फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
वे दया नहीं, सिर्फ़ इंसानियत भरा समान व्यवहार चाहते हैं


June 25, 2021
वे दया नहीं, सिर्फ़ इंसानियत भरा समान व्यवहार चाहते हैं…
एक छोटा बच्चा अपने पिता के साथ बाज़ार गया था, एक दुकान के सामने से निकलते वक्त उसकी नज़र दुकान के ऊपर लगे एक बोर्ड पर गई ‘बिक्री के लिए पपीज़ (कुत्ते के पिल्ले) उपलब्ध हैं। वैसे भी दोस्तों कई दुकानों के बाहर बच्चों को आकर्षित करने के लिए इस तरह के लुभावने शब्दों वाले बोर्ड लगे रहते हैं। बोर्ड पढ़ते ही बच्चे की आँखों में चमक आ गई उसने तुरंत अपने पिता से आज्ञा ली और उस दुकान में चला गया।
छोटे से बच्चे को दुकान में अकेला देख स्टोर मालिक उसके पास गया और उसे ‘सुप्रभात’ बोलते हुए बोला, ‘बताइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?’ बच्चे ने पपीज़ को देखने की इच्छा जताई। दुकानदार बच्चे को पपीज़ के पास लेकर गया। बच्चा उन्हें देखते ही एकदम खुश हो गया और दुकानदार की ओर देखते हुए बोला "आप इन पपीज़ को कितने में बेच रहे हैं?” दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘300 से 500 रुपए तक।’
क़ीमत सुनते से ही बच्चा थोड़ा सा ठिठका। दुकानदार तुरंत भाप गया कि शायद बच्चे को क़ीमत ज़्यादा लग रही है या इसी तरह कि कुछ और समस्या है। दुकानदार ने बच्चे की ओर देखते हुए कहा, ‘क्या बात है? आपके मन में कोई दुविधा है क्या?’ बच्चा पूरी गम्भीरता से बोला, ‘जी हाँ मेरे पास इस वक्त मात्र सौ रुपए है। क्या आप मुझे एक पपी किश्तों में दे सकते हैं? मैं आपको सौ रुपए अभी और बाक़ी 50 रुपए प्रति माह अपने जेब खर्च से दे दूँगा?’
दुकानदार बच्चे की मासूमियत से बड़ा प्रभावित हुआ, उसने तुरंत ‘हाँ’ कह दिया। बच्चा अब थोड़ा उत्साहित था वह सभी पपीज़ को बहुत ध्यान से देखने लगा। तभी उसकी नज़र बहुत धीमी चाल से लंगड़ा कर चलते हुए पपी पर पड़ी उसने तुरंत उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मुझे वह वाला पपी चाहिए।’ दुकानदार तुरंत बोला, ‘आप उसे रहने दीजिए एवं कोई दूसरा पपी चुन लीजिए।’ बच्चा एक अड़ गया और कहने लगा, ‘नहीं मुझे तो वही वाला पपी चाहिए।’ दुकानदार कुछ देर तक तो उसे समझाने, बहलाने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब बच्चा नहीं माना तो दुकानदार बोला, ‘अच्छा फिर ठीक है आप इस पपी को ऐसे ही ले जाएँ। लेकिन बच्चा इसके लिए भी राज़ी नहीं था। वो बोला, ‘नहीं, मैं इसके पूरे पैसे दूँगा। अगर आप मेरी शर्तों पर इसके पैसे नहीं लेंगे तो मैं इसे नहीं ले पाऊँगा।’
दुकानदार को समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह मैं बच्चे को समझाऊँ। वह बोला, ‘इस पपी का एक पैर ख़राब है इसलिए यह लंगड़ा कर चलेगा और वह कभी भी अन्य पपी की तरह आपके साथ दौड़ने, कूदने और खेलने में सक्षम नहीं होगा।।’ दुकानदार की बात सुन बच्चा बोला, ‘मैं नहीं चाहता कि आप उसे मुझे फ़्री में दें। वह पपी भी अन्य सभी पपी के बराबर है और मैं उसकी पूरी कीमत चुकाऊंगा। वास्तव में, मैं आपको अभी सौ रुपए दूँगा और बचे हुए पैसे 50 रुपए प्रति माह की किश्तों में चुकाऊँगा।’ दुकानदार बच्चे की ज़िद्द से परेशान था, उसने बच्चे से पूछा, ‘आप इसे ही क्यूँ ख़रीदना चाहते हो?’ इतना सुनते ही वह बच्चा ज़मीन पर बैठ गया और अपने जूते-मोज़े उतार कर अपना पैर दुकानदार को दिखाने लगा ।
दुकानदार उस बच्चे को देख हैरान था असल में उसका एक पैर नक़ली था। असल में वह बच्चा दिव्यांग था। तभी बच्चा बहुत गम्भीर आवाज़ में बोला, ‘“आप जो कह रहे हैं वह ठीक है, मैं खुद भी अपने पैर की वजह से ज़्यादा तेज़ नहीं दौड़ता, और इस छोटे पपी को भी किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होगी जो इसे समझ पाए!’
जी हाँ दोस्तों आज जब हम समाज में इन विशेष बच्चों को देखते हैं तो हम इन बच्चों के प्रति दया दिखाने लगते हैं। असल में इन्हें हम में से किसी की भी विशेष दया की ज़रूरत नहीं होती है। वे हमसे सिर्फ़ समान इंसानियत भरे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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