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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सकारात्मक या नकारात्मक नज़रिया : चुनाव आपका

सकारात्मक या नकारात्मक नज़रिया : चुनाव आपका
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May 15, 2021
सकारात्मक या नकारात्मक नज़रिया : चुनाव आपका


आज एक सज्जन ने बातचीत के दौरान बड़ा अच्छा सवाल पूछ लिया, वे बोले, ‘सर इस महामारी ने एक बार फिर हमारे राष्ट्रीय चरित्र, ‘मौक़ापरस्त, स्वार्थी या लालची इंसान की छवि को सिद्ध कर दिया। हम ऐसे क्यूँ हैं?’, मैंने उनसे पूछा, ‘आपको ऐसा क्यूँ लगता है?’, वे बोले, ‘आप हमारे देश के किसी भी कोने में चले जाइए हर जगह आपको एक जैसी स्थिति नज़र आएगी। लोग अपनी संवेदना को ताक पर रखकर मुनाफ़ा कमाते, लोगों की मजबूरी का फ़ायदा उठाते नज़र आएँगे। फिर चाहे वे दवाई विक्रेता, ऐम्ब्युलेन्स वाले, अस्पताल, राजनैतिक लोग, व्यापारी वर्ग आदि कोई भी क्यूँ ना हो। सारे समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल ऐसी ही खबरों से भरे पड़े हैं। असल में हमारा राष्ट्रीय चरित्र अब दाग़दार हो चुका है।’

मैंने उन्हें बीच में ही रोकते हुए प्रश्न करा, ‘आपको क्या लगता है 135 करोड़ लोगों में इन दाग़दार लोगों का प्रतिशत कितना होगा?’ वे बोले, ‘सर ज़्यादातर लोग ऐसे ही हैं।’ मैंने उनसे कहा माफ़ कीजिएगा सर, मैं आपके अंदाज़े और आँकड़े से सहमत नहीं हूँ, यह पूर्णतः ग़लत है।’ इतना सुनते ही उन्होंने अगला प्रश्न करा, ‘फिर आप क्या सोचते हैं?’ मैंने कहा, ‘हमारी संस्कृति और परिवार से मिले संस्कार आपके मत के बिलकुल विपरीत सिखाते है। आपदा और विपरीत परिस्थितियों में मदद करने वाले हाथों की संख्या हमेशा फ़ायदा उठाने वाले लोगों से कई गुना ज़्यादा होती है और महामारी या अति विकट समय में यह आम दिनों के मुक़ाबले कई गुना बढ़ जाती है। बस हम तक यह सारे किस्से या बातें पहुँच नहीं पाती हैं और अगर पहुँच भी जाती है तो कई बार हम उस पर आसानी से विश्वास नहीं करते हैं।’

उन्होंने अगला प्रश्न करा, ‘इसकी क्या वजह हो सकती है?’ मैंने कहा, ‘मुझे इसकी 3 मुख्य वजह लगती है। पहली, हम नकारात्मक बातों के प्रति जल्दी प्रतिक्रिया देते हैं, दूसरी, हमारे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ, मीडिया का दायित्व है कि वह क़ानून या मानवीय आधार पर हो रही चूक या ग़लतियों को उजागर करे, इसलिए हमें नकारात्मक खबरें ज़्यादा मिलती हैं और तीसरा और अंतिम कारण है कि आम भारतीय आसानी से किसी के कार्य की तारीफ़ नहीं करता, उसे धन्यवाद नहीं बोलता क्यूँकि उसे भी किसी से आसानी से ना तो तारीफ़ ना ही धन्यवाद सुनने को मिलता है। साथ ही नकारात्मक सोच के कारण वो हर किसी को शक से देखता है, तथ्यों के आधार पर नहीं। यही वजह है कि आम लोग नकारात्मक खबरों को प्रमुखता से फैलाते हैं और अच्छी खबरों को तोलते हैं।’

वे तुरंत बोले, ‘सर, आपकी बात लगती तो एकदम सही है। लेकिन फिर इस नकारात्मकता से कैसे बाहर निकला जाए?’ मैंने जवाब देने के स्थान पर उनसे प्रश्न पूछ लिया, ‘सर, अगर रास्ते में बहुत सारे काँटे हों तो जूते पहन कर रास्ता पार करना आसान है या पूरे रास्ते से काँटे बिनते हुए, उसे साफ़ करते हुए जाना।’ वे बोले, ‘सर, निश्चित तौर पर जूते पहनकर जाना।’ मैंने उनसे तुरंत कहा, आपके सवाल का यही जवाब है। हमें समाज में फैली नकारात्मक खबरों से ध्यान हटाकर अपने आस-पास मौजूद लोगों को एहसास दिलाना होगा कि ‘भाई चिंता मत कर, मैं हूँ ना!’ साथ ही जो लोग कोई भी अच्छा कार्य कर रहे हैं उनकी पीठ थपथपाएँ, उनके बारे में लोगों को बताएँ। याद रखिएगा बदलाव की शुरुआत हमेशा खुद से होती है।’ इस जवाब से वे सहमत लगे और तुरंत ही एक डॉक्टर के बारे में मुझे बताने लगे जो विदेश में अपना जमा-जमाया काम छोड़कर अपने देश में मानवता की सेवा करने के लिए वापस आ गए हैं। वही क़िस्सा दोस्तों मैं भी आप तक पहुँचा देता हूँ, 34 वर्षीय भारतीय-अमेरिकी डॉक्टर हरमनदीप सिंह बोपाराय, न्यूयॉर्क, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका में फ्रंटलाइन कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे। जैसे ही कोविद 19 की दूसरी लहर ने भारत में क़हर बरपाना शुरू किया, वे तुरंत अपने देश लौट आए और अपने गृह नगर अमृतसर में कोविद रोगियों का इलाज कर, वायरस को हराने में अपना योगदान देने लगे। उनका अगला लक्ष्य मुंबई में ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’, जो कि एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय चिकित्सा संगठन है के द्वारा बनाए जा रहे 1000 बिस्तरों वाले अस्पताल में सेवा देना है।’

उनकी बात पूरी होते ही उन्हें मैंने उन्हें उज्जैन के सीएचएल अस्पताल में कार्य कर रही नर्स पिंकी कुशवाह के बारे में बताया जिन्होंने कोरोना मरीज़ों की सेवा के लिए स्वेच्छा से 60 घंटों तक निरंतर कार्य किया। 60 घंटे बाद भी वे अस्पताल में कार्य करने के लिए तैयार थी लेकिन कन्सल्टिंग डॉक्टर के समझाने पर उन्होंने आराम करने के लिए ब्रेक लिया।

दोनों किस्से पूरे होने के बाद सकारात्मकता फैलाने के वादे के साथ हमने बातचीत को विराम दिया। किसी ने सही कहा है दोस्तों सकारात्मकता बहुत तेज़ी से फैलती है। फिर इंतज़ार क्यूँ कर रहे हैं?, इसे भी और लोगों तक पहुँचाइए और सकारात्मकता फैलाने के इस मिशन में भाग लीजिए।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

dreamsachieverspune@gmail.com

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