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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

विपरीत परिस्थितियों को जीतना है तो मन:स्थिति बदलें

विपरीत परिस्थितियों को जीतना है तो मन:स्थिति बदलें
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Nov 12, 2021

विपरीत परिस्थितियों को जीतना है तो मन:स्थिति बदलें


दो युवाओं ने शादी के समय निर्णय लिया था कि जब भी वे साथ रहेंगे सुबह की पहली चाय साथ बैठकर पिया करेंगे। एक दूसरे से किए वादे को निभाते-निभाते अब उनके 25 साल पूरे होने जा रहे थे। दोनों ने मिलकर निर्णय लिया कि वे अपनी शादी और एक-दूसरे से किए गए वादे की पच्चीसवीं सालगिरह पर कुछ ऐसी चीज़ लाएँगे जो जीवनभर हमें अपने वादे, साथ बिताए हसीन पलों की याद दिलाती रहे।


वे दोनों प्राचीन वस्तुएँ और बर्तन पसंद करते थे इसलिए उन्होंने एंटीक स्टोर से अपने लिए एक चाय का कप ख़रीदने का निर्णय लिया। काफ़ी सारा सामान देखने के बाद भी उन्हें वहाँ कुछ पसंद नहीं आ रहा था। वे वहाँ से वापस निकलने ही वाले थे कि उनका ध्यान शेल्फ में रखे एक बहुत सुंदर से कप पर गया। दोनों ने लगभग एक साथ ही एंटीक स्टोर वाले से उसे दिखाने के लिए कहा।


हाथ में एंटीक कप लेते ही आश्चर्य मिश्रित स्वर में वे बोले, ‘इतना सुंदर व असाधारण सा कप हमने कभी नहीं देखा। क्या हक़ीक़त में कोई चीज़ इतनी सुंदर, अनूठी हो सकती है?’ स्टोर वाला कुछ बोलता उससे पहले ही अचानक से वह प्याला बोल पड़ा, ‘माफ़ कीजिएगा, आप शायद समझ नहीं पा रहे हैं, मैं हमेशा ऐसा नहीं था। असल में मैं पहले लाल मिट्टी का एक ढेला था। एक दिन मेरे मालिक ने मुझे सड़क से उठाया और उसके बाद पहले पानी में डुबोकर मुझे मसला, पीटा, ठोका… मैं चिल्ला रहा था पर वो मुझे नज़रंदाज़ करते रहे।’


इसके बाद उन्होंने मुझे अचानक से एक बहुत बड़े गोल चक्के पर बैठा कर इतना जोर से घुमाया कि मुझे चक्कर आने लगे। पर मेरे मालिक ने इसे भी नज़रंदाज़ करा और मुझे एक नये रूप में ढालने में मगन रहे। मैं संभल पाता या कुछ समझ पाता उससे पहले ही मेरे मालिक ने मुझे उस चक्के से उठाकर ओवन में डाल दिया। इतनी गर्मी मैंने कभी सहन नहीं करी थी, मैं ओवन के अंदर से चिल्लाया, उसका दरवाज़ा ठोका लेकिन मेरे मालिक ने सिर्फ़ एक शब्द बोला, ‘अभी नहीं, थोड़ा इंतज़ार करो!’ 


मैंने थोड़ी देर तो बर्दाश्त करा लेकिन गर्मी बढ़ती ही जा रही थी। मुझे लगने लगा था कि अगले ही कुछ पलों में मेरा दम निकल जाएगा, मैंने एक बार फिर प्रयास करा और कहा, ‘कृपया मेरी तकलीफ़ को समझें और मेरी मदद करें, मुझे यहाँ से बाहर निकालें।’ मालिक ने क्या बोला मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया लेकिन उनके होठों को देख मुझे लगा मानों वे कह रहे थे, ‘थोड़ा और इंतज़ार करो।’ 


जिस वक्त मुझे एहसास हुआ कि बस अब मैं एक पल भी और बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा, मालिक ने ओवन का दरवाज़ा खोला और मुझे बाहर निकाल कर ठंडा होने के लिए शेल्फ पर रख दिया। मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा था। मैं अभी इस ठंडक के मज़े ले ही रहा था कि अचानक मालिक ने मुझे चारों और से अलग-अलग कलर से रंग दिया। मैं एक बार फिर मालिक से बोला, ‘कृपया इसे रोकें यह ब्रश मुझे छील रहा है।’ मालिक ने सिर हिला कर बोल दिया, ‘अभी नहीं!’ 


इसके बाद उन्होंने मुझे वापस से ओवन में डाल दिया। इस बार वह पहले से भी ज़्यादा गर्म था। मैंने मालिक से फिर विनती करी, मैं रोया, चिल्लाया, याचना करी लेकिन उन्होंने मुझे बाहर नहीं निकाला। कुछ पलों में मुझे यक़ीन हो गया कि आज मैं जलकर भस्म हो जाऊँगा तभी मालिक ने ओवन का दरवाज़ा खोला और मुझे शेल्फ में काँच के सामने रख दिया। लगभग 1 घंटे बाद जब मैं ठंडा होकर थोड़ा सामान्य हुआ तब मेरे मालिक बोले, ‘अब ज़रा अपने आप को इस काँच में देखो।’ मैंने उसी वक्त काँच में देखा और मैं… ‘मैं इतना सुंदर दिख रहा था कि मैं खुद को भी पहचान नहीं पाया। मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि यह मैं हूँ।’ 


इतना कहते ही वह कप थोड़ी देर के लिए चुप हो गया और फिर बड़े गर्व के साथ बोला, ‘आज जो मैं आपको इतना अच्छा, इतना सुंदर लग रहा हूँ वह मालिक द्वारा मुझ पर किए गए विश्वास और सहे गए दर्द का परिणाम है।’


जी हाँ दोस्तों, उस कप के मालिक की उस मिट्टी के ढेले से कोई दुश्मनी नहीं थी जिसके लिए उसने उसे पानी में डुबाया, मसला, पीटा, घुमाया, सेका और रंगा बल्कि उसे पता था कि उस मिट्टी के ढेले के अंदर कितना सुंदर कप छुपा हुआ था और उसे बाहर निकालने के लिए इतना ठोकना, पीटना और सेकना आवश्यक था।


ठीक इसी तरह दोस्तों हमारे मालिक, उस परम पिता परमेश्वर को भी पता है कि हमारे अंदर कौन-कौन सी खूबियाँ, विशेषताएँ छुपी हुई हैं। वह हमें हमारा सर्वश्रेष्ठ रूप देनें के लिए विभिन्न विपरीत परिस्थितियों से गुज़ारता है। मान लीजिए अगर वह कप तपने या रोंदे जाने से बचता तो क्या वह वह रूप पा सकता था? बिलकुल नहीं। तो आज से यक़ीन रखिएगा दोस्तों, जीवन में विपत्ति, परेशानी या विपरीत समय हमें बेहतर बनाने के लिए ही आता है। बस हमें इस मूल मंत्र को याद रखना होगा जब भी  अच्छी परिस्थिति बदलें तो तुरंत अपनी मन:स्थिति बदल लो, दुःख, सुख में बदल जाएगा!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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