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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

लक्ष्य पाना है तो फ़ोकस्ड रहिए

लक्ष्य पाना है तो फ़ोकस्ड रहिए
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April 3, 2021
लक्ष्य पाना है तो फ़ोकस्ड रहिए…

राजा राघवेंद्र सिंह आजकल बहुत चिंतित रहते थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, जिससे उनके राज्य को एक उचित उतराधिकारी मिल जाए। एक दिन राजा ने अपने सबसे विश्वस्त मंत्री को बुलवाया और अपनी चिंता उनके समक्ष रखते हुए बोले, ‘मंत्री जी, मेरी उम्र काफ़ी हो चली है और अब स्वास्थ्य भी गड़बड़ रहता है। समय आ गया है कि मैं अपना उतराधिकारी घोषित कर दूँ। आप पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवा दीजिए कि जो भी युवा बुधवार शाम ठीक 6 बजे मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं अपना आधा राज्य सौंप दूँगा।’ राजा की बात सुनते ही मंत्री चिंता में पड़ गए। उन्होंने राजा से कहा, ‘राजन, गुस्ताखी माफ़ कीजिएगा, आप जो बड़ी आसान शर्त रख रहे हैं। अगर बहुत सारे युवा सांय 6 बजे तक आपके पास पहुँच गए तो हमारा राज्य कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाएगा। मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है कि ऐसा अनर्थ मत कीजिए।’ राजा मुस्कुराते हुए बोले, ‘मंत्री जी, आपकी चिंता जायज़ है, लेकिन आप चिंता ना करें, हमें योग्य व्यक्ति मिल जाएगा।’ मंत्री ने राजा जी को प्रणाम करा और वहाँ से चले गए।

अगले दिन से मंत्री ने राज्य में ढिंढोरा पिटवाना और महाराज ने राजमहल तरफ़ आने वाले रास्ते को सजवाना शुरू कर दिया। रास्ते में पड़ने वाले शाही बाग में राजा ने एक बहुत बड़े मेले का आयोजन करने के लिए कहा। रास्ते में राजा ने खाने-पीने के स्टाल लगवाए। मैदान में कई तरह के खेलों का आयोजन करने की व्यवस्था करवाई, तो वहीं शाही बाग में एक शानदार मेला लगवाया। जहाँ तरह-तरह के झूले, नाच-गाने का प्रबंध तो कहीं पर शराब पीने की व्यवस्था करवाकर उत्सवी माहौल बनवा दिया गया।

इसके विपरीत राज्य का कोई भी युवा हाथ आए इस मौक़े को खोना नहीं चाहता था और समय से राजदरबार पहुँचकर आधा राज्य हासिल करना चाहता था। तय दिन ज़्यादातर युवा अपने घरों से राजदरबार जाने के लिए निकले और रास्ते की तैयारियाँ देख वे रोमांचित होने लगे। माहौल देख लोग अपना उद्देश्य भूल गए और कुछ तो खाने-पीने और नाच गाने में उलझ गए, तो कुछ सूरा-सुंदरी के खेल में। जो थोड़ा आगे बढे, वे मेले में लगे झूलों या खेल प्रतियोगिताओं में व्यस्त हो गए। कुछ लोग जो इससे आगे बढ़े, वे रास्ते में रखे हुए बहुमूल्य उपहार इकट्ठा करने में व्यस्त हो गए। किसी को बीतते हुए समय का भान ही नहीं था। हर कोई रास्ते में मिलने वाले आनंद को ही अपनी मंज़िल मान बैठा था।

लेकिन एक युवा इन सभी के बिलकुल विपरीत था। उसने अलसुबह शुरुआत करने की जगह दोपहर को चलना शुरू किया और रास्ते में पड़ने वाली किसी भी चीज़ की ओर बिना ध्यान दिए, सीधे अपनी तय मंज़िल, राजदरबार की ओर जाने लगा। जल्द ही उसने रास्ता, फिर शाही बाग और फिर क़ीमती उपहार बंटने वाले स्थान को पार करा और राजदरबार के मुख्यद्वार पर पहुँच गया। राजमहल के बाहर खड़े दरबानों ने उसे रोक लिया, खुली तलवारों के साथ सुरक्षा प्रहरियों को देख शुरू में तो उसे थोड़ा सा डर लगा और वह कुछ पलों के लिए ठिठककर रुक गया। लेकिन अगले ही पल, अपना लक्ष्य याद आते ही उसने दरबानों को एक साइड धकेला और राजदरबार में अंदर घुस गया।

राजदरबार में अंदर घुसते ही दरबार में मौजूद लोगों द्वारा उसका तिलक करके स्वागत किया गया और उसे राजा के सामने ले ज़ाया गया। राजा ने मौजूद सभी लोगों के सामने उसे अपने सिंहासन के पास बुलाया और बोले, ‘चलो कोई तो है मेरे राज में, जो रास्ते में हज़ारों प्रलोभनों को नज़रंदाज़कर तय समय में अपनी मंज़िल अर्थात् मुझ तक पहुँचा। मुझे आज अपना उत्तराधिकारी मिल गया है।’ इसके बाद राजा राघवेंद्र सिंह ने उस युवा की ओर देखते हुए कहा, ‘मैं अब तुम्हें अपना आधा राज नहीं बल्कि पूरा राजपाट दूँगा, आज से तुम मेरे उत्तराधिकारी हो।’

जी हाँ दोस्तों, ईश्वर ने भी हमें ऐसी ही एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए इस पृथ्वी, इस भवसागर में भेजा है। इसे पार करने के लिए, इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए आवश्यक क्षमता, संसाधन, शक्ति सबकुछ उन्होंने पहले से ही हमारे अंदर डाल दी है। जिस तरह राजा ने रास्ता सजा रखा था उसी तरह ईश्वर ने भी बहुत सारे मायाजाल रास्ते में बना रखे हैं, हमारी आँखे, हमारा मन, हमारा शरीर इन ललचाती चीजों के फेर में फँस जाता है और भवसागर पार होने से पहले ही हमारा समय खत्म हो जाता है।

दोस्तों, अगर इस रेस को जीतना चाहते हो, तो बिना भटके, इंसानियत के रास्ते पर चलते हुए इस दुनिया को, दूसरे लोगों के लिए और बेहतर बनाओ। लोगों की मदद करो, उनके जीवन को आसान बनाओ। और अगर इस रेस को सामान्य जीवन के रूप में भी देख रहे हो तो याद रखना, सफल वही होता है, जो सबसे पहले लक्ष्य निर्धारित करता है, उसे पाने के लिए तैयारी करता है और फिर रास्ते में मिलनेवाली तमाम मुश्किलों या प्रलोभनों का सामनाकर या नज़रंदाज़कर मंज़िल तक पहुँचता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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