फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सेवा परमो धर्म


Nov 20, 2021
सेवा परमो धर्म !!!
चलिए दोस्तों आज के शो की शुरुआत हम एक सच्ची घटना के साथ करते हैं। हाल ही में मेरे एक परिचित की माताजी को मानसिक समस्या के चलते, चिकित्सीय परामर्श पर इंदौर-उज्जैन रोड पर स्थित एक रिहेब में रखने का निर्णय लिया। हालाँकि परिचित भावनात्मक रूप से इस निर्णय के लिए राज़ी नहीं थे लेकिन चिकित्सक द्वारा समझाए जाने पर अपनी माताजी के स्वास्थ्य हित को देखते हुए उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
सर्वप्रथम वे सभी मेडिकल रिपोर्ट के साथ रिहेब सेंटर गए और चिकित्सक एवं काउंसलर को माताजी की तबियत के बारे में विस्तार से बताया। लेकिन आशा के विपरीत बिना रिपोर्ट देखे ही रिहेब से आश्वस्त किया गया कि आप चिंता ना करें और मरीज़ को लेकर आ जाए। तय समय पर मेरे परिचित अपनी माताजी को लेकर रिहेब पहुँच गए और चिकित्सीय परीक्षण व अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद माताजी को वहाँ भर्ती करवाकर वापस आ गए। अगले ही दिन रिहेब से फ़ोन पर उन्हें सूचित किया गया कि माताजी के स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए वहाँ उनका पूर्ण ध्यान रखना सम्भव नहीं है, इसलिए वे उन्हें वहाँ से ले जाएँ।
परिचित रिहेब के इस निर्णय से आश्चर्यचकित थे। उनका मानना था कि रिहेब द्वारा शुरुआती बातचीत और भर्ती करवाने की प्रक्रिया के दौरान मेडिकल रिपोर्ट और मरीज़ की कंडीशन का आकलन सही तरीक़े से नहीं किया गया है। इसी वजह से मात्र 24 घंटे बाद उन्हें निर्णय बदलना पड़ा। हद तो तब हो गई जब डिस्चार्ज करवाने पर परिचित से पूर्व में तैयार कर रखे गए पेपर पर हस्ताक्षर करवाए गए जिसमें लिखा था कि वे अपनी इच्छा से मरीज़ को डिस्चार्ज करवाकर साथ ले जा रहे हैं।
दोस्तों अकसर व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में इस तरह की घटनाएँ देखी जाती हैं। जब हम किसी व्यवसाय की शुरुआत करते हैं तो जीवन मूल्यों के साथ करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे व्यवसाय बढ़ता जाता है, बदलती प्राथमिकताओं, तथा मिले हुए अनुभवों की वजह से जीवन मूल्य पीछे छूट जाते हैं।
लेकिन दोस्तों अगर आपके लिए सिर्फ़ मुनाफ़ा सब कुछ नहीं है और आप एक बड़ा ब्रांड बनना चाहते हैं, तो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी आपको जीवन मूल्यों को प्रथम प्राथमिकता पर रखते हुए ग्राहकों को हर बार एक जैसे अनुभव देना होंगे। फिर चाहे परिस्थिति या मनःस्थिती कैसी भी क्यूँ ना हो। अपनी बात को मैं आपको गुरू गोविंद सिंह जी के शिष्य की कहानी से समझाता हूँ।
एक बार गुरु गोविंद सिंह जी आंनदपुर आए हुए थे। गुरुजी के आंनदपुर आगमन का पता जैसे ही वहाँ रहने वाले वैध को लगा, वे तत्काल उनके दर्शन के लिए पहुँच गए। दर्शन के उपरांत वैध जी द्वारा आशीर्वाद और मार्गदर्शन माँगने पर गुरुनानक देव बोले, ‘जाओ और जरूरतमंदों को सेवा करो।’
