फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सृजनशीलता और व्यक्तित्व विकास
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May 18, 2021
सृजनशीलता और व्यक्तित्व विकास…
आज एक विद्यालय के लिए किए गए ऑनलाइन सेशन के दौरान मुझसे एक पालक द्वारा बहुत ही अच्छा प्रश्न पूछा गया। ‘सर, आपके अनुसार बच्चों के लालन-पालन के दौरान हम सबसे बड़ी चूक क्या करते हैं?’ प्रश्न बड़ा साधारण सा था, लेकिन अगर आप सोचकर देखें तो यह उतना ही ज़्यादा गम्भीर भी था। मैंने उन सज्जन को कहा अगर मैं आपको सीधे जवाब दूँगा तो शायद आप मेरी बात की गम्भीरता ना समझ पाएँ इसलिए मैं आपको हमारे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी के साथ घटी एक घटना सुनाता हूँ।
एक दिन नेहरू जी दोपहर के समय अपने अध्ययन कक्ष में बैठे कर कुछ पढ़ रहे थे। अध्ययन कक्ष की खिड़की से तीन मूर्ति भवन के बाहर का खुला प्रांगण नज़र आता था। किताब पढ़ते-पढ़ते नेहरू जी के मन में जब भी कोई ख़्याल आता था या वे कुछ सोचने लगते थे तो वे उस किताब से अपना ध्यान हटाकर बाहर खुले प्रांगण की ओर देखने लगते थे।
गर्मी का मौसम चल रहा था और नेहरू जी अपने अध्ययन कक्ष में किताब पड़ने में मगन थे। पढ़ते-पढ़ते उनके मन में कुछ विचार आए और वे अपनी नज़र किताब से उठाकर खिड़की के बाहर देखने लगे। भरी दोपहरी को, तेज़ लू के बीच एक छोटे से बच्चे को आम के पेड़ के नीचे एकटक कैरी को निहारते देख उन्हें अच्छा लगा। थोड़ी ही देर बाद वह छोटा बच्चा अपनी पूरी ताक़त लगाकर, उछलकर कैरी तोड़ने का प्रयास करने लगा। ऊँचाई अधिक होने की वजह से वह बार-बार असफल हो रहा था पर हार मानने के लिए राज़ी नहीं था।
अचानक उस बच्चे को एक तरकीब सूझी वह आसपास घूमते हुए कुछ ढूँढने लगा। कुछ ही दूरी पर उसे एक पत्थर नज़र आया वह बड़ी मुश्किल से उस पत्थर को धक्का देते हुए उस पेड़ के नीचे तक ले आया। इसी तरह वो एक और पत्थर लेकर आया और दोनों पत्थरों को एक के ऊपर एक रख कर फिर से कैरी तोड़ने का प्रयास करने लगा। अब उसका हाथ कैरी से मात्र 2 इंच दूर था।
दूसरी ओर नेहरू जी की जिज्ञासा और बढ़ चुकी थी। वे सोच रहे थे कि बच्चा कितना फ़ोकस्ड है और अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरी रचनात्मकता के साथ प्रयत्न कर रहा है। इधर बच्चा उन पत्थरों से नीचे उतरा और फिर प्रांगण में घूम कर एक पत्थर और खोज कर वहाँ तक लेकर आया और उसे बड़ी मुश्किल से पुराने दोनों पत्थर के ऊपर चढ़ा कर रख दिया। इसके बाद वह उन तीनों पत्थरों के ऊपर चढ़ गया और हाथ ऊपर करके कैरी पकड़ने की कोशिश करने लगा तभी माली ने उस बच्चे को देख लिया और आकर उस बच्चे का कान पकड़कर पत्थर से नीचे उतार दिया। नेहरू जी माली को उस बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार करता देख तुरंत बाहर आए लेकिन तब तक माली उस बच्चे को वहाँ से भगा चुका था। नेहरू जी को उस माली पर बहुत ग़ुस्सा आया।
मैंने कहानी वहीं छोड़ उस पालक से प्रश्न किया, ‘आपको क्या लगता है, नेहरू जी को क्यों ग़ुस्सा आया होगा?’ पालक ने कुछ उत्तर दिया लेकिन मैं उसे यहाँ साझा करना ज़रूरी नहीं समझता। दोस्तों नेहरू जी के इस ग़ुस्से के पीछे एक बहुत बड़ा कारण छुपा हुआ था। पर उसे बताने से पहले हमें यह जानना ज़रूरी है कि कई बार हम भी माली वाली गलती अपने बच्चों के साथ अनुशासन, नैतिक, व्यवहारिक या स्कूली शिक्षा के नाम पर कर जाते हैं और दोस्तों वह बच्चा हमारी इस गलती की सजा जीवन भर भुगतता है।
अगर आप पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालेंगे या आप अपने बच्चे की दिनचर्या को याद करके देखेंगे, तो पाएँगे कि सामान्यतः बच्चे दैनिक जीवन में जो पाना चाहते हैं या जिस कार्य को करने में उन्हें मज़ा आ रहा होता है, उसे करने में ही भिड़े रहते हैं। फिर चाहे वह कार्य उनकी क्षमता का हो या नहीं। वे कभी हार नहीं मानते, वे अपने कार्य में रमें रहते हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए नए-नए तरीक़े खोजते हैं या ईजाद करते हैं। असल में दोस्तों ये छोटे बच्चे सृजन करना जानते हैं। यही सृजनशीलता उन्हें जीवन में आने वाली चुनौतियों से निपटने, सफल होने के लिए तैयार करती है। लेकिन हम इस सृजनशीलता को ही प्रश्नों का उत्तर देकर कक्षा में प्रथम आने, अनुशासित, व्यवहारिक और जीवन के लिए तैयार रहने के नाम पर खत्म कर देते हैं।
शायद दोस्तों इसी वजह से नेहरू जी भी उस माली पर नाराज़ हुए थे। तो दोस्तों आज से निर्णय लें और बच्चा जिस में रम रहा है उसी में उसकी मदद कर उसे सृजनशील रहने में मदद करें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर