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सफल होने के लिए अपने साथियों को आगे बढ़ने में मदद करें


July 22, 2021
सफल होने के लिए अपने साथियों को आगे बढ़ने में मदद करें!!!
कुछ दिन पूर्व एक व्यवसायी ने मुझसे व्यवसायिक कंसलटेंसी के लिए सम्पर्क करा और कहा, ‘सर, आजकल कम्पनी उतना अच्छा परफ़ॉर्म नहीं कर रही है जितना पिताजी के समय करती थी। साथ ही आजकल कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की दर भी बहुत ज़्यादा है।’ उनसे हुई बातचीत से मुझे लग रहा था कहीं ना कहीं कर्मचारी कम्पनी या अधिकारियों के कार्य करने के तरीक़े से खुश नहीं हैं।
मैंने उनसे कम्पनी के कार्य करने के तरीक़े के बारे में समझा और साथ ही रोज़ सुबह होने वाली कम्पनी की ऑनलाइन मीटिंग में भाग लेने की इच्छा जताई। तय प्लान के मुताबिक़ अगले दिन मैंने 15 मिनिट पूर्व ही मीटिंग रूम जॉइन कर लिया और बारीकी से हर कर्मचारी पर नज़र रखने लगा।
मुझे सबसे ज़्यादा आश्चर्य यह देख कर हो रहा था कि सुबह का समय होने के बाद भी ज़्यादातर कर्मचारियों के चेहरे से हंसी और उनका जोश ग़ायब था। मीटिंग शुरू होने के पहले कुछ मिनटों में ही मुझे इसका कारण समझ में आ गया। मीटिंग में एक वरिष्ठ अधिकारी लगभग हर कर्मचारी को किसी ना किसी बात के लिए फटकार रहा था। मीटिंग के बाद मैंने उक्त अधिकारी से बात करी तो उनका कहना था, ‘सर, सीधे तरीक़े से बात करने से आजकल कहाँ काम चलता है? अगर इन्हें हड़काएँगे नहीं तो सब बिना काम करे, घर पर ही बैठ जाएँगे।’ इसके साथ ही उन्होंने सेल्स टीम के लिए हर कॉल पर सम्भावित ग्राहक के साथ फ़ोटो जियो टेगिंग के साथ डालना अनिवार्य कर रखा था।
मैंने उक्त संदर्भ में व्यवसायी से बात करने का निर्णय लिया और उन्हें कई साल पहले विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय से जुड़ी एक घटना और उस पर आधारित एक स्टडी के बारे में बताया। विश्वविद्यालय में साहित्य में रुचि और महारथ रखने वाले प्रतिभाशाली पुरुषों ने अपना एक समूह बनाया था जिसका नाम ‘स्ट्रेंजर्स’ था। समूह का उद्देश्य सदस्यों की साहित्यिक प्रतिभा को निखारना और एक दूसरे को बेहतर बनाना था। इस समूह के सदस्य अद्भुत रचनात्मक साहित्यिक कौशल के धनी होने के साथ साथ, समयानुसार उसका सर्वोत्तम प्रयोग करना भी जानते थे। असाधारण क्षमता के धनी सभी होनहार युवक एक दूसरे की साहित्यिक कृतियों को पढ़ने और उनकी आलोचना करने के लिए नियमित रूप से मिलते थे।
समूह का कोई भी सदस्य जब अपनी रचना सदस्यों को सुनाता था तब समूह के बाक़ी सदस्य बड़े निर्दयी भाव से उस पर कटाक्ष किया करते थे। आलोचना करने का उनका तरीक़ा इतना ख़राब होता था कि समूह के सदस्य अपने लोगों के बीच होने के बाद भी खुद को ‘अकेला’ समझते थे। कुछ ही दिनों में यह समूह अपने उद्देश्य से भटककर साहित्यिक आलोचना का अखाड़ा बन गया।
उसी विश्वविद्यालय में साहित्य में रुचि रखने वाली कुछ महिलाओं को लगता था कि उन्हें भी पुरुषों के समान ही अपने साहित्यिक कौशल को निखारने का मौक़ा मिलना चाहिए। विश्वविद्यालय की इन महिलाओं ने ‘स्ट्रेंजर्स’ के समान ही अपना एक समूह बनाया और उसका नाम ‘रैंगलर्स’ रखा।
‘रैंगलर्स’ क्लब के सदस्यों ने भी ‘स्ट्रेंजर्स’ के समान ही एक दूसरे के सामने अपनी साहित्यिक कृतियाँ प्रस्तुत करना शुरू कर दिया। बस दोनों क्लबों की कार्यशैली में इतना अंतर था कि ‘रैंगलर्स’ के सदस्य दूसरे सदस्य की प्रस्तुति पर अत्यधिक नरम, सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाली प्रतिक्रिया देते थे। उनका प्रतिक्रिया देने का तरीक़ा इतना अच्छा रहता था कि क्लब का सबसे कमजोर सदस्य भी खुद को प्रोत्साहित महसूस करता था। सभी सदस्य एक दूसरे की सिर्फ़ आलोचना करने के स्थान पर एक दूसरे को आगे बढ़ने में मदद करते थे।
समय ऐसे ही बीतता गया, बीस वर्षों के बाद विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र ने अपने सहपाठियों और दोनों समूह ‘स्ट्रेंजर्स’ व ‘रैंगलर्स’ के सदस्यों के कैरियर का अध्ययन करना शुरू किया। कुछ ही दिनों में उन्हें एहसास हुआ कि ‘स्ट्रेंजर्स’ व ‘रैंगलर्स’ के सदस्यों की साहित्यिक उपलब्धियों में भारी अंतर है।
‘स्ट्रेंजर्स’ के सभी सदस्य बहुत प्रतिभाशाली थे लेकिन उनमें से अधिकतम के पास कोई बड़ी साहित्यिक उपलब्धि नहीं थी। लेकिन इसके विपरीत ‘रैंगलर्स’ के कई सदस्य सफल लेखक बने और उन्हीं में से कुछ ने तो राष्ट्रीय/अंतराष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान बनाई।
‘स्ट्रेंजर्स’ एवं ‘रैंगलर्स’ दोनों समूह के पास लगभग एक जैसी शिक्षा और प्रतिभा थी। पारिस्थितिक तौर पर भी दोनों समान स्थिति में थे, अंतर बस छोटा सा था। ‘स्ट्रेंजर्स’ समूह के सदस्यों ने अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा विवाद और आत्म संदेह पैदा करा। उन्होंने अनजाने में ही अपने साथी की प्रतिभा का गला घोंट दिया।
इसके ठीक विपरीत ‘रैंगलर्स’ के सदस्यों ने एक दूसरे को आगे बढ़ाने में मदद करी। वे हमेशा अपनी प्रतिक्रिया से एक दूसरे का हौसला बढ़ाते थे और उसे और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए, अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करते थे और शायद इसी वजह से ‘रैंगलर्स’ के सदस्य बेहतर प्रदर्शन कर पाए।
व्यवसायी की प्रतिक्रिया देख मुझे लगा शायद वे मेरा इशारा समझ गए हैं और शायद आप भी दोस्तों। इसीलिए तो दोस्तों ग्रेगरी स्कॉट रीड ने कहा है, ‘सबसे बड़ी सफलता दूसरों को आगे बढ़ने में मदद करना है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर