फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
संघर्ष, सफलता का पहला पायदान
May 29, 2021
संघर्ष, सफलता का पहला पायदान
दोस्तों आज एक बार फिर मुझसे किसी ने वही सवाल, ‘सर, आप इतनी सारी शुरुआती असफलता के बाद अपना मोटिवेशन कैसे बरकरार रख पाए?’ पूछ लिया। वैसे मैं इस प्रश्न का उत्तर अपने इस लेख में पहले भी शायद 2 या 3 बार दे चुका हूँ। लेकिन फिर भी उनसे हुई बातचीत के आधार पर चलिए आज इसे एक बार फिर नए तरीक़े से बताने का प्रयास करता हूँ।
उनके सवाल को सुन मैंने उनसे कहा, ‘मित्र इस सवाल के दो बड़े साधारण से जवाब हैं। पहला, मैं जीवन में एक बार भी असफल नहीं हुआ। हाँ, यह सही है कि मेरे कुछ व्यवसायिक विचार या आईडिया सफल नहीं हो पाए। दूसरा, मेरे पास सफल होने के सिवा कोई चारा भी नहीं था।’
याद रखिएगा दोस्तों व्यवसायी या उद्यमी (entrepreneur) कभी फेल नहीं होता, बस कई बार उसकी योजना या विचार उतने सफल नहीं हो पाते जैसा उसने सोचा था। जीवन में आप तब तक असफल नहीं होते हैं, जब तक आप स्वयं को असफल ना मान लें क्यूँकि अगर आप दौड़ में बने हुए हैं तो आपके जीतने की सम्भावना भी बनी हुई है।
ख़ैर, मैंने अपनी बात कहना जारी रखते हुए उन सज्जन से कहा, ‘जिस तरह मज़बूत और बड़ी इमारत बनाने के लिए गहरी और मज़बूत नींव बनानी पड़ती है वैसे ही ईश्वर मुझसे जो कार्य करवाना चाह रहा था शायद उसे पूरा करने के लिए जो आवश्यक था, वह अनुभव के रूप में उन्होंने मुझे सिखाया।’
इतना सुनते ही वे सज्जन बोले, ‘लेकिन सर आपको ऐसा नहीं लगता कि इस चक्कर में आप बहुत पीछे रह गए।’ उनकी बात बीच मैं काटते हुए मैंने उनसे कहा, ‘देखिए मेरी रेस किसी अन्य से नहीं खुद से है। मैं अपने हर दिन को गुजरे हुए दिन के मुक़ाबले बेहतर तरीक़े से जीना चाहता हूँ और ईश्वर के मेरे लिए अनूठे प्लान की वजह से ही मैं आज इस स्थिति में आ पाया हूँ कि आप मुझसे यह प्रश्न पूछ रहे हैं। वैसे मैं आगे हूँ या पीछे, उसका निर्णय कोई और कर ही नहीं सकता है क्यूँकि उसे पता नहीं है कि मैं किस उद्देश्य के लिए काम कर रहा हूँ। वैसे मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूँ जो शायद आपको जीवन की रेस के बारे में स्पष्ट विचार बनाने में मदद करे।’ इतना कहते हुए मैंने यह कहानी उन सज्जन को सुनाई-
एक बार एक किसान कुछ बीज लेकर जंगल के रास्ते अपने घर जा रहा था। रास्ते में उस किसान की पोटली से सुंदर फूल और बांस के पेड़ के कुछ बीज ज़मीन पर गिर गए। ऊपर आसमान में बैठे-बैठे ईश्वर सब देख रहे थे उन्होंने सोचा इस बीज में बहुत सुंदर पेड़-पौधे बनने की क्षमता है क्यूँ ना मैं इनकी देखभाल कर इन्हें खिलने का मौक़ा दूँ। बस फिर क्या था, विचार आते ही प्रभु ने तेज़ आँधी चलाई जिससे बीज मिट्टी के अंदर दब गए। अब ईश्वर आवश्यकता अनुसार उन बीजों को बारिश से पानी और ज़रूरत के अनुसार धूप देने लगे। कुछ सप्ताह बाद फूल के बीजों वाली जगह छोटे-छोटे पौधे अंकुरित होने लगे लेकिन बांस के बीज वाली जगह पर कोई अंतर नज़र नहीं आ रहा था। लेकिन प्रभु एकदम निश्चिंत थे उन्होंने बाँस के बीज वाले स्थान और फूल के पौधों वाले स्थान में बिना कोई फ़र्क़ किए, उनके बड़े होने के लिए आवश्यक पानी, रोशनी आदि ज़रूरत की सभी चीजें दी। एक वर्ष बीतने के बाद अब उस स्थान पर सुंदर फूलों के कई पौधे हो गए थे लेकिन बांस के बीज वाला स्थान अभी भी वैसा का वैसा ही था। लेकिन प्रभु अभी भी दोनों के साथ एक जैसा व्यवहार करते हुए दोनों को एक जैसे संसाधन उपलब्ध करवाते रहे। समय बीतता गया और देखते ही देखते चार वर्ष गुजर गए। अब वहाँ फूलों के सुंदर वादी थी लेकिन बांस वाला स्थान अभी भी वैसा ही था।
देवलोक में कई लोगों ने प्रभु से इस विषय में कहा, ‘जब वहाँ कुछ है ही नहीं तो आप अपने संसाधन क्यूँ बिगाड़ रहे हैं? पर प्रभु ने किसी को कोई जवाब नहीं दिया बस अभी भी दोनों स्थानों पर एक जैसे संसाधन उपलब्ध करवाते रहे। पाँचवें साल में बांस के बीज के स्थान पर एक छोटा सा पौधा अंकुरित हुआ जो फूलों की वादी के सामने बिलकुल महत्वहीन सा लग रहा था। लेकिन देखते ही देखते मात्र छः माह में 90 से सौ फ़ीट का हो गया।
बांस की ऊँचाई देख देवलोक में सभी अचंभित थे सभी के मन में विचारों के भूचाल आ रहे थे। वे प्रभु से कुछ पूछना चाह रहे थे लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहे थे। प्रभु सब की दुविधा समझ गए और बोले, बांस को इतना ऊँचा उठना था इसलिए उसने पहले पाँच साल ज़मीन में अपनी जड़ को फैलाने, उसे मज़बूती देने में लगाए और जैसे ही जड़ मज़बूत हुई वह बड़ा हो गया। वैसे यह उसके बने रहने के लिए भी आवश्यक था।’
कहानी पूरी होते ही मैंने उन सज्जन की ओर देखते हुए कहा फूल और बांस की ही तरह हम सब उस परम पिता परमेश्वर के लिए एक समान हैं। वह हममें से किसी के भी साथ पक्षपात नहीं करता है, हम सभी को जीवन में आगे बढ़ने के लिए एक समान अवसर देता है। बस हमें तुलना करना छोड़कर संघर्ष करते रहना होगा, जैसे ही हमारा समय आएगा हम भी तेज़ी से आगे निकल जाएँगे। अगर मैंने वह संघर्ष नहीं करा होता, तो शायद आज मैं अपने रेडियो शो और कॉलम को एक वर्ष से ज़्यादा तक सतत नहीं चला सकता था। यही संघर्ष मुझे काउन्सलिंग और ट्रेनिंग के कार्य को निपुणता के साथ पूरा करने में भी मदद करता है। आज से बस एक बात याद रखिएगा दोस्तों, ‘संघर्ष का समय जड़ों को मज़बूत बनाने का समय होता है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com