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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

विश्वास की शक्ति

विश्वास की शक्ति
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April 22, 2021

विश्वास की शक्ति 


दोस्तों यह कहानी निश्चित तौर पर आपको भी किसी ना किसी ने फ़ॉर्वर्ड करी ही होगी। लेकिन यह कहानी आज के परिपेक्ष्य में इतनी सटीक है कि इसे एक बार फिर से सुनने और सुनाने में कोई हर्ज नहीं है। 


रणजीत की हाई राइज़ बिल्डिंग शहर के झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाक़े से लगी हुई थी। खाना खाने के बाद छत पर घूमते-घूमते वह अक्सर समाज के अलग-अलग तबकों के बीच की आर्थिक खाई के बारे में सोचा करता था लेकिन समझ नहीं पाता था कि किस तरह इस खाई को पाटने में अपना योगदान दे। शहर की सबसे ऊँची बिल्डिंग में छत पर घूमते वक्त वो रोज़ एक अजीब सा नजारा भी देखा करता था। झुग्गी में रहने वाला एक छोटा सा लड़का रोज़ एक गैस भरे ग़ुब्बारे पर कुछ लिख कर हवा में छोड़ दिया करता था व उसके बाद उसे तब तक देखते रहता था जब तक वह हवा में ओझल ना हो जाए। 


बच्चे और ग़ुब्बारे को देखना अब तो रणजीत के लिए भी एक नियम सा बन गया था। एक दिन कार्य की अधिकता की वजह से रणजीत अपने घर देर से पहुँचा, बच्चे और ग़ुब्बारे को देखने की ललक के चलते उसने जल्दी-जल्दी खाना खाया और छत पर पहुँच गया। लेकिन झुग्गी वाली गली में बच्चे और आसमान में ग़ुब्बारे को ना पाकर थोड़ा सा निराश हो गया। वह आसमान में इधर-उधर ग़ुब्बारे को तलाशने का प्रयास कर ही रहा था कि उसे वह ग़ुब्बारा उसकी छत पर रखी पानी की टंकी पर अटका हुआ दिख गया। ग़ुब्बारा देखते ही रणजीत की आँखों में चमक आ गई वह तुरंत सीढ़ी लगाकर पानी की टंकी पर चढ़ गया और उस ग़ुब्बारे को निकाल लाया। 


रणजीत ग़ुब्बारे को वापस से उड़ाने के बारे में सोच ही रहा था कि उसे याद आया कि वह बच्चा ग़ुब्बारे को उड़ाने से पहले उस पर कुछ लिखता भी है। रणजीत ने उसे पढ़ने का निश्चय किया। लेकिन यह क्या, ग़ुब्बारे पर लिखा हुआ पढ़ते ही रणजीत की आँखों में आंसू आ गए और वह बेचैन हो गया। ग़ुब्बारे पर लिखा हुआ था कि, ‘है ऊपर वाले! मेरी माँ की तबियत बहुत ख़राब है, मेरे पास उनके इलाज के लिए पैसे नहीं हैं कृपया करके किसी को भेज दो।’


रणजीत ने बड़ी मुश्किल से वह रात गुज़ारी। सुबह उठते ही रणजीत झुग्गी वाले इलाक़े में उस लड़के से मिलने के लिए उसके घर गया। वहाँ पहुँचने पर उसने उस छोटे बच्चे की माँ को बीमार अवस्था में पाया। रणजीत ने तुरंत अपनी गाड़ी में उस बच्चे और उसकी माँ को बैठाया और इलाज के लिए अस्पताल ले गया। अस्पताल में रणजीत के पूछने पर बच्चे ने ग़ुब्बारे पर लिखने की वजह बताते हुए कहा, ‘एक दिन खेलने के बाद जब में घर जा रहा था तब रास्ते में एक भिखारी दादा ने मुझसे कहा कि, ‘मेरी तबियत ठीक नहीं है क्या तुम मुझे खाना खिला सकते हो?’ मेरे द्वारा तुरंत घर से खाना लाकर देने पर वे बोले, ‘बेटा तेरी मदद ऊपर वाला करेगा।’ मैंने उनसे फिर पूछा, ‘क्या सच में ऊपर वाला मेरी मदद करेगा?’ तो वे बोले, ‘हाँ, जिस तरह मेरे लिए उन्होंने तुम्हें भेजा है उसी तरह ज़रूरत पड़ने पर वो किसी न किसी को तुम्हारी मदद के लिए भेजेगा।’


बच्चे ने शून्य की ओर देखते हुए कहना जारी रखा, ‘जब माँ बीमार हुई तो मुझे ऊपर वाले तक अपनी बात पहुँचाने का कोई रास्ता समझ नहीं आया तो मैंने रोज़ की कमाई में से पाँच रुपए का एक ग़ुब्बारा लिया और उस पर लिखकर आसमान में छोड़ना शुरू कर दिया।’ बात पूरी करते ही वह बच्चा धन्यवाद भरी निगाह से रणजीत की ओर देखते हुए बोला, ‘तुम्हें ऊपर वाले ने ही  भेजा है ना?’ बच्चे की बात सुनते ही रणजीत की आँखों में आंसू आ गए, उसने बच्चे को गले लगा लिया और बोला, ‘हाँ, भिखारी दादा ने तुम्हें सही बोला था, मुझे ऊपर वाले ने ही भेजा है।’  रणजीत ने माँ के इलाज के साथ-साथ उस बच्चे के पढ़ने की व्यवस्था भी करवा दी।


जी हाँ दोस्तों, यह समय थोड़ा अलग, कठिनाई भरा हुआ ज़रूर है लेकिन जिस तरह उस बच्चे ने खुद की परेशानियों को दरकिनार कर दया भाव रख भिखारी की मदद करी। ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास रखते हुए, भोलेपन के साथ रोज़ प्रार्थना करी। ठीक उसी तरह हमें भी अपना, अपने परिवार और पास पड़ोस का पूरा ध्यान रखते हुए, पूर्ण आस्था के साथ प्रभु से प्रार्थना करना है। याद रखिएगा दोस्तों, जिस तरह प्रभु किसी ना किसी रूप में हमारे पास पहुँचकर हमारी ज़रूरतें पूरी कर रहा हैं, ठीक उसी तरह हमें भी अपने आस-पास मौजूद लोगों तक मदद का हाथ बढ़ाना है और विश्वास रखना है कि वो ईश्वर हर पल हमारा ध्यान रख रहा है, हर पल हमारे साथ चल रहा है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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