फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
शारीरिक नहीं आंतरिक सुंदरता बढ़ाइए


Mar 19, 2021
शारीरिक नहीं आंतरिक सुंदरता बढ़ाइए…
कई बार मुझे विद्यालय अथवा संस्थान द्वारा कर्मचारियों के इंटरव्यू करने के लिए ही बुलाया जाता है। ऐसे ही एक कार्य के लिए मुझे एक संस्थान द्वारा बुलवाया गया। तय समय पर संस्थान के कार्यालय पहुँचने पर उन्होंने मेरा परिचय इंटरव्यू पैनल से करवाया उसके पश्चात संस्थान प्रमुख द्वारा मुझे एक फ़ाइल दी गई जिसमें सभी उम्मीदवारों के रिज्यूम क़रीने से लगे हुए थे। इसके अलावा बैठने के स्थान पर एक इवैल्यूएशन चार्ट, पेन, सफ़ेद पेपर आदि रखे हुए थे। संस्थान की तैयारियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया।
शुरुआती चर्चा के बाद एक-एक करके उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलवाया जाने लगा। हर उम्मीदवार से चर्चा के पश्चात पैनल सामूहिक रूप से उस पर चर्चा करता था। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था। साक्षात्कार खत्म होने के बाद सभी लोगों ने इवैल्यूएशन चार्ट के आधार पर चयन प्रक्रिया शुरू कर दी। मुझे आश्चर्य तब हुआ जब पैनल के एक सदस्य एक विशिष्ट सदस्य को सुंदरता और अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान के आधार पर चुनने के लिए अड़ गए। उनका मत था कि अगर उम्मीदवार शारीरिक रूप से सुंदर और अंग्रेज़ी बोलने में अच्छा हो तो बाक़ी काम आसानी से चल जाता है। आपसी चर्चा का स्वरूप बदलता देख मैंने उन्हें एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया।
बहुत साल पहले एक राजा अपनी न्यायप्रियता और सुशासन के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनके राज दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान थे और उनकी सफलता का राज भी विद्वानों का साथ ही था। वे हर निर्णय विद्वानों से सलाह मशविरा करने के पश्चात ही लिया करते थे।
इन्हीं रत्नों में एक रत्न थे बुद्धिसार, अपने नाम के अनुरूप ही बुद्धिसार बहुत बुद्धिमान लेकिन कुरूप थे। एक दिन महाराज बुद्धिसार के साथ अकेले में किसी विषय पर मंत्रणा कर रहे थे। चर्चा के पश्चात महाराज ने उनसे प्रश्न किया, ‘महात्मन आज फिर आपके ज्ञान और आपके साथ होने पर गर्व महसूस कर रहा हूँ। लेकिन एक प्रश्न मुझे अकसर परेशान करता है, भगवान ने आपका शरीर आपकी बुद्धि के समान सुंदर क्यूँ नहीं बनाया? इसकी क्या वजह है?’ बुद्धिसार राजा के प्रश्न से ज़रा भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने शांत भाव के साथ राजा से कहा, ‘राजन, समय आने पर मैं आपके प्रश्न का उत्तर अवश्य दूँगा। लेकिन आज हमें समय की आवश्यकता को देखते हुए सभा को आगे बढ़ाना चाहिए।’ इतना कहकर राजा के प्रश्न को बुद्धिसार ने टाल दिया और उनके साथ दरबार में चले गए।
कुछ दिनों पश्चात राजा ने सेवक से पीने के लिए पानी माँगा। बुद्धिसार ने तुरंत सेवक को कुछ निर्देश दिया और पानी लेने के लिए भेज दिया। कुछ देर पश्चात सेवक दो अलग-अलग तरह के बर्तन में पानी लेकर आया। एक बर्तन साधारण मिट्टी से बना हुआ था वहीं दूसरा बर्तन सोने का। राजा दो बर्तनों में पानी देख आश्चर्यचकित थे, उन्होंने सेवक से इस तरह पानी लाने की वजह पूछी। सेवक कुछ कहता उससे पूर्व ही बुद्धिसार अपने स्थान पर खड़े हुए, महाराज को नमन करा और बोले, ‘महाराज सेवक ने ऐसा मेरे निर्देश पर करा है। मैं आपको इसका कारण अवश्य बताऊँगा लेकिन क्या मेरे निवेदन पर आप इन दोनों बर्तनों का पानी एक-एक करके पिएँगे।’ बुद्धिसार के निवेदन पर महाराज ने दोनों बर्तनों का पानी पिया।
जल ग्रहण करने के पश्चात बुद्धिसार ने राजा से पूछा, ‘राजन, इन दोनों बर्तनों में से किस बर्तन का पानी आपको शीतल लगा?’ राजा ने कहा, ‘निश्चित तौर पर मिट्टी के बर्तन का।’ बुद्धिसार मुस्कुराए और बोले, ‘राजन जिस प्रकार पानी की शीतलता बर्तन के प्रकार, उसकी क़ीमत या उसकी बनावट पर निर्भर नहीं करती है ठीक उसी प्रकार बुद्धि की सुंदरता अर्थात् ज्ञान का लेना देना भी शारीरिक सुंदरता से नहीं है।’ बुद्धिसार के जवाब से राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था।
कहानी पूरी करने के पश्चात मैंने इंटरव्यू पैनल के समक्ष अपने मत को स्पष्ट किया और विदा लेकर वापस आ गया। जी हाँ दोस्तों अकसर इस तरह की गलती हम अपने जीवन में करते हैं, फिर चाहे हमें कोई ज़रूरत का सामान चुनना हो या दोस्त, कर्मचारी बल्कि जीवन साथी तक। हम सामान को ज़रूरत के आधार पर चुनने के स्थान पर उसके ब्रांड और लोगों को उनके व्यवहार के स्थान पर उनके पास उपलब्ध संसाधनों अथवा उनकी सुंदरता के आधार पर चुन लेते हैं।
रखिएगा दोस्तों, आँखों को पसंद आना सर्वश्रेष्ठ होने की निशानी नहीं है। शारीरिक सुंदरता जहां ध्यान आकर्षित करती है वहीं आंतरिक सुंदरता और ज्ञान, आत्मा को आकर्षित करती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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