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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सुनें, अपने दिल की

सुनें, अपने दिल की
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Aug 8, 2021

सुनें, अपने दिल की!!!


दोस्तों आज इंटरनेट पर एक कहानी पढ़ने का मौक़ा मिला। इस कहानी के लेखक कौन हैं वह तो मुझे नहीं पता लेकिन इस कहानी को पढ़कर जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण सबक़ सीखने को मिला। आज के लेख की शुरुआत मेरे शब्दों में उसी कहानी के साथ करते हैं।


राजेश आज बहुत खुश था क्यूँकि ‘ऑडी कार’ ख़रीदने का बचपन का उसका सपना आज सच हो गया था। शोरूम से कार की डिलीवरी लेकर वह सबसे पहले मंदिर गया, गाड़ी की पूजा करी और घर की ओर चल दिया। उस दिन रास्ते में ट्राफ़िक बहुत ज़्यादा था इसलिए राजेश बहुत ध्यान से, धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था। 


घर से लगभग 1 किलोमीटर पहले उसका ध्यान सड़क से थोड़ी दूरी पर खड़े एक बच्चे की ओर गया जो बड़ी तेज़ी से सड़क की ओर आ रहा था। राजेश ने तुरंत अपनी कार धीमी कर ली, उसे लगा जैसे वह बच्चा जल्दी में सड़क क्रॉस करना चाहता है। लेकिन इसके ठीक विपरीत बच्चा सड़क के किनारे आकर रुक गया और जैसे ही राजेश धीमी गति से चलती अपनी कार से उसके पास से गुजरने लगा उस बच्चे ने हाथ में पकड़ा हुआ एक बड़ा सा पत्थर राजेश की कार पर मार दिया। पत्थर लगने की वजह से उसकी नई ‘ऑडी कार’ के ऊपर बड़ा सा डेंट बन गया था। 


बच्चे की इस अनपेक्षित हरकत से राजेश का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और उसने उसी वक्त सड़क के किनारे अपनी गाड़ी रोकी और दौड़ कर पत्थर फेंकने वाले बच्चे के पास पहुँचा और लगभग चिल्लाते हुए बोला, ‘पागल हो गए हो क्या? गाड़ी पर पत्थर क्यूँ मारा?’ लेकिन तभी राजेश का ध्यान बच्चे के खड़े रहने के तरीक़े पर गया, वह पहले से ही अपने दोनों कानों को पकड़े खड़ा हुआ था। राजेश की ओर देखते हुए उस बच्चे ने कहा, ‘आई ऐम सॉरी सर’ अर्थात् ‘महोदय, कृपया मुझे माफ़ कर दें। मैं काफ़ी देर से इधर से गुजरने वाले वाहनों से मदद मांगने का प्रयत्न कर रहा था, लेकिन कोई भी वाहन चालक रुकने के लिए, मेरी परेशानी समझने के लिए तैयार ही नहीं था। इसलिए मुझे यह ग़लत तरीक़ा अपनाना पड़ा।’


डरे हुए, लेकिन विनम्र और क्षमा प्रार्थी बच्चे जिसकी आँखों से आंसू टपक रहे थे को इस तरह निवेदन करता देख राजेश समझ ही नहीं पाया कि वह किस तरह रीऐक्ट करे। वह कुछ बोलता उसके पहले ही रोते हुए वह छोटा सा बच्चा बोला, ‘महोदय, उस ओर देखिए, मेरा बड़ा भाई व्हील चेयर से नीचे गिर गया है और उसे काफ़ी चोट भी लग गई है। मैंने उसे उठाने का काफ़ी प्रयास करा लेकिन मैं सफल नहीं हो पाया। क्या आप उसे उठाने और वापस व्हील चेयर पर बैठाने में मेरी मदद करेंगे?’


राजेश लगभग दौड़ते हुए उस छोटे से असहाय बच्चे के पास पहुँचा और उसे व्हील चेयर पर बैठा कर पास ही के डॉक्टर के यहाँ ले गया, उसकी मरहम पट्टी करवाई, उसे पानी पिलाया और वापस उसे सुरक्षित स्थान तक छोड़ कर जाने लगा। उस छोटे से बच्चे की आँखों में से अभी भी आंसू निकल रहे थे। उसने कृतज्ञता भारी नज़रों से राजेश की ओर देखते हुए बोला, ‘धन्यवाद, महोदय, भगवान आपका भला करे और मैं ग़लत तरीक़े से आपको रोकने के लिए पुनः एक बार आपसे माफ़ी चाहता हूँ।’ इतना कह कर वह छोटा सा बच्चा व्हील चेयर को धक्का देते हुए अपने घर की ओर चल दिया।


राजेश धीमे कदमों से अपनी गाड़ी के क़रीब पहुँचा और कार पर पड़े डेंट को देख मुस्कुराया और अपने घर की ओर चल दिया। क्षति बहुत छोटी सी लेकिन नज़रंदाज़ करने लायक़ नहीं थी, पर राजेश ने उसे कभी भी ना सुधरवाने का निर्णय लिया।


ज़्यादातर लोग आजकल राजेश की ही तरह पूर्ण मग्न होकर अपने जीवन में मस्त हैं। हमारे सब के अपने बड़े-बड़े भौतिक लक्ष्य हैं और हम में से ज़्यादातर के पास किसी और के बारे में सोचने के लिए समय ही नहीं है, हर कोई ‘मैं और मेरा परिवार’ में उलझा हुआ है। व्यस्त होना अच्छा है, बस इस व्यस्तता की वजह से जीवन को अस्त-व्यस्त नहीं करना है, अपनों से दूर नहीं होना है। अन्यथा हमारे अपने ही लोग हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए हमारे ऊपर पत्थर फेंकेंगे। 


ठीक इसी तरह हमारी आत्मा और हमारा दिल भी हमसे फुसफुसा कर बहुत सारी बातें करता है और जब हम बाहर की चकाचौंध और शोर में उसकी बातों को नज़रंदाज़ कर जाते हैं या उसे सुन नहीं पाते हैं तो वह भी हमारे ऊपर एक पत्थर फेंकता है। दोस्तों दिल या आत्मा की बात सुनना या फिर पत्थर का इंतज़ार करना निश्चित तौर पर हमेशा हमारा चुनाव होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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