फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सुनना नहीं, समझना है महत्वपूर्ण


June 26, 2021
सुनना नहीं, समझना है महत्वपूर्ण…
‘सर मैं आपकी हर ट्रेनिंग में भाग लेने का प्रयास करता हूँ, आपका हर कॉलम पढ़ता हूँ। जब भी समय मिलता है तब जीवन को बेहतर बनाने वाले और मोटिवेशनल विडियो देखता हूँ। इसके बाद भी कई बार ऐसा लगता है जैसे यह सब बातें सुनने में तो अच्छी लगती हैं लेकिन आम जीवन में इससे कोई फ़ायदा नहीं मिल पाता है।’
वैसे यह एक ऐसा प्रश्न है जो आमतौर पर हर सेमिनार में किसी ना किसी रूप में मुझसे पूछा ही जाता है। जैसे, ‘जब हम ट्रेनिंग से जाते हैं तो कुछ दिन तो सब कुछ अच्छा चलता है। लेकिन बाद में हम पुरानी स्थिति में ही आ जाते हैं।’ या ‘आपकी बातें उस वक्त तो मोटिवेट करती हैं लेकिन बाद में मोटिवेशन बरकरार नहीं रहता है’ आदि।
दोस्तों हमें एक बात समझना होगी ट्रेनिंग, अच्छी बातें या मोटिवेशन कोई दवाई नहीं है जो हमने ले ली और बाक़ी काम अपने आप हो जाएगा। अगर आप अपने अंदर वाक़ई कोई सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो आपको ट्रेनिंग में जो सुना है उसे सीखना होगा। अर्थात् जो शब्द सुने हैं उन्हें समझते हुए अपने अंदर कुछ सकारात्मक बदलाव लाकर कुछ कार्यों को रोज़ करना होगा अर्थात् कुछ सकारात्मक आदतों को विकसित करना होगा। इसे मैं आपको एक छोटी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बहुत साल पहले की बात है, कुछ विद्यार्थी भिक्षा लेकर वापस गुरुकुल की ओर लौट रहे थे। रास्ते में उनमें से एक विद्यार्थी ने बहुत सारे तोतों को एक पेड़ के ऊपर बैठा हुआ देखा। सुंदर तोतों को देख उसके मन में एक तोते को पालने की इच्छा जागृत हुई। उसने किसी तरह जुगाड़ लगाकर एक तोते को पकड़ लिया और आश्रम ले आया। आश्रम में आने के बाद उस विद्यार्थी ने तोते को रखने के लिए बड़ा सुंदर सा एक पिंजरा बना लिया और उसका बहुत अच्छे से ध्यान रखने लगा और रोज़ उसे बड़े प्यार से उसकी पसंदीदा हरी मिर्च खिलाने लगा।
कुछ दिन पश्चात जब गुरुजी तीर्थ यात्रा से वापस लौटे तो उन्होंने आश्रम के नए मेहमान तोते को पिंजरे में क़ैद देखा और उसके बारे में शिष्यों से पूछताछ करी। पूछताछ के आधार पर गुरुजी ने तोते को पिंजरे में क़ैद करने वाले शिष्य को बुलाया और उसे समझाया कि, ‘तोते को यों पिंजरे में कैद करके रखना उचित नहीं है क्यूँकि परतंत्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है।’ किन्तु शिष्य गुरुजी की बात समझ नहीं पा रहा था बल्कि वह उन्हें समझाने का प्रयास करने लगा कि वह तोते को कितना प्यार करता है और किस तरह रोज़ उसका ध्यान रखता है?
वैसे शिष्य की यह बात सही भी थी। वह बिना छुट्टी के रोज़, निश्चित समय पर तोते को भोजन में फल, मिर्ची आदि दिया करता था और उसके पीने के लिए पानी वग़ैरह की भी व्यवस्था रखता था। किसी दिन अगर वह ज़रा सा भी लेट हो जाता था तो तोता भी चिल्ला-चिल्ला कर एहसास करवा देता था कि उसे आज का भोजन नहीं मिला है।
दूसरी ओर गुरुजी तोते को आज़ाद करने के तरीक़े के बारे में सोच रहे थे। उन्होंने तोते को स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने का निर्णय लिया और उसके पिंजरे को अपनी कुटिया में मँगवा लिया और उसे सिखाने लगे, ‘पिंजरा छोड़ो और उड़ जाओ, यह सारा आसमान तुम्हारा है।’ कुछ दिन में तोते को यह वाक्य भली भाँति रट गया।
एक दिन शिष्य पिंजरे की सफ़ाई करने के बाद उसे बंद करना भूल गया और इसी वजह से तोता उस पिंजरे से बाहर निकल गया। तभी अचानक गुरुजी का उस ओर आना हुआ। तोते को पिंजरे के बाहर आराम से घूमते देख उन्हें बहुत अच्छा लगा। तभी तोते ने गुरुजी को देखा और वो तेज़ी से वापस पिंजरे के अन्दर घुस गया और अपना पाठ ‘पिंजरा छोड़ो और उड़ जाओ, यह सारा आसमान तुम्हारा है।’ जोर-जोर से दुहराने लगा।
जी हाँ दोस्तों, हमारी हालात भी इस तोते समान ही है। जिस तरह गुरुजी के स्वतंत्रता के पाठ को सिखाने के बाद भी तोते ने पिंजरे को अपना घर और अपने पसंद के भोजन को चुनने के स्थान पर शिष्य द्वारा दिए जाने वाले भोजन को अपना अधिकार मान लिया।हम भी ठीक उसी तरह क्षमता व सब कुछ स्पष्ट रूप से पता होने के बाद भी, ज़रा सी मुश्किल परिस्थिति आने पर अपने कम्फ़र्ट ज़ोन में लौटना पसंद करते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि ट्रेनिंग में सुनी गई बातें या पढ़ाया गया कोई अच्छा पाठ हमारे जीवन में कुछ बड़ा सकारात्मक बदलाव लाए तो आपको उसे समझकर दैनिक जीवन में काम में लाई जाने वाली ऐक्शन में बदलना होगा फिर भले ही ऐसा करना शुरू में आपके लिए आसान ना हो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर