फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत


Nov 29, 2021
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत !!!
दोस्तों, कई बार अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बाद भी हमें वे परिणाम नहीं मिल पाते जिसकी अपेक्षा हम रखते हैं और ऐसे में कई बार हमें निराशा, उदासीनता, हताशा जैसे नकारात्मक भाव घेर लेते हैं। जो हमें विचारों के दुश्चक्र में फँसा देते हैं। नकारात्मक भावों के दुश्चक्र से अगर समय रहते बाहर ना निकला जाए तो यह हमारे अंदर विरक्ति का भाव पैदाकर, समाज से काट देता है। निराशा जैसे नकारात्मक भाव की अधिकता हमें अवसाद और असंतोष की ओर ले जाती है और ऐसे में हमें अपने चारों ओर सिर्फ़ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आता है। ज़्यादा समय इस भाव में रहना अंततः हमें पतन की ओर ले जाता है।
लेकिन दोस्तों अगर आप जीवन में कुछ बड़ा, कुछ अनूठा, कुछ याद रखा जा सकने वाला कार्य करना चाहते हैं तो आपको असफलता और उससे पैदा हुई निराशा से बचना होगा और इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा कि दिन और रात की ही तरह सफलता और असफलता, आशा और निराशा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अर्थात् अगर आपको परिणाम बदलना है तो आपको सिक्के के दूसरे पहलू को देखना होगा।
जहाँ मनचाहा परिणाम ना मिलने की वजह से हताशा या निराशा पैदा हुई थी वहाँ अगर हम अपनी सोच सकारात्मक रख लें तो सुख और सफलता को पा सकते हैं। सकारात्मक पक्ष को देखना हमारे अंदर आशा या उम्मीद पैदा करती है और उम्मीद हमारा उत्साहवर्धन करती है और उत्साह हमारे अंतर्मन में संजीवनी बूटी समान शक्ति का संचार करता है। इसीलिए तो कहते हैं जहाँ आशा है, वहाँ उत्साह है और जहाँ उत्साह है, वहाँ सफलता है। अपनी बात को मैं आपको एक रिसर्च के परिणाम के द्वारा समझाने का प्रयास करता हूँ-
विश्व विख्यात हावर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक कर्ट रिचट्टर ने 1950 के दशक में आशा और उम्मीद का अंतर्मन पर प्रभाव जानने के लिए चूहों पर शोध किया था। कर्ट ने पानी से भरा एक बर्तन लिया और उसमें एक जीवित चूहे को डाल दिया। चूहा अपनी जान बचाने के लिए कुछ मिनिटों तक तो प्रयास करता रहा लेकिन थकने या यूँ कहूँ हार मान लेने की वजह से डूब कर मर गया।
कर्ट ने थोड़े से परिवर्तन के साथ एक बार फिर इसी प्रयोग को दोहराया। इस बार उन्होंने पानी भरे उसी बर्तन में फिर से एक चूहे को डाला। इस चूहे ने भी कुछ देर तो प्रयास करा लेकिन जैसे ही इसने हार मानी कर्ट ने इसे बाहर निकाल लिया और उसे सहलाने, दुलारने लगा। कुछ देर जार से दूर रखने के बाद कर्ट ने एक बार फिर इस चूहे को पानी के जार में डाल दिया। लेकिन इस बार पानी में फैंके जाने के बाद चूहे के व्यवहार में बदलाव देखने में आया जिसे देखकर कर्ट स्वयं हैरान रह गए।
कर्ट का मानना था कि पानी में फैंके जाने के बाद चूहा 15-20 मिनिट तक अपनी जान बचाने का प्रयास करेगा उसके बाद उसकी शारीरिक क्षमता जवाब दे जाएगी और वह पानी के बर्तन में डूब जाएगा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। चूहा लगातार तैरकर अपनी जान बचाने का प्रयास करता रहा। जो चूहा 15-20 मिनिट बाद हार मान लेता था वो इस बार 60 घंटों तक कठिन परिस्थितियों से जूझ रहा था और इतनी देर बाद भी हार मानने को तैयार नहीं था। जी हाँ दोस्तों 1-2 घंटे नहीं, पूरे 60 घंटों तक।
‘होप’ नामक इस प्रयोग के निष्कर्ष के रूप में कर्ट ने लिखा कि पहली बार जब चूहे को जार में फेंका गया था तब उसने अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार जान बचाने की कोशिश करी थी। लेकिन जिस दूसरे चूहे को पानी वाले जार में फेंका था क्यूँकि उसे डूबने से ठीक पहले बाहर निकालकर एक बार फिर से जीने का मौक़ा दिया था। उसी चूहे को जब दूसरी बार फिर से पानी भरे बर्तन में फेंका, तब उसके पास पूर्व में जान बचा लिए जाने का पूर्व अनुभव था अर्थात् उसे आशा थी कि उसे बचा लिया जाएगा। इस आशा के संचार की वजह से वह 60 घंटे संघर्ष के बाद भी हार मानने के लिए तैयार नहीं था। उसे एहसास था कि विकट परिस्थितियों में उसे बचा लिया जाएगा। जी हाँ दोस्तों, आशा और उम्मीद की वजह से ही उसने हार नहीं मानी।
दोस्तों, कार्य कैसा भी क्यों ना हो, यदि मनुष्य आशा और उत्साह के साथ करेगा तो वह अवश्य ही पूरा होगा और यदि आशा व उत्साह नहीं होगा तो असफलता ही हाथ लगेगी। उम्मीद और आशा के साथ जीवन जीना सफलता के साथ-साथ सुख और आनंद भी देता है।
याद रखिएगा, हमारी भावनाएँ ही हमारी प्रेरणा बनती है और सभी सफल लोग इस गूढ़ रहस्य का प्रयोग करते हैं। इसीलिए दोस्तों अपने जीवन में हमेशा उम्मीद बनाये रखिये, असफलता और विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करिए और कभी भी मन को हार मत मानने दीजिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर