फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सफलता के लिए ग़लतियों को ना दोहराएँ
Oct 4, 2021
सफलता के लिए ग़लतियों को ना दोहराएँ !!!
आईए आज के लेख की शुरुआत हम एक हल्की फुल्की कहानी के साथ करते हैं। दो दोस्तों ने विद्यालय के दिनों में निर्णय लिया था कि वे अपनी मित्रता में गरमाहट बरकरार रखने के लिए साल में एक बार छुट्टी बिताने के लिए अवश्य मिला करेंगे और शिकार पर जाने के अपने शौक़ को पूरा करेंगे। हर साल की तरह इस साल भी वे अपनी योजना के मुताबिक़ तय दिन, तय समय और तय स्थान पर पहुँच गए। अपने गंतव्य पर जाने के लिए एक हवाईजहाज़ को किराए पर लिया।
पूर्व योजना के अनुसार पायलट ने उन्हें शहर से काफ़ी दूर घने जंगल के पास छोड़ दिया और पंद्रह दिन बाद उन्हें वापस लेने आने का कहकर चला गया। दोनों दोस्तों ने वहाँ से एक किराए की जीप ली और जंगल में शिकार करने के लिए चले गए। अगले कुछ दिन उन्होंने बहुत मस्ती के साथ शिकार करते हुए गुज़ारे। अंतिम दिन उन्होंने किए गए शिकार की निशानियों ली और वापस जाने के लिए हवाई पट्टी पर पहुँच गए।
तय दिन पायलट उन्हें वापस लेने के लिए आया और उनके साथ शिकार की निशानियों को देखते हुए बोला, ‘महोदय! मुझे लगता है, हमारे विमान की क्षमता आप दोनों सहित सिर्फ़ एक भैंसा ले जाने की है। आपको एक भैंसे को यहीं छोड़ना होगा।’ पायलट का उत्तर सुनते से ही दोनों दोस्त एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। कुछ पलों की चुप्पी के बाद दोनों में से एक दोस्त अपना विरोध जताते हुए बोला, ‘हम दो लोग हैं ऐसे में सिर्फ़ एक निशानी लेकर जाना क्या उचित होगा? वैसे भी पिछले वर्ष ऐसे ही एक विमान से हम दो भैंसे लेकर गए थे।’
पायलट कुछ देर तो उन्हें समझाने का प्रयत्न करता रहा लेकिन अंत में दोनों के तर्कों के आगे हार मानकर, दोनों भेसों को ले जाने के लिए राज़ी हो गया और बोला, ‘अगर पिछले वर्ष पायलट इस विमान से आप दोनों और दो भेसों को लेकर सुरक्षित गया था, तो मैं भी आपको इन्हें ले जाने की अनुमति देता हूँ।’ पायलट के राज़ी होते ही दोनों दोस्तों ने बड़ी मेहनत के साथ भेसों को हवाई जहाज़ में चढ़ाया और खुद भी नियत स्थान पर बैठ गए।
विमान ने पूर्ण तैयारी के साथ दो यात्रियों, दो भेसों और पायलट के साथ उड़ने का प्रयास करा, लेकिन तय सीमा से अधिक वजन होने के कारण वह आवश्यक ऊँचाई तक नहीं पहुँच पा रहा था। पायलट ने काफ़ी प्रयास करा लेकिन जंगल से कुछ दूरी पर स्थित पहाड़ियों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
ईश्वर की कृपा थी कि इतनी बड़ी दुर्घटना होने के बाद भी पायलट और दोनों दोस्त ज़िंदा बच गए। विमान के मलबे में से बाहर आते-आते दोनों दोस्त इधर-उधर देख कर दुर्घटना के स्थान का अंदाज़ा लगाने का प्रयास करने लगे। तभी दोनों में से एक दोस्त अपने दूसरे दोस्त की ओर देखता हुआ बोला, ‘तुम्हें क्या लगता है, हम अभी किस स्थान पर हैं?’ दूसरे दोस्त ने अपनी घड़ी से दिशा और अक्षांश-देशांश का अंदाज़ा लगाते हुए कहा, ‘मुझे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह स्थान उस जगह से दक्षिण दिशा में चार मील दूर है जहाँ हमारा विमान पिछली बार भैंसे ले जाते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हुआ था।’
वैसे तो दोस्तों उपरोक्त कहानी अपने आप में ही पूर्ण है और अपने अंदर जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ समेटे हुए है। फिर भी एक बार इसमें छिपे जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र को अपने शब्दों में बताने का प्रयास करता हूँ। जीवन में हम जब भी कोई कार्य करते हैं या ज़िम्मेदारी उठाते हैं, तब ग़लतियाँ होना या करना एक स्वभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है। किसी नए कार्य को करते या सीखते वक्त पूर्व अनुभव ना होने के कारण गलती होना, एक सामान्य बात या घटना है। लेकिन दोस्तों यह सामान्य सी घटना या गलती एक बड़ा रूप लेकर हमारे जीवन को बुरी तरह तब प्रभावित करती है, जब हम उससे सीखने के स्थान पर उसे बार-बार दोहराते हैं।
जब आप पहली बार गलती करते हैं तो यह माना जा सकता है कि अनजाने में आपने गलती की है, लेकिन जब आप उसी गलती को बार-बार दोहराते हैं तो वह जानबूझकर की गई ग़लतियों की श्रेणी में आती है। अगर आप जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते हैं, बड़े लक्ष्यों को पाना चाहते हैं और साथ ही आप अपने कार्य, परिवार, लोगों और उससे भी ज़्यादा खुद के प्रति ईमानदार हैं तो आपको ग़लतियों से डरने के स्थान पर स्वीकारना सीखना होगा। गलती स्वीकारना आपको गलती की वजह से भविष्य में होने वाले नुक़सान और बहुत सारी समस्याओं से बचा सकता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर