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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

रिश्तों में विवाद नहीं, संवाद करें

रिश्तों में विवाद नहीं, संवाद करें
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Aug 9, 2021

रिश्तों में विवाद नहीं, संवाद करें!!!


दोस्तों आज आप सभी से एक प्रश्न पूछते हुए अपने कॉलम की शुरुआत करना चाहूँगा, ‘क्या रिश्ते अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं?’ कई बार तो ऐसा लगता है लोग आजकल रिश्तों को एक ‘लीगल कॉंट्रैक्ट’ के भाँति निभाते हैं। जी हाँ दोस्तों, आज कल काउन्सलिंग के लिए आने वाले ज़्यादातर मामलों को तो देखकर ऐसा ही लगता है। 


आज काउन्सलिंग के लिए आए कपल का मामला ही ले लीजिए। अच्छा शिक्षित, सक्षम परिवार, बढ़िया व्यापार और उत्तम स्वास्थ्य होने के बाद भी वे हर दो-चार दिनों में किसी ना किसी बात पर लड़ लेते हैं। आज काउन्सलिंग के दौरान भी ऐसा ही हुआ। पत्नी ने सामान्य रूप में प्रॉपर्टी से सम्बंधित एक प्रश्न क्या पूछ लिया, पति मेरे सामने ही उनपर ग़ुस्सा होकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे और थोड़ी ही देर में बात को वे बँटवारे तक ले आए। 


मैं उनकी प्रतिक्रिया देख हैरान था, मेरे समझाने पर वे मुस्कुराते हुए बोले, ‘सर चिंता मत कीजिए हमारे बीच ऐसी तकरार होना सामान्य है।’ वैसे भी कहते हैं ना, ‘पति-पत्नी के बीच झगड़ा प्यार बढ़ाता है।’ उनकी बात सुन मैंने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा, ‘जी आप बिलकुल सही कह रहे हैं, पर आपसी झगड़ा सिर्फ़ तभी तक प्यार बढ़ाता है, जब तक उस झगड़े की आवाज़ आपके बेडरूम तक सीमित रहे। अभी आप दोनों मेरे सामने इतने क़रीब बैठे थे फिर भी आपको अपनी बात इतनी ऊँची आवाज़ में क्यों कहना पड़ी?’


आशा के विपरीत मेरा प्रश्न सुन वे थोड़े से विचलित हुए और कुछ पल शांत रहने के बाद बोले, ‘सर, आपने तो देखा ही शुरू में मैंने कितने आराम से उसे समझाने का प्रयत्न किया था। लेकिन जब वह मेरी बात समझ नहीं पायी तो धैर्य खोने की वजह से मुझे ग़ुस्सा आ गया और मैंने अपनी आवाज़ ऊँची कर ली।’ मैंने फिर अपनी पुरानी बात दोहराते हुए कहा, ‘आप दोनों एक ही सोफ़े पर बैठे हुए थे, एकदम पास-पास। आप कितना भी धीरे बोलते वह आपकी बात सुन सकती थी। हो सकता है, फ़ायनेंस में आपके जितनी समझदार ना होने की वजह से वो आपकी बात समझ ना पाई हो। आप शब्दों को बदलते हुए, शांत रहकर एक बार फिर से प्रयास कर सकते थे। आपने इस विकल्प को चुनने के बजाय आवाज़ ऊँची कर बोलने का विकल्प क्यूँ चुना?’ वे सज्जन मेरा प्रश्न सुन कुछ नहीं बोले, मैं भी एकदम शांत, बिना कुछ बोले उनके जवाब का इंतज़ार करने लगा। मुझे चुप और जवाब के लिए इंतज़ार करता देख, लगभग एक मिनिट बाद वे बोले, ‘सर, शायद अपनी भड़ास या ग़ुस्सा निकालने के लिए।’ 


जी हाँ दोस्तों, अकसर हममें से ज़्यादातर लोग उन सज्जन के भाँति ही सोचते हैं कि ऊँची आवाज़ में बोलने से सारा ग़ुस्सा बाहर निकल जाता है। पर मेरी नज़र में यह सही और सटीक कारण नहीं है। मुझे लगता है ग़ुस्सा, अविश्वास या नकारात्मक भाव दो लोगों के बीच भावनात्मक दूरी को काफ़ी बढ़ा देता है, दिल से दोनों को काफ़ी दूर कर देता है। इसलिए, भले ही वे शारीरिक रूप से कितने भी पास क्यूँ ना बैठे हों, उनके मन में दूरियाँ बहुत ज़्यादा होती हैं। मन या दिल के बीच की यही दूरी शायद उन्हें एक-दूसरे से बहुत दूर होने का एहसास कराती है और वे अपनी आवाज़ को ऊँचा रख अपनी बात कहने का प्रयास करते हैं।


वैसे इसे आप एक दूसरे उदाहरण से भी समझ सकते हैं। आपने देखा होगा जब दो लोग प्यार में होते हैं, एक दूसरे के दिल के बहुत पास होते हैं, हल्की सी फुसफुसाहट भी आपको स्पष्ट रूप से सुनाई दे जाती है। जी हाँ दोस्तों, आपने निश्चित तौर पर कभी ना कभी, किसी ना किसी रिश्ते में इस बात का एहसास करा ही होगा, जब सामने वाले ने या आपने, सामने वाले की बात को उसके बिना कहे, सुन और समझ लिया होगा क्यूँकि दिल के क़रीब लोग मौन रहकर भी अपनों से संवाद कर लेते हैं। याद रखिएगा, संवाद ज़्यादा प्रभावशाली है, विवाद नहीं। जिव्हा की जंग जीतने से ज़्यादा ज़रूरी है हार कर रिश्ते बचाना।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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