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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

लालच बुरी बला है

लालच बुरी बला है
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Sep 9, 2021

लालच बुरी बला है !!! 


आज के लेख की शुरुआत मैं मेरे साथ घटी एक घटना के साथ करता हूँ। कुछ दिन पूर्व मेरे एक बेहद ही ख़ास परिचित का फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे अपने रिश्तेदार महेश के लिए मदद माँगी। महेश ने हाल ही में एक संस्था से ए॰आई॰ पर आधारित एक कोर्स किया था। कोर्स के दौरान स्वास्थ्य सम्बंधी परेशानी के कारण वे सर्टिफिकेट पाने के लिए आवश्यक उपस्थिति बरकरार नहीं रख पाए। हालाँकि महेश मेरी नज़र में ग़लत थे फिर भी मैंने उस संस्था के निदेशक को वस्तुस्थिति से अवगत करवाकर महेश की मदद करने के लिए तैयार किया। संस्था निदेशक से मेरे सम्बन्धों का पता चलते ही महेश ने मुझे बताए बिना शिक्षक से सम्पर्क करा और उन पर रौब जमाने का प्रयास करते हुए मनचाहा परिणाम प्राप्त करने की कोशिश करी। 


वैसे दोस्तों यह एक बहुत सामान्य सी घटना है और आप सोच रहे होंगे कि इस छोटी सी घटना को इतना तूल देने की क्या ज़रूरत है। घटना महत्वपूर्ण नहीं है दोस्तों, इसके माध्यम से मैं आपका ध्यान लोगों की सोच, उनके दृष्टिकोण में आए परिवर्तन की ओर लाना चाहता हूँ। आमतौर पर आप देखेंगे कि ज़्यादातर लोग आजकल अपने लालच की वजह से मूल्यों को ताक पर रख देते हैं और अपनी आत्मा को मारकर ग़लत रास्ते पर चलना शुरू कर देते हैं। 


मैंने उस युवा महेश में इस आदत का जन्म होते देख लिया था। इसलिए उसे सही मूल्य सखाने के लिए एक कहानी की मदद लेने का निर्णय किया जो इस प्रकार थी।


बात कई वर्ष पुरानी है, गाँव में रहने वाले पंडित ने अपने क्षेत्र में सबसे बेहतर बनने के लिए धर्म का गहराई से अध्ययन करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने परिवार से आज्ञा ली और काशी जाकर महान पंडितों से शास्त्र सीखने लगे। लगभग दो वर्षों तक अध्ययन करने के पश्चात वे अपने गाँव लौटे और सभी को शास्त्रों में दी गई शिक्षा के बारे में बताने लगे। कुछ ही दिनों में उनकी ख्याति पूरे गाँव में फैल गई।


अब तो दूर-दूर से लोग धर्म से जुड़ी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास आने लगे। उनकी शोहरत सुनकर एक दिन पास ही के गाँव में रहने वाला एक किसान उनके पास आया और बोला, ‘महात्मन, मेरे मन में एक प्रश्न है कि पाप का गुरु कौन है?’ पंडित जी ने काफ़ी सोचा पर वे इस प्रश्न का उत्तर नहीं खोज पाए। पंडित जी को लगा कि इतने आध्यात्मिक गुरुओं, पंडितों, धर्म के प्रकांड जानकारों को सुनने के बाद भी शायद उनका ज्ञान अधूरा रह गया है। उन्हें कभी किसी ने बताया ही नहीं कि पाप का भी कोई गुरु होता है। 


यह प्रश्न उनकी समझ और ज्ञान के बाहर का था। पंडित जी ने महसूस किया कि उन्हें विद्वान बनने के लिए अभी बहुत कुछ सीखना है। वे वापस से काशी चले गए और कई गुरुओं और विद्वानों से मिले लेकिन कोई भी उस किसान के प्रश्न का उत्तर नहीं दे पा रहा था। 


उत्तर की तलाश में भटकते-भटकते एक दिन उनकी मुलाक़ात एक गणिका से हो गई। सामान्य बातचीत के बाद गणिका द्वारा उनकी परेशानी पूछने पर पंडित जी ने किसान द्वारा पूछा गया प्रश्न दोहरा दिया। प्रश्न सुनते ही गणिका मुस्कुराई और बोली, ‘पंडित जी इसका उत्तर बहुत आसान है। पर उसे जानने के लिए आपको मेरी मेहमान नवाज़ी स्वीकारना होगी।’ कुछ और उपाय ना देख पंडित जी ने गणिका के प्रस्ताव को स्वीकार लिया।


गणिका ने अपने घर में ही पंडित के रहने के लिए अलग व्यवस्था कर दी। अपनी आदत और धर्म परम्परानुसार पंडित जी खाने-पीने से लेकर हर काम खुद किया करते थे। उन्होंने कभी गणिका से किसी प्रकार की मदद नहीं ली लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने गणिका से इस विषय में बात करी। अब गणिका ने पंडित जी के सामने नई शर्त रख दी उत्तर जानने के लिए आपको मेरे हाथ का बना भोजन करना होगा और भोजन के पश्चात में आपको 5 स्वर्ण मुद्राओं के साथ कुछ क़ीमती सामान उपहार स्वरूप दूँगी और साथ ही आपके प्रश्न का उत्तर भी आपको बता दूँगी।


पंडित जी सोच में पड़ गए कि अब क्या किया जाए? उन्होंने सोचा वैसे भी किसी को मालूम नहीं है कि मैं गणिका के घर पर रह रहा हूँ। अगर मैं इसके हाथ का बना भोजन कर लूँगा तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा बल्कि मुझे इनाम स्वरूप कुछ क़ीमती सामान और स्वर्ण मुद्राएँ मिल जाएगी अर्थात् इस परिस्थिति में मेरे दोनों हाथों में लड्डू है। पंडित जी ने अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ ताक पर रखा और भोजन करने के लिए तैयार हो गए।


अगले दिन तय समय पर गणिका 56 भोग बनाकर लायी और पंडित जी के सामने परोस दिया। स्वादिष्ट 56 भोग देखते ही पंडित जी के मुँह में पानी आ गया और वे तुरंत खाना खाने के लिए बैठ गए। जैसे ही पंडित जी ने पहला कौर तोड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, गणिका ने उनके सामने से थाली हटा ली और बोली, ‘महाराज, यही आपके प्रश्न का उत्तर है। जहाँ पहले आप किसी के हाथ से पानी भी नहीं पीते थे वहीं आज आप स्वर्ण मुद्राओं और क़ीमती सामान की चाह में भोजन करने के लिए भी राज़ी हो गए। यह लोभ ही पाप का गुरु है।’


जी हाँ दोस्तों आज हम सभी लोग बहुत जल्द सब कुछ पाने की चाह में लोभ और लालच के जाल में फँस गए हैं और इसीलिए किसी भी क़ीमत पर सफलता पाना चाहते हैं। अगर हम अपने जीवन को शांति पूर्वक ख़ुशी-ख़ुशी जीना चाहते हैं तो हमें लोभ और लालच को छोड़, सादा जीवन जीना सीखना होगा। याद रखिएगा जो प्राप्त है वह पर्याप्त है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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