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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सुख और सहिष्णुता

सुख और सहिष्णुता
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Jan 11, 2022

सुख और सहिष्णुता !!!


दोस्तों, निश्चित तौर पर आपने इन शब्दों को कभी ना कभी प्रयोग में लिया ही होगा या फिर किसी ना किसी को प्रयोग करते हुए सुना होगा, ‘छोड़ूँगा नहीं साले को… देख लूँगा…’, या फिर, ‘मैं इसके सर पर हाथ रखकर क़सम खाता हूँ कि उसको छोड़ूँगा नहीं’, आदि। सामान्यतः इन शब्दों का प्रयोग बदले की भावना की ओर रेखांकित करता है। आज हमारे समाज में सहिष्णुता अर्थात् सहनशीलता की कमी साफ़ तौर पर महसूस की जा सकती है और यह किसी क्षेत्र विशेष में हो, ऐसा नहीं है। आप अपने परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों, समाज, धर्म, राजनैतिक आदि किसी भी स्तर पर इसे साफ़ तौर पर देख सकते हैं और यह एक में दिन बढ़ गया हो, ऐसा भी नहीं है। दूसरों के मुक़ाबले खुद को सर्वश्रेष्ठ और सही मानना, अपने हितों को ही प्राथमिकता देना और ज्ञान की कमी की वजह से आधी-अधूरी बातों को सही मान लेना जैसे कई कारण इसे बढ़ा देते हैं। यक़ीन मानिएगा दोस्तों अगर इस पर जल्द ही अंकुश नहीं लगाया गया तो यह भावना पहले हमें तनाव जैसे कई नकारात्मक भावों से प्रभावित करेगी, जिसका असर हमें जल्द ही हमारे समाज और देश में देखने को मिलेगा।


लेकिन इसके विपरीत अगर दोस्तों आप खुद को, अपने समाज को, देश को ऊपर उठाना चाहते हैं, तो आपको वैचारिक मतभेद, आपसी द्वेष, बदले की भावना से ऊपर उठकर कार्य करना पड़ेगा। आईए अपनी बात को मैं आपको एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। 


बात आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व की है। दक्षिण अफ़्रीका के एक रेस्टोरेंट एक सज्जन अपने कार्यालयीन साथियों और कुछ सुरक्षा गार्ड के साथ अपने ऑर्डर किए हुए भोजन का इंतज़ार करते हुए आपसी चर्चा में मशगूल थे। थोड़ी देर बाद वेटर ऑर्डर अनुसार भोजन ले आया और सबके समक्ष टेबल पर रख दिया।


वे सज्जन खाना शुरू करते उससे पहले अचानक उनका ध्यान सामने बैठे एक पुलिस अधिकारी पर गया जो थोड़ा घबराया हुआ लग रहा था। उन्होंने अपने सुरक्षा गार्ड से कहा कि उस पुलिस अधिकारी के पास जाओ और उससे हमारे साथ भोजन करने के लिए निवेदन करो।


सुरक्षा गार्ड ने तुरंत उनके निर्देशों का पालन करते हुए दूसरी टेबल पर बैठे पुलिस अधिकारी को सबके साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित करा। वह अधिकारी उनके निमंत्रण को स्वीकारने में थोड़ा हिचकिचा रहा था, पर सुरक्षाकर्मी के बार-बार बोलने और समझाने पर अनमने मन से ही सही, पर वह पुलिस अधिकारी सबके साथ आकर बैठ गया और अपने साथ लाया भोजन करने लगा।


खाना खाते वक्त उस पुलिस अधिकारी के हाथ काँपते देख वहाँ बैठे सभी लोगों ने सोचा, शायद उसकी तबियत ठीक नहीं है। भोजन पूरा होने के बाद उस अधिकारी ने सभी को धन्यवाद कहा और वहाँ से चला गया। उसके जाते ही सुरक्षा गार्ड ने उन सज्जन से कहा, ‘महोदय, क्या आप इस पुलिस अधिकारी को पहले से जानते हैं?’ ‘जी हाँ, मैं काफ़ी पहले से उन्हें जानता हूँ।’ उन सज्जन ने कहा। सुरक्षा गार्ड ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘महोदय, मुझे लगता है उस पुलिस अधिकारी की तबियत ठीक नहीं है। आपने देखा खाना खाते वक्त उसके हाथ कितने काँप रहे थे।’


वे सज्जन बोले, ‘नहीं, बिलकुल नहीं। यह अधिकारी उस जेल का पहरेदार था जिसमें मुझे क़ैद करके रखा गया था। जेल में जब भी मुझे यातनाएँ दी जाती थी, तब दर्द और चोट के कारण मेरी चीख निकल जाया करती थी और मेरा गला सूख जाया करता था। तब मैं इस अधिकारी से थोड़ा सा पानी देने के लिए मिन्नत किया करता था। लेकिन यह आदमी मुझे पानी देने के स्थान पर मेरे सिर पर पेशाब कर दिया करता था।’ कुछ पल शांत रहने के बाद वे सज्जन बोले, ‘असल में वो मुझे अपने सामने देख, घबरा गया था, डर गया था। उसे लग रहा था कि मैं अब अपनी शक्तियों का उपयोग करके उससे बदला लूँगा और किसी भी बहाने से उसे गिरफ़्तार करवाकर जेल में ठूँस दूँगा और उसे प्रताड़ित करूँगा, क्यूँकि मैं अब इस देश का राष्ट्रपति बन गया हूँ। लेकिन मैं ऐसा करूँगा नहीं क्यूँकि यह मेरे जीवन मूल्यों के ख़िलाफ़ है।’ 


दोस्तों शायद आप समझ ही गए होंगे कि मैं ‘अश्वेतों के गांधी’ या ‘दक्षिण अफ़्रीका के पिता’, कहे जाने वाले महान व्यक्तित्व नेल्सन मंडेला की बात कर रहा हूँ, जिन्होंने रंगभेद के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने जीवन के 27 वर्ष क़ैद में बिताए थे और उनके प्रयासों को पूरे विश्व ने सराहा था। वर्ष 1990 में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न पुरस्कार से नवाज़ा गया था। 


ख़ैर, हम वापस अपने मुख्य मुद्दे पर आते हैं। दोस्तों, प्रतिशोध की मानसिकता ना सिर्फ़ किसी व्यक्ति विशेष को बल्कि पूरे समाज, पूरे देश को बर्बाद कर सकती है और इसके विपरीत सहिष्णुता की मानसिकता आपको सुखी रखते हुए समाज व राष्ट्र का निर्माण करती है। अब चुनाव आपका है आप अपना जीवन तनाव व और नकारात्मक भावों के साथ बिताना चाहते हैं या शांत और सुखी रहते हुए, एक नए सकारात्मक समाज के निर्माण में योगदान देना चाहते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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