी होती है तो कई बार बड़ी। लेकिन असफलता छोटी है या बड़ी इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। जो बात आपको आम लोगों से अलग बनाती है वह है कि आपने असफलता के बाद वापसी कितनी धमाकेदार करी। चलिए मैं आपको आज एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जिसे सुनकर आपको यक़ीन हो जाएगा कि कुछ भी क्यूँ ना हो जाए ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है’ और हम सब अपनी असीमित क्षमताओं को पहचानकर, उन्हें काम में लेकर गर्व से कह सकते हैं ‘ज़िंदगी ज़िंदाबाद’। तो चलिए शुरू करते हैं-

कई साल पहले अमेरिका में एक विद्यालय में भयानक आग लग गई। इस आग की लपेट में विद्यालय में पढ़ने वाला एक छोटा सा बच्चा आ गया। आग की वजह से कमर के नीचे का पूरा शरीर बुरी तरह झुलस गया था। डॉक्टर ने बच्चे के प्राथमिक उपचार के बाद उसकी माँ को बुलाया और उनसे कहा कि इस बच्चे की मृत्यु निश्चित है और अगर वह किसी तरह बच भी गया तो वह जीवन भर अपंग रहेगा।

इसके विपरीत वह लड़का जीवन से बहुत प्यार करता था। इसीलिए मरना तो छोड़िए वह अपंग के रूप में भी जीवन नहीं जीना चाहता था। जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिए से वह बच्चा कुछ ही दिनों में ख़तरे से बाहर आ गया। उसकी तेज रिकवरी देख डॉक्टर तक आश्चर्यचकित थे। वह बच गया लेकिन कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह पेरालाइज्ड था, उस बच्चे के पैरों में  मोटर क्षमता नहीं थी। कुछ दिनों बाद उस बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वह वापस अपने घर आ गया।

घर पर वह बच्चा अपने हिल ना सकने वाले एकदम पतले पैरों के साथ पूरे समय बेजान सा अपने बिस्तर पर पड़ा रहता था। लेकिन वह मानसिक तौर पर हार मानने को तैयार नहीं था। कुछ दिनों बाद उसके परिवार वालों ने उसके लिए एक व्हील चेयर लाकर दे दी। अब बच्चे ने व्हील चेयर की सहायता से घर और घर के बाहर लॉन में घूमना शुरू कर दिया। कई दिन ऐसे ही गुजर गए लेकिन वह बच्चा हमेशा अपने पैरों पर चलने के सपने देखा करता था।

एक दिन लॉन में व्हील चेयर पर बैठे-बैठे उस बच्चे के मन में पता नहीं क्या विचार आया उसने हाथों से व्हील चेयर को पीछे धक्का दिया और खुद नीचे लॉन पर कूद पड़ा। इसके बाद वह ज़मीन पर पड़े-पड़े ही घास को पकड़कर घसीटने लगा और वैसे मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि उसके पतले पैर सिर्फ़ उसके शरीर के साथ घसीट रहे थे। इसके बाद वह बच्चा अब रोज़ ऐसा ही करता था। एक दिन वह ऐसे ही घसीटते-घसीटते लॉन की बाड़ तक पहुँच गया और उसे पकड़कर घसीटना शुरू कर दिया।

ऐसा करने से उस बच्चे का चलने का संकल्प और मज़बूत हो गया व अब वह रोज़ इसी तरह प्रयास करने लगा। कुछ माह में उस बच्चे ने दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के साथ पहले अपने पैरों पर खड़े होने की और बाद में धीरे-धीरे, रुक-रुक कर चलने की क्षमता विकसित कर ली। रुक-रुक कर चलते वक्त उस बच्चे ने एक और नया सपना संजोया, दौड़ने का। इस नए सपने की बदौलत वह थोड़े दिन में बिना पकड़े अपने आप चलने लगा और फिर धीरे-धीरे दौड़ने। खुद चलना शुरू करने बाद उस बच्चे ने वापस से स्कूल जाना शुरू कर दिया और स्कूल पूरा करने के बाद कॉलेज। कॉलेज में पढ़ते समय वह बच्चा ट्रैक टीम का हिस्सा बना।

आईए थोड़ा तेज़ी से आगे चलते हैं, डॉक्टरों के अनुसार जिस बच्चे का बचना मुश्किल था, वह ना सिर्फ़ बचा बल्कि कुछ ही महीनों में उसने पहले चलना और फिर दौड़ना शुरू कर दिया। कॉलेज में पढ़ते समय इस बच्चे ने फिर एक नया सपना देखा, दुनिया का सबसे तेज धावक बनने का और वर्ष 1934 में अपने इस सपने को भी पूरा कर लिया। जी हाँ दोस्तों मैं बात कर रहा हूँ डॉक्टर ग्लेन कनिंघम की, जिन्होंने फ़रवरी 1934 में अपने दृढ़ संकल्प से न्यूयॉर्क शहर के प्रसिद्ध मैडिसन स्क्वायर गार्डन पर सबसे तेज़ी से एक मील दौड़ने का विश्व रिकार्ड बनाया।

दोस्तों इस विपरीत समय में कोरोना से ज़िंदगी की जंग लड़ते समय हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखना है और ग्लेन कनिंघम जैसे उन सभी को अपना रोल मॉडल बनाना है जिन्होंने अपने दृढ़संकल्प से सभी असंभव सी लगने वाली बाधाओं को पार करके अपने सपने को जीकर दिखाया है। जी हाँ साथियों जीवन जीने की, अपने सपनों को पूरा करने की तीव्र इच्छा और संकल्प के साथ जहां मौत आसान लगती है वहाँ से उसे हराकर एक शानदार मिसाल क़ायम कर सकते हैं। तो बस देर किस बात की दोस्तों, आईए मिलकर अपना और अपने आस-पास मौजूद हर शख़्स का इस तरह की सच्ची कहानियों से मनोबल बढ़ाते हैं और मिलकर कहते हैं, ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है…’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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