फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सफल होना है तो उद्देश्य के साथ-साथ कर्म भी सही रखें
Dec 27, 2021
सफल होना है तो उद्देश्य के साथ-साथ कर्म भी सही रखें !!!
दोस्तों अगर आप सफल होना चाहते हैं तो सिर्फ़ सही लक्ष्य बनाने से काम नहीं चलेगा। आपको सही लक्ष्य के साथ-साथ सही समय पर, सही दिशा में, सही कार्य भी करना होगा। जी हाँ दोस्तों, इसमें से अगर कुछ भी कम होगा तो आपको वह परिणाम नहीं मिल पाएगा जिसकी आप कल्पना कर के बैठे हुए हैं। आइए इसे मैं आपको मेरे साथ घटी दो सच्ची घटनाओं से समझाने का प्रयास करता हूँ।
पहली घटना - बात लगभग दो माह पुरानी है। मेरे एक मित्र, जो मेरे लेख ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है…’ के नियमित पाठक हैं, ने मुझे गीता प्रेस गोरखपुर की एक किताब पढ़ने का सुझाव दिया। उनका मानना था कि उक्त किताब मेरे नज़रिए को और बेहतर बना सकती है। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने उक्त किताब से लिए एक-दो रोचक उद्धरण भी मुझे सुना दिए। उनकी बात सुनते ही मैंने उक्त किताब ख़रीदने का निर्णय ले लिया। लेकिन कहते हैं ना दोस्तों, ‘समय से पहले और क़िस्मत से ज़्यादा कभी मिलता नहीं है।’, जैसी ही मेरी स्थिति थी। अपनी व्यस्तताओं के चलते दुकान पता होने के बाद भी मैं उक्त किताब को ख़रीद नहीं पाया।
दूसरी घटना आज सुबह की है दोस्तों, बिजनेस ग्रोथ कंसल्टेंसी के अपने कार्य से मैं सुबह अहमदाबाद होते हुए राजकोट जाने के लिए इंदौर एयरपोर्ट पहुँचा। संयोग से मेरे वही मित्र मुझे सिक्योरिटी चेक पर मिल गए और सामान्य बातचीत और कुशलक्षेम पूछने के बाद उन्होंने मुझसे गीता प्रेस की उक्त किताब के बारे में पूछ लिया। मैंने उनसे माफ़ी माँगने के साथ ही जल्द उक्त किताब लेने और पढ़ने का वादा करते हुए विदा ली और अपनी फ़्लाइट में बैठ गया।
अहमदाबाद पहुँचकर मैंने टैक्सी ड्राइवर को फ़ोन करा और पिकअप के लिए कहा। साथ ही मेरे द्वारा गाड़ी का नम्बर पूछने पर वह बोला, ‘साहब गाड़ी नई है इसलिए उस पर नम्बर नहीं है।’ ख़ैर लगभग 5 मिनिट में उसने मुझे लिया और हम राजकोट की ओर चल दिए। मैंने ड्राइवर को मास्क और सीट बेल्ट लगाने के लिए टोकते हुए कहा कि हमें जल्द से जल्द राजकोट पहुँचना है और कार्य पूरा करके रात को ही वापस लौटकर आना है, इसलिए वह कहीं भी समय बर्बाद ना करे और ध्यान से गाड़ी चलाए।
फ़ोन पर बात करते हुए, कभी एकदम तेज़ तो कभी एकदम धीरे गाड़ी चलाते, तो कभी चलती गाड़ी से गुटका थूकते देख मुझे एहसास हो गया कि उसने मेरी बात को पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया है। मैंने चुप रहते हुए कुछ देर उसे ओब्सर्व करने का निर्णय लिया। अभी हम बमुश्किल 50 किलोमीटर ही पहुंचे थे कि मुझे ऐसा लगा जैसे हाइवे पर चेकिंग चल रही है। मुझे तुरंत ड्राइवर की सारी ग़लतियाँ याद आ गई और मैंने उसे सचेत करने का प्रयास कर। वह कुछ समझ पाता उसके पहले ही ख़ाकी पेंट व डार्क नीली जैकेट पहने एक सज्जन ने उसे रुकने का इशारा किया। उनका इशारा पाते ही ड्राइवर ने गाड़ी लेफ़्ट लें में ले ली। गाड़ी धीमी होते ही एक दो लोग ख़ाकी पेंट वाले सज्जन की मदद करने के लिए आ गए।
मुझे ड्राइवर पर थोड़ा ग़ुस्सा आने लगा क्यूंकि मेरे समझाने के बाद भी वह गलती कर रहा था और उसकी वजह से मेरा समय भी बर्बाद होता हुआ लग रहा था, पर अब क्या किया जा सकता था? मैं शांत रहा, अगले कुछ ही पलों में गाड़ी साइड में पार्क करते ही, वे सज्जन आशा के विपरीत, ड्राइवर से बात करने के स्थान पर मेरे पास आ गए और गुजराती में कुछ बोलने लगे। मैंने उन्हें हिंदी में बात करने की गुज़ारिश की तो उन्होंने अपना परिचय एक सरकारी अधिकारी के रूप में दिया और गीता प्रेस की कुछ किताबें मेरी और बढ़ाते हुए बोले, ‘हमें आपसे डोनेशन के रूप में मदद चाहिए। गीता प्रेस की कोई भी किताब लेकर आप हमारी नहीं बल्कि अपने सनातन धर्म की रक्षा करने में मदद कर सकते हैं।’ दोस्तों उनका उद्देश्य बहुत अच्छा था, लेकिन चलते हाइवे पर, इस तरह ट्राफ़िक रोककर अपना संदेश देना, या अच्छा कार्य करना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता था। यह ऐक्सिडेंट के रूप में किसी की जान ले सकता था। आवश्यकता होने के बाद भी मैंने गीता प्रेस की किताब लेने से विनम्रता पूर्वक मना किया और वहाँ से आगे बढ़ गया।
जी हाँ दोस्तों, इसीलिए मैंने शुरू में कहा है कि अच्छा उद्देश्य, अच्छा लक्ष्य होना सफलता के लिए पर्याप्त नहीं है, अगर आप वाक़ई में सफल होना चाहते हैं तो सही उद्देश्य, सही लक्ष्य के साथ-साथ सही समय पर, सही दिशा में, सही कार्य भी करना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर