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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सकारात्मक पेरेंटिंग के 5 नियम

सकारात्मक पेरेंटिंग के 5 नियम
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Sep 16, 2021

सकारात्मक पेरेंटिंग के 5 नियम!!!


‘मैं बड़ा होकर एक यूट्यूबर बनना चाहता हूँ।’ बच्चे के इतना कहते ही उसके पिता ने मेरे सामने ही उसे ना जाने क्या-क्या उपाधियों से नवाजते हुए नाकारा, नाकाबिल तक घोषित कर दिया। ठीक इसी तरह की घटना कुछ दिन पूर्व भी घटी थी जब एक बच्चे ने कैरियर के रूप में मॉडल बनना चुना था। तब भी उसके माता-पिता ने उसकी हज़ार कमियाँ निकालते हुए उसे एक ‘बिगड़ैल बच्चे’ की उपाधि से नवाज़ दिया था।


दोनों ही बच्चों के माता-पिता का मानना था कि उनके लाड़-प्यार और आसानी से मिली सुविधाओं ने बच्चों को बिगाड़ दिया है। लेकिन मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था। मैं स्वयं से प्रश्न पूछ रहा था कि, ‘क्या इस तरह के माहौल या शब्दों के बीच बच्चे के व्यक्तित्व का निखर पाना सम्भव है?’ शायद नहीं! क्यूँकि कैरियर काउन्सलिंग के अपने लम्बे अनुभव के आधार पर मेरा मानना है कि अगर बच्चे के साथ आप एक स्वस्थ, भावनात्मक रिश्ता नहीं रखते हैं तो आपके लिए उसकी सोच या जीवन में बड़े बदलाव लाना आसान नहीं होगा। फिर क्या किया जाए?, यह एक बड़ा प्रश्न है।


सबसे पहली बात जो हमें समझना होगी, बच्चे आजकल ऐक्टर, मॉडल, सेलिब्रिटी मैनेजर, ब्लॉगर, यूट्यूबर आदि जैसे सामान्य से हटकर कैरियर विकल्प क्यूँ चुनते हैं? असल में दोस्तों वे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहते। वे अपने जीवन को अपनी शर्तों, अपने सपनों के आधार पर जीना चाहते हैं। जीवन के बारे में उनका अपना एक अलग नज़रिया है। दूसरी बात जिसका जवाब हमें ढूँढना होगा, हम उनके अलग से कैरियर विकल्प का विरोध क्यूँ कर रहे हैं? क्या विरोध करने लायक़ सटीक जानकारी हमारे पास है? तीसरी बात कहीं आप अपनी असफलताओं के आधार पर उसे रिस्क लेने या कुछ अलग चुनने से तो नहीं रोक रहे हैं।


ख़ैर, कारण कुछ भी हो दोस्तों एक बात ध्यान रखिएगा, अगर हम बच्चों के जीवन को बेहतर और खुशहाल बनाना चाहते हैं तो उन्हें बिना उचित कारण डाँटना, चिल्लाना, शक करना, बंदिश लगाना, ज़बरदस्ती करना या अपनी बात मनवाना बंद कीजिए और सकारात्मक तरीक़े से उनकी पेरेंटिंग करना शुरू कीजिए। सकारात्मक पेरेंटिंग के लिए निम्न 5 सूत्र काम में लें-


पहला नियम - बच्चों से बात करते समय हतोत्साहित करने वाले शब्दों का नहीं, प्रोत्साहित करने वाले शब्दों का प्रयोग करें। 


दूसरा नियम - याद रखें, बच्चे आपके द्वारा कहे शब्दों (इन्स्ट्रक्शन) से नहीं बल्कि दैनिक जीवन में आप कैसे कार्य करते हैं (इग्ज़ाम्पल) उसे देखकर ज़्यादा सीखते हैं। इसलिए बच्चों के सामने वैसा ही व्यवहार करें जो आप उसे सिखाना चाहते हैं।


तीसरा नियम - बच्चों को पूरी तरह रोकने के स्थान पर ग़लतियाँ करके असफलता का स्वाद चखने दें। हर समय असफलताओं से बचाना उन्हें विपरीत परिस्थितियों और जीवन के लिए तैयार नहीं कर पाएगा। अगर आपको कभी भी लगे बच्चा ग़लत निर्णय ले रहा है या ग़लत विकल्प चुन रहा है तो उसे बस सही रास्ते के बारे में, उससे होने वाले फ़ायदे और नुक़सान के बारे में बता दें और अंतिम निर्णय उस पर छोड़ दें। इससे वह निर्णय लेना, तुलना करना और ग़लतियों से सीखकर लड़ना सीखेगा साथ ही उसे आपके अनुभव या तरीक़े पर भी विश्वास होने लगेगा।


चौथा नियम - बच्चे की ऊर्जा का स्त्रोत बनें, नकारात्मकता का नहीं। याद रखें, बच्चे को तमाम अनिश्चितताओं के बाद भी आपके साथ समय बिताना अच्छा लगना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब आप उसके रोल मॉडल बनने का सकारात्मक प्रयास करेंगे।


पाँचवाँ नियम - बच्चों को सकारात्मक सेल्फ़ टॉक (खुद से बातचीत) करना सिखाएँ। उसे ऐसे लोगों से बचना सिखाएँ जो हमेशा नकारात्मक सोचते और बोलते हैं। हमें उसे शब्दों की ताक़त का एहसास करवाना होगा क्यूँकि शब्द ही हमारे विचारों को जन्म देते हैं, विचार हमारे दृष्टिकोण को और दृष्टिकोण हमारे जीवन को दिशा देकर, सपनों को हक़ीक़त में बदलता है। 


दोस्तों, उपरोक्त बातों का अर्थ यह क़तई नहीं है कि हम बच्चों को उनकी ग़लतियों के लिए रोकना या टोकना बिलकुल बंद कर दें। बच्चों को सही दिशा दिखाना, सही संस्कार सिखाना हमारी ज़िम्मेदारी है। बस ऐसा करते वक्त हमें एक ही बात का ध्यान रखना है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें। 


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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