दर्शन से वापस आने पर वैध जी ने गुरुनानक देव जी के शब्दों को अपना मूलमंत्र बना लिया और वे रोगियों की सेवा में जुट गए। गुजरते वक्त के साथ उनके उत्तम कार्य की प्रसिद्धि आस-पास के पूरे क्षेत्र में फैलने लगी और दूर-दूर से लोग उनके पास इलाज के लिए आने लगे। वैध जी भी सुबह से देर रात तक मरीज़ों की सेवा में लगे रहते थे।
एक बार गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं उस वैध के घर आए। वैध अपने गुरु, अपने देव को अपने घर अपने सामने देख बहुत प्रसन्न हुआ उसने तुरंत उन्हें प्रणाम करा और उनकी आवभगत में जुट गया। बातचीत के दौरान गुरु नानक देव ने अपने भक्त वैध को बताया कि उनके लिए ज़्यादा देर रुकना सम्भव नहीं होगा।
अभी उनकी बात चल ही रही थी कि एक व्यक्ति भागता हुआ आया और बोला, ‘वैद्य जी, मेरी पत्नी की तबियत बहुत खराब है। कृपया जल्दी चलिए, अन्यथा वह बच नहीं पाएगी।’ वैद्यजी असमंजस में पड़ गए, एक ओर गुरु थे, जो पहली बार उनके घर आये थे और दूसरी ओर एक जरूरतमंद रोगी जिसकी पत्नी की जान ख़तरे में थी।
वैध जी ने सोचने में ज़्यादा समय बर्बाद करने के स्थान पर अपने कर्म ‘मानवता के सेवा’ को प्राथमिकता दी और गुरुजी से आशीर्वाद लेकर तुरंत उस व्यक्ति के साथ इलाज करने के लिए चले गए। लगभग 2 घंटे के गहन उपचार और देखभाल के बाद जब मरीज़ की जान बच गई, तब वैध जी वापस अपने घर आने के लिए निकले। रास्ते में गुरुजी से मिले समय का पूर्ण लाभ ना ले पाने की वजह से, उनका मन थोड़ा उदास था फिर भी इस बात का संतोष था कि मरीज़ बच गया।
घर पहुंचने पर गुरु जी को इंतज़ार करता देख वैध जी आश्चर्यचकित रह गए। वे तुरंत उनके चरणों में गिर गए और बोले गुरुजी आपको तो जल्दी प्रस्थान करना था? गुरु जी ने उन्हें अपने चरणों में से उठाया और गले लगाते हुए कहा, ‘तुम मेरे सच्चे शिष्य हो। तुमने जीवन के सबसे बड़े मंत्र ‘जरूरतमंदों की सेवा और मदद करना’ को साधा है।’ इसलिए तुमसे मिले बग़ैर कैसे जा सकता था?
दोस्तों उस वैध के लिए मना करना आसान था पर उसने अपने कर्म और मानवता को खुद के हित या इच्छा से पहले रखा इसलिए उसे आत्मिक सुख के साथ, गुरु का सानिध्य भी मिला। ठीक इसी तरह जीवन मूल्यों को छोड़कर पैसे बनाना तो आसान है, पर यह साथ में बेचैनी और तनाव लेकर भी आएगा। लेकिन अगर आपकी प्राथमिकता जीवन में सुख, शांति और प्रसन्नता चाहते है तो आपको तात्कालिक लाभ के स्थान पर जीवन मूल्यों को प्राथमिकता देते हुए कार्य करना होगा।
आइए गुरुनानक देव जी की 552वीं जयंती अर्थात् 552 वें गुरु पर्व पर हम सभी उनके दिखाए मानवता के सेवा के मार्ग पर चलने का प्रण लें और साथ ही अपने आस-पास मौजूद लोगों को भी बताए कि दीन दुखियों और जरूरतमंदों की सेवा से बड़ा और कोई कार्य नहीं है। गुरु पर्व, प्रकाश पर्व की शुभकामनाओं के साथ…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर