फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
विचारों का द्वन्द, खुद के संग


Sep 28, 2021
विचारों का द्वन्द, खुद के संग…
चलिए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत भी एक कहानी से करते हैं। शहर की भीड़भाड़ से बचने के लिए रितेश ने हाईवे से लगा हुआ एक बहुत सुंदर विला ख़रीदा और उसे बहुत सुंदर तरीक़े से सजाकर उसमें रहने लगा। उसके विला के पास ही एक ईर्ष्यालु व्यक्ति रहता था। रितेश का सुंदर घर देख वह परेशान हो गया। उसने रितेश को परेशान कर वहाँ से भगाने का निर्णय लिया और इसके लिए एक योजना बनाई।
अपनी योजनानुसार वह रितेश को इतना परेशान कर देना चाहता था कि ख़राब मूड के चलते रितेश खुद घर छोड़कर चला जाए। कभी वह रितेश के घर के सामने गाड़ी खड़ी कर देता था तो कभी उसके बगीचे में से सुंदर फूल तोड़ लेता था। लेकिन रितेश पर इन सब बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह बस मुस्कुराकर इन्हें नज़रंदाज़ करता रहा।
बात ना बनते देख पड़ोसी थोड़ा परेशान हो गया और रितेश से लड़ने के तरीक़े खोजने लगा। अब वह कभी रितेश के बगीचे तो कभी बरामदे तो कभी घर के दरवाज़े के सामने कचरा फेंकने लगा। रितेश ने उस व्यक्ति को रचनात्मक तरीक़े से सबक़ सिखाने का निर्णय लिया और मौक़ा तलाशने लगा।
एक दिन रितेश बड़े अच्छे मूड में उठा और बाहर बरामदे में गया लेकिन वहाँ का नजारा देख चौंक पड़ा। बरामदे के दरवाज़े के ठीक सामने एक कचरे की बाल्टी पड़ी थी। रितेश ने अपना मूड ख़राब करने की जगह उस कचरे को कचरे की थैली में डाला और कचरे के लिए पूर्वनिर्धारित स्थान पर डाल आया। उसके बाद उसने उस बाल्टी को अच्छी तरह साफ़ करा, धोया और फिर उसमें अपने घर में उपलब्ध सबसे अच्छे फल रख पड़ोसी को देने चला गया।
जैसे ही पड़ोसी ने दरवाजे पर रितेश को देखा वह खुश हो गया और मन ही मन सोचने लगा, ‘आखिरकार आज मुझे मौक़ा मिल ही गया!’ उसे पूरी उम्मीद थी कि आज उसका रितेश के साथ झगड़ा होगा। इसी उम्मीद के साथ उसने दरवाजा खोला। लेकिन उसकी उम्मीद के ठीक विपरीत रितेश ने उसे ताजे और अच्छे फलों से भरी बाल्टी दे दी और बोला, ‘जो जिस चीज से अमीर है, वह उसे ही दूसरों के साथ बांटता है…'
दोस्तों कल रात्रि साढ़े आठ बजे के लगभग घटी एक बड़ी विचित्र सी घटना की वजह से मुझे उपरोक्त कहानी याद आ गयी। मैं अपने घर के लिए निकला ही था कि रास्ते में पड़ने वाला ट्रैफ़िक सिग्नल रेड हो गया। ट्रैफ़िक नियम का पालन करते हुए मैं रेड लाइट पर रुक गया। मुझे रुके हुए अभी 30-40 सेकंड ही हुए होंगे कि एक दोपहिया वाहन मेरे पास आकार रुका और उसका चालक मेरी गाड़ी के काँच को नॉक करते हुए कुछ बोलने लगा। उनके इशारे को देख मुझे लगा कि शायद वे मुझे कुछ दिखाने का प्रयास कर रहे हैं या फिर मुझसे कुछ कहना चाह रहे हैं। मैंने अपनी गाड़ी के काँच को उनकी बात सुनने के मक़सद से नीचे उतारा। काँच उतरते ही वे सज्जन एकदम से गलत शब्दों का प्रयोग करने लगे।
कुछ पलों तक तो मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं उन्हें क्या जवाब दूँ?, फिर भी मैंने उन्हें शांत करने का प्रयास करते हुए उनकी परेशानी का कारण जानने का प्रयास करा लेकिन वे शायद कुछ सुनने-समझने के लिए राज़ी ही नहीं थे। मैंने उनकी बातों को नज़रंदाज़ करते हुए गाड़ी के काँच को वापस बंद कर लिया और उनकी ओर से अपना ध्यान हटा लिया। लेकिन इसके बाद भी उनका ग़ुस्सा शांत नहीं हुआ और वे कुछ-ना-कुछ बोलते ही रहे। हद तो तब हो गई जब उन्होंने मेरी गाड़ी के काँच पर मुक्का मार दिया।
उनकी भाषा में जवाब ना देना मेरा चुनाव था जिसे वे शायद मेरी कमजोरी मान रहे थे। गाड़ी पर मुक्का लगते ही मुझे लगा कि मुझे इन सज्जन को एहसास करवाना होगा कि उनका तरीक़ा सही नहीं है। पर दूसरे ही पल मुझे यह भी लगा कि अगर उनकी किसी भी एक्शन की वजह से अगर मैंने अपना आपा खोया तो शायद वे अपने मक़सद में कामयाब हो जाएँगे। मैंने उसी वक्त वहाँ से हटने का निर्णय लिया। लेकिन इतनी ही देर में उन महोदय ने मेरी गाड़ी के काँच पर एक और मुक्का मारने का प्रयत्न करा मैंने उसी वक्त अपनी गाड़ी कुछ इस तरह से आगे बढ़ाई, जिससे वे घबरा कर एकदम पीछे हट गए और मैं वहाँ से सुरक्षित आगे बढ़ गया।
जीवन में अकसर दोस्तों ऐसे पल आते हैं जहां सामने वाले की क्रिया आपको प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर करती है। लेकिन दोस्तों यही वह पल होता है जब आपको अपने संयम को बरकरार रखते हुए सिर्फ़ इतना विरोध जताना होता है कि प्रतिक्रिया ना देने को आपकी कमजोरी ना माना जाए और साथ ही साथ आप अपने मूल मक़सद या कार्य पर अपना फ़ोकस भी बनाए रख सकें। याद रखिएगा मूर्ख व्यक्ति पहले तो आपको अपने स्तर तक गिराने का प्रयास करता है और फिर अपनी मूर्खता के अनुभव से आपको हरा देता है। इसलिए कहते हैं जिसके पास जो होगा वह वही देगा या करेगा, मूर्ख मूर्खता ही करेगा, और समझदार समझदारी से अपना कार्य करता रहेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर