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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

विपरीत परिस्थितियों में ‘निखरना’ या ‘बिखरना’ है आपके हाथ

विपरीत परिस्थितियों में ‘निखरना’ या ‘बिखरना’ है आपके हाथ
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June 30, 2021

विपरीत परिस्थितियों में ‘निखरना’ या ‘बिखरना’ है आपके हाथ…


आज एक वेबिनैर में व्यापारियों के एक समूह से चर्चा करने का मौक़ा मिला। इस चर्चा का विषय ‘कोरोना और व्यवसाय’ था।इस समूह में तीन तरह के व्यापारी थे पहले 10% वे व्यापारी थे जो अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट व खुश थे। दूसरे लगभग 70% वे व्यापारी थे जो नाखुश थे और वे इसके लिए किसी ना किसी को दोषी मान रहे थे। कुछ कोरोना को तो कुछ सरकारी नीतियों को जैसे जी.एस.टी. आदि को दोष दे रहे थे। तीसरे वे लोग थे जो निर्णय नहीं ले पा रहे थे या इस परिचर्चा में भाग नहीं ले रहे थे।


लेकिन दोस्तों इन तीनों ही वर्गों की मानसिक स्थिति का लेना-देना उनकी वित्तीय स्थिति से क़तई नहीं था। अर्थात् पहले 10% लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो पूरी तरह संतुष्ट थे लेकिन वित्तीय व व्यापारिक रूप से कमजोर थे वहीं इसके ठीक विपरीत 70% में कई लोग ऐसे थे जिनकी वित्तीय स्थिति व व्यापार बहुत मज़बूत स्थिति में था लेकिन उसके बाद भी वे संतुष्ट नहीं थे। 


मज़ेदार बात यह है कि कोरोना की वजह से लगभग सभी व्यापारियों ने एक जैसी परिस्थिति का सामना किया था लेकिन सभी की प्रतिक्रिया अलग-अलग थी। इस समूह से बात करते वक्त मेरी सोच की, ‘ख़ुशी और आनंद को खोजना है तो बाहर नहीं अपने अंदर खोजें ’ और मज़बूत हो गई। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि जो आंतरिक रूप से मज़बूत होगा वह बाहरी दबाव या विपरीत परिस्थितियों में और ज़्यादा निखर जाएगा और जो कमजोर होगा वह बिखर जाएगा। इसे मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ जो शायद आपने व्हाट्सएप पर पढ़ी होगी।


एक युवा लड़की अपने पिता के पास पहुँची और बोली, ‘पिताजी मैं इस जीवन से परेशान हो चुकी हूँ। ऐसा लगता है कि ईश्वर ने सारी समस्याएँ मेरे हिस्से में ही लिख दी हैं। एक से लड़कर बाहर आती हूँ तो दूसरी सामने खड़ी हुई नज़र आती है। एक समस्या से लड़कर जैसे-तैसे सामान्य हो पाती हूँ वही दूसरी सर उठाकर सामने आ जाती है। थक चुकी हूँ मैं अब इस रोज़-रोज़ के झंझट से।’


पिता, जो कि एक शेफ़ थे, ने बेटी को अपनी रसोई से पाठ सिखाने का निर्णय लिया और उसे अपनी रसोई में ले आए और तीन बर्तन में पानी उबलने के लिए रखने का कहा। बेटी के ऐसा करते ही उन्होंने पहले बर्तन में आलू, दूसरे बर्तन में अंडे और तीसरे में कॉफ़ी बीन्स को डालने के लिए कहा। बेटी के इतना करते ही वे बिना कुछ कहे उसके पास बैठ गए और अपना कुछ कार्य करने लगे।


बेटी बड़ी बेचैन थी, उसे आशा थी कि पिता उसे कुछ ना कुछ समाधान बताएँगे पर उन्होंने ऐसा कुछ करने की जगह उसे रसोई में व्यस्त कर दिया और खुद अपना कार्य करने लगे। वह बेचैन थी, इस बारे में वो चिढ़कर अपने पिता से बोलने ही वाली थी कि पिता की आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी और खींचा। पिता ने उसे आलू और अंडे को एक बर्तन में और कॉफ़ी को एक प्याले में निकालने के लिए कहा। बेटी ने पिता के आदेश का अनमने मन से पालन करा और कहा, ‘पिताजी मैं आपसे कुछ पूछ रही थी!’ पिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘बेटी मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या का समाधान ज़रूर बताऊँगा। पर उससे पहले तुम मुझे आलू को छूकर बताओ उबालने के पहले और अभी की स्थिति में क्या अंतर है।’ बेटी ने आलू को छूकर देखा और कहा, ‘पिताजी यह पहले के मुक़ाबले नरम हो गया है।’ 


‘बहुत ख़ूब तुमने सही पहचाना, अब ज़रा अंडे के ऊपरी खोल को महसूस करो और फिर उसे तोड़कर देखो उसमें क्या अंतर है।’ बेटी ने ऐसा ही करा। अंत में पिता ने उसकी और कॉफ़ी का कप बढ़ाते हुए कहा पहले इसे पी लो उसके बाद हम बात करते हैं। बेटी ने जैसे ही कॉफ़ी पीने के लिए कप उठाया उसके अंदर से आती बेहतरीन ख़ुशबू ने उसके चेहरे पर मुस्कान ला दी।


बेटी के कॉफ़ी खत्म करते ही पिता ने उससे कहा, ‘हमने आलू, अंडे और कॉफ़ी को एक जैसे स्थिति में उबलते हुए पानी में रखा। लेकिन तुमने ख़ुद ही देखा होगा, एक ही परिस्थिति में रहने के बाद भी तीनों की प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी। जहां आलू पहले मज़बूत और कठोर था वह उबालने के बाद नरम और कमजोर हो गया।


दूसरी ओर जहां अंडा की ऊपरी खोल कड़क होते हुए भी थोड़ा सा ज़ोर देने पर टूट जाता है और उसका तरल पदार्थ बिखर जाता है। अर्थात् बाहरी आवरण उस तरल पदार्थ की रक्षा करता है। पानी में उबालने के बाद वह तरल पदार्थ सख़्त हो गया।


लेकिन कॉफ़ी बीन्स इन दोनों से ही एकदम अलग, अद्वितीय थे। उन्होंने खुद के साथ-साथ उबलते पानी के स्वरूप को भी बदल दिया और कुछ नया बनाया। ठीक इसी तरह विपरीत परिस्थितियों में इंसान भी तीन तरह से व्यवहार करता है। कुछ लोग विपरीत परिस्थिति में टूट जाते हैं, कुछ इतने सख़्त हो जाते हैं कि अपनों से ही दूर हो जाते हैं। लेकिन सबसे बेहतर लोग कॉफ़ी बीन्स की तरह होते हैं जो विपरीत परिस्थिति में ना सिर्फ़ खुद निखर जाते हैं बल्कि जो भी उनके सम्पर्क में आता है उन्हें भी बदल देते हैं।


जी हाँ दोस्तों, जीवन में हम किन परिस्थितियों में रहेंगे यह तो कभी भी हमारे हाथ में नहीं रहेगा लेकिन जो बात आपके जीवन को बेहतर बना सकती है या जो वास्तव में मायने रखती है कि हम इस पर किस तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं। असल में जीवन संघर्षों और विपरीत परिस्थितियों को अपने रुख़ में मोड़कर इसे बेहतर बनाने का ही नाम है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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