फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सब्र, संयम और सफलता - भाग 2


Nov 2, 2021
सब्र, संयम और सफलता - भाग 2
धैर्य, संयम, अनुशासन और सफलता के बीच के सम्बन्ध को पहचानने के उद्देश्य से 1960 के दशक में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर वाल्टर मिशेल और उनकी टीम द्वारा 4-5 वर्ष के सैकड़ों बच्चों पर एक शोध किया गया। इस शोध के तहत बच्चों को एक-एक करके एक कमरे में बुलाया गया और उनके सामने एक मार्शमेलो रखकर कहा गया कि मैं थोड़ी देर में वापस आता हूँ। अगर इतनी देर में तुमने मार्शमेलो को नहीं खाया तो तुम्हें इस मार्शमेलो के साथ एक और मार्शमेलो इनाम स्वरूप मिलेगी। इसके बाद शोधकर्ता 15 मिनिट के लिए कमरे से बाहर चला गया।
शोधकर्ता के बाहर जाते ही कुछ बच्चों ने मार्शमेलो को खा लिया, कुछ बच्चों ने शोधकर्ता के वापस आने का इंतज़ार करने का प्रयास किया लेकिन वे संयम रखने में सफल नहीं हो पाए और कुछ देर बाद उन्होंने मार्शमेलो खा लिया। तीसरे समूह में वे बच्चे थे जो शोधकर्ता के वापस आने तक संयम रखने में सफल रहे और उन्हें इनाम स्वरूप दूसरा मार्शमेलो भी मिला।
इस अध्ययन को आधार बनाते हुए वर्ष 1972 में एक नया शोध किया गया। इस शोध में मार्शमेलो प्रयोग में भाग लेने वाले बच्चों को अगले 40 वर्षों तक निगरानी में रखा गया। इस प्रयोग के परिणाम आश्चर्यजनक थे। जिन बच्चों ने आसान रास्तों, जल्दबाज़ी, व्याकुलता और आत्म संतुष्टि का मार्ग त्यागकर संयमित रहते हुए अनुशासित रहने का निर्णय लिया था, वे सभी बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में सफल रहे थे। जल्दबाज़ी करने वाले बच्चों के मुक़ाबले इन बच्चों ने अच्छे स्वास्थ्य के साथ पढ़ाई, सामाजिक, वैयक्तिक और व्यवसायिक जीवन में ज़्यादा सफलता पाई और साथ ही यह सभी बच्चे अपने जीवन में ज़्यादा सुखी और खुश रहे।
दूसरे शोध से मिले परिणाम ने शोधकर्ताओं के मन में एक नया सवाल पैदा कर दिया, ‘सफल हुए बच्चों में क्या स्वाभाविक रूप से अधिक आत्म-नियंत्रण था? क्या वे जन्म के साथ मिली इस विशेषता की वजह से जीवन में अधिक सफल थे? या फिर, ‘क्या हम बच्चों में इस महत्वपूर्ण विशेषता को विकसित कर सकते हैं?’ अगर हाँ, तो फिर बच्चों की कौन सी क्षमताएँ विलंबित संतुष्टि की धारणा के अनुरूप उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं? इन सवालों के जवाब पाने के लिए रोचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मार्शमैलो प्रयोग को एक बार फिर से विशिष्ट परिस्थितियों के साथ दोहराने का फैसला लिया।
इस नए मार्शमेलो प्रयोग में सबसे पहले बच्चों को दो समूहों में विभाजित किया गया और फिर दोनों समूह के बच्चों को बिलकुल विपरीत या यूँ कहूँ तो एकदम अप्रत्याशित अनुभव दिए गए। उदाहरण के लिए जहां पहले समूह को शोधकर्ताओं ने क्रेयॉन का एक छोटा बॉक्स दिया और बड़ा लाने का वादा किया, लेकिन अपने वादे को कभी पूरा नहीं किया। इसी तरह बाद में उन्हें कुछ छोटे स्टिकर दिए और एक बार फिर से उनसे बाद में बड़े स्टिकर लाने का वादा किया और इस वादे को भी नहीं निभाया। अर्थात् पहले समूह को बार-बार अविश्वसनीय अनुभवों से गुज़ारा गया।
इसके ठीक विपरीत दूसरे समूह को भी पहले समूह की तरह क्रेयॉन का एक छोटा बॉक्स दिया और बड़ा लाने का वादा किया और वादे के मुताबिक़ उन्हें बाद में क्रेयॉन का एक बड़ा बॉक्स लाकर दिया। इसी तरह स्टिकर और बच्चों से किए गए अन्य सभी वादों को पूरा किया। अर्थात् दूसरे समूह के पास ढेर सारे विश्वसनीय अनुभव थे।
इसके बाद दोनों समूह के बच्चों पर पूर्व की तरह मार्शमेलो प्रयोग किया गया। पहले समूह के बच्चों, जिन्हें अविश्वसनीय अनुभवों से गुज़ारा गया था, के पास दूसरी मार्शमेलो के लिए विश्वास करने का कोई कारण नहीं था, इसलिए उन्होंने टेबल पर रखी मार्शमेलो को शोधकर्ता के कमरे से बाहर जाते ही खाने का निर्णय लिया या फिर उसे खाने के लिए ज़्यादा लम्बा इंतज़ार नहीं किया।
इसके ठीक विपरीत, दूसरे समूह के बच्चों, जिनके पास पूर्व में विश्वास करने के सकारात्मक अनुभव थे अर्थात् जिन बच्चों के साथ शोधकर्ताओं ने किए गए वादों को निभाया था, ने अपने मस्तिष्क को विलंबित संतुष्टि के लिए प्रशिक्षित कर लिया था। उन्होंने अपने मस्तिष्क को बार-बार दो बातों का अनुभव कराया था। पहली बात, संतुष्टि के लिए इंतज़ार करना फ़ायदेमंद रहता है। दूसरी बात, मेरे पास प्रतीक्षा करने की क्षमता है। पूर्व में मिली इन दोनों सीखों की वजह से दूसरे समूह के बच्चों ने पहले समूह की तुलना में चार गुना अधिक प्रतीक्षा करी।
इस नए शोध से हमें पता चला कि आत्म नियंत्रण, सब्र, संयम प्रदर्शित करना कोई जन्मजात प्रतिभा नहीं है बल्कि उसे आसपास के माहौल या यूँ कहूँ तो सकारात्मक अनुभवों से विकसित किया जा सकता है। अर्थात् विलंबित संतुष्टि की धारणा बच्चों में विकसित की जा सकती है जिससे वे अपने जीवन में बेहतर बन सकें।
आज के लिए इतना ही दोस्तों कल हम मार्शमेलो सिद्धांत हमारे जीवन को किस तरह बेहतर बना सकता है के विषय में दो सूत्र सीखेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर