फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
वर्तमान ही भविष्य कि नींव है
Dec 8, 2021
वर्तमान ही भविष्य कि नींव है…
कुछ दिन पूर्व एक विद्यालय के शिक्षकों के लिए ‘शिक्षा को बेहतर कैसे बनाया जाए?’, विषय पर चर्चा करने का मौक़ा मिला। सेमिनार के बाद एक शिक्षक ने मुझसे बड़ा अजीब सा प्रश्न किया, ‘सर, आप हमसे ग़लत अपेक्षा रख रहे हैं।’ मैं उनकी बात समझ नहीं पाया और मैंने उनसे अपनी बात विस्तारपूर्वक समझाने के लिए कहा। प्रश्न के उत्तर में मेरा प्रश्न सुनते ही वे बोले, ‘सर, हम आजकल कितनी विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाते हैं इसका अंदाज़ा तो आपको है ही। ऊपर से हर महीने किसी ना किसी त्यौहार की छुट्टी आ जाती है जो अकसर पढ़ाई की गति को बाधित कर देती है।’
लगभग 55 वर्षीय शिक्षक द्वारा त्यौहारों, हमारी संस्कृति को समझे बिना प्रश्न उठाना मुझे उचित नहीं लगा और मैंने उसी वक्त त्यौहारों के प्रति उनका भ्रम दूर करने का निर्णय लिया। मैंने उनसे कहा, ‘सर, जब आप छोटे थे तब आपने कभी तनाव, डिप्रेशन, बच्चों द्वारा अच्छा परिणाम ना आने पर आत्महत्या करना, जैसी बातें सुनी थी क्या? या आप उस वक्त तनाव, डिप्रेशन जैसे शब्दों के अर्थ भी जानते थे?’ उन्होंने तुरंत ना में सर हिलाते हुए ठंडी और गहरी साँस लेते हुए कहा, ‘सर, तब ऐसी स्थितियाँ कहाँ थी।’
मैंने उनसे अगला प्रश्न किया, ‘सोचकर देखिएगा, आज बच्चे इन सब से इतनी कम उम्र में क्यों गुजर रहे हैं। असल में हमने उनके जीवन से रंग, उल्लास, मस्ती, बचपना निकालकर उनके जीवन को बेरंग कर दिया है और इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण जीवन और शिक्षा के सही अर्थ को भुला देना है। यह त्यौहार पहले हमें ना सिर्फ़ जीवन जीने का मौक़ा देते थे बल्कि जीवनभर के लिए सुनहरी यादें भी दिया करते थे। मस्ती, उल्लास, ख़ुशी हमें जीवन जीने का उत्साह देती थी लेकिन शिक्षा के बदलते उद्देश्य ‘भविष्य को सुरक्षित बनाना ’ ने इसे हमसे छीन लिया।
मुझे नहीं पता दोस्तों, उनको मेरी बात समझ भी आयी या नहीं, पर यह एक सच है। आजकल हम बच्चों का भविष्य अच्छा बनाने के प्रयास में उन्हें त्यौहारों, उत्सवों और संस्कृति से दूर कर देते हैं और ऐसा करते वक्त हम भूल जाते हैं कि जीवन भविष्य में नहीं बल्कि वर्तमान पल में है। अगर हम अपने वर्तमान को भविष्य को सुरक्षित बनाने के प्रयास में बर्बाद कर रहे हैं, तो इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ कि आज आप भूखे रहकर कल भरपेट भोजन खाने की योजना बना रहे हैं। आइए आपको एक मज़ेदार कहानी की मदद से अपनी बात अच्छे से समझाने का प्रयास करता हूँ-
माँ आज अपनी रसोई में कुछ ज़्यादा ही व्यस्त नज़र आ रही थी। दिवाली जो आ गई थी, उसे गुंजिया, पापड़ी, शकरपारे, चकली और भी ना जाने कितने व्यंजन बनाके जो रखने थे। बच्चे भी अपनी मनपसंद चीज़ें बनते देख माँ की रसोई के आस-पास ही मंडरा रहे थे।
उनकी कोशिश थी कि माँ का काम निपटे और उन्हें उनकी पसंद की चीज़ खाने को मिले। दूसरी ओर माँ उन्हें बार-बार समझा रही थी कि बेटा हमें पहले भगवान को भोग लगाना होगा। अर्थात् पहले हम पूजा करेंगे, इन सब चीजों का प्रसाद भगवान को चढ़ाएँगे और उसके बाद हम खाएँगे। बाल मन को माँ की इतनी गम्भीर बातें कहाँ समझ आनी थी। वो तो अपनी जुगत में थे कैसे भी मौक़ा मिले और अपन हाथ साफ़ करें।
दूसरी ओर माँ को भी इस बात का बखूबी अंदाज़ा था कि बच्चों को कितना भी समझा लो काम नहीं चलेगा। वहाँ का तो बस एक नियम है, ‘नज़र हटी और दुर्घटना घटी!’ माँ ने सारे पकवान तैयार होते ही उन्हें पहले से साफ़ करके रखे गए डिब्बों में भरा और रसोई की अलमारी में अन्य सामान के बीच छुपाकर रख दिया और खुद साफ़-सफ़ाई आदि दूसरी चीजों में व्यस्त हो गई।
इधर अच्छा मौक़ा देख पहले से तैयार बैठे बच्चे रसोई में घुस गए और जैसे तैसे अपनी पसंद का सामान खोजकर खाने लगे। घर में अचानक शांति देख माँ को दुर्घटना घटने का अंदाज़ा हो गया वह तुरंत बच्चों की गतिविधि का निरीक्षण करने के उद्देश्य से समय से पूर्व ही रसोई में पहुँच गई और बच्चों को रंगे हाथों पकड़ लिया और उन्हें डाँटते हुए बोली, ‘कुछ घंटे और इंतज़ार नहीं कर सकते थे? तुम्हें पता है ना, हर जगह भगवान हैं और तुम्हें यहाँ चोरी करते हुए भगवान ने देख लिया है।’ माँ की डाँट सुन सबसे छोटा बच्चा बोला, ‘जी माँ, मुझे पता है भगवान जी हमें ऐसा करते हुए देख रहे हैं।’ बच्चे का जवाब सुनते ही माँ बोली, ‘फिर तो उन्होंने भी तुमको यहाँ से पकवान चुराकर खाने से रोका होगा?’ माँ का प्रश्न सुन वही बच्चा बोला, ‘जी नहीं माँ, भगवान जी तो मुझसे बोले यहाँ तुम्हारे और मेरे सिवा कोई और नहीं है। इतना स्वादिष्ट पकवान देख मुझसे भी नहीं रहा जा रहा है इसलिए तुम भी खा लो और मेरे लिए भी थोड़ी सी ले लेना। इसलिए हमने पहले से ही भगवान के सामने उनके हिस्से के पकवान निकालकर रख दिए हैं।’
जी हाँ दोस्तों त्यौहार, उत्सव और सांस्क्रतिक गतिविधियाँ हमारे जीवन को कठिन नहीं, बल्कि रंगीन बनाती हैं। पहले हम हर पल जीवन को जीना चाहते थे इसलिए हर जगह ख़ुशी ढूँढने का प्रयास किया करते थे। आज हम जीवन को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाने के लिए प्रयासरत हैं इसलिए जीवन को जीने के स्थान पर भविष्य की योजना बनाने में बर्बाद कर रहे हैं। विचार करके देखिएगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर