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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सेवा परमो धर्मः

सेवा परमो धर्मः
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April 12, 2021
सेवा परमो धर्मः…

बहुत साल पहले की बात है नावों का एक प्रसिद्ध व्यापारी अपने अपने खुशहाल परिवार के साथ समुद्र किनारे अपने आलीशान बंगले में रहता था। एक दिन अपने कार्यालय में बैठे-बैठे उसके मन में विचार आया कि क्यों ना अपनी बेकार और ख़राब हो चुकीं नावों को पेंट करवा लूँ और उन्हें अपनी दुकान के बाहर सजा कर रख दूँ।

अगले दिन सुबह व्यापारी ने अपने कर्मचारी को भेज एक पेंटर को बुलवाया और उसे सारा कार्य समझाकर अपने कार्य में व्यस्त हो गया। पेंटर पूरी तल्लीनता के साथ अपने कार्य को पूरा करने में जुट गया। दोपहर बाद सेठ अपने घर पहुँचा तो दोनों बच्चों को ना पाकर थोड़ा विचलित हो गया। उसने तुरंत अपने घर के आस-पास बच्चों की खोजबीन शुरू करवाई, लेकिन बच्चे कहीं नज़र ही नहीं आ रहे थे। बच्चों को नदारद देख माँ व परिवार के अन्य सदस्यों का भी रो-रो कर बुरा हाल था।

सेठ व उसके कर्मचारियों ने बच्चों को अपनी दुकान के पास खोजना प्रारम्भ करा और थोड़ी ही देर में बच्चों को ढूँढते-ढूँढते वे पुरानी नाव वाली जगह पहुँच गए। तब तक पेंटर अपना कार्य कर वहाँ से जा चुका था। सभी नावों को देखने के बाद सेठ को एहसास हुआ कि वहाँ से एक पुरानी नाव ग़ायब है। अब सेठ की चिंता कई गुना बढ़ गई, उन्हें आशंका थी कि उनके दोनों नटखट बच्चे उस पुरानी नाव को लेकर समुद्र में तो नहीं चले गए।

सेठ ने तुरंत कुछ अच्छे गोताखोरों, नाविकों को लिया और दूसरी नाव से बच्चों को खोजने के लिए समुद्र में गए। बच्चों को खोजते हुए उन्हें अभी कुछ ही देर हुई थी कि दूर से एक सुंदर सी नाव पर कुछ लोग किनारे की ओर आते हुए दिखे। थोड़ा पास जाने पर उन्हें एहसास हुआ कि नाव पर तो उन्हीं के बच्चे हैं। व्यापारी ने गहरी साँस ली और अपनी नाव को तेज़ी के साथ बच्चों की नाव की ओर ले गया और उन्हें सुरक्षित किनारे तक ले आया।

तब तक किनारे पर काफ़ी भीड़ लग चुकी थी, दोनों बच्चे बड़े घबराए हुए थे क्यूँकि उन्हें अकेले नाव लेकर समुद्र में जाने की अनुमति नहीं थी। डाँट अथवा मार पड़ने के डर से वे डरते-डरते माता-पिता के समीप पहुँचे, लेकिन माता-पिता ने उन्हें डाँटने के स्थान पर गले लगा लिया।

दूसरी ओर व्यापारी बड़ा पशोपेश में था कि किस तरह बच्चे ख़राब नाव से सुरक्षित नौकायन करके आ गए। सब लोगों के जाने के बाद व्यापारी नाव के समीप गया और बारीकी से उसका मुआयना करने लगा। मुआयना करने के पश्चात उसे सारा माजरा समझ आ गया था, उसने अगले दिन सुबह सभी गाँव वालों के साथ पेंटर को भी बुलवाया। पेंटर काफ़ी घबराया हुआ था, उसे लग रहा था सेठ उसे कुछ ना कुछ सजा देंगे। पेंटर के आने के बाद व्यापारी ने उससे प्रश्न करा, ‘तुमने कल क्या कार्य किया था और उसकी मज़दूरी कितनी हुई है?’ घबराते-घबराते पेंटर बोला, ‘साहब मैंने तो बस नावों को रंग करा था और उसके हिसाब से मज़दूरी के पाँच सौ रुपए हुए हैं।’

व्यापारी तुरंत कुर्सी से उठा और उसे गले लगाते हुए बोला, ‘तुम्हारी मज़दूरी पाँच सौ नहीं पचास हज़ार हुई है, कहते हुए सेठ ने पेंटर के हाथ में पैसों की गड्डी रख दी।’ पेंटर के साथ वहाँ मौजूद अन्य लोग भी व्यापारी के अजीब से व्यवहार को कुछ समझ नहीं पा रहे थे। किसी के कुछ बोलने या पूछने के पहले ही सेठ ने बोलना शुरू किया, ‘साथियों असल में पाँच सौ रुपए तो पेंटर का मेहनताना है और बचा हुआ मेरे बेटों की जान बचाने के लिए ईनाम। असल में पेंटर ने जिस नाव को रंग करा था उस नाव में दो बड़े-बड़े छेद थे। रंग करते वक्त पेंटर ने उन दोनों छेदों को भी ठीक कर दिया, जो उसके काम का हिस्सा नहीं था। अगर इस पेंटर ने निस्वार्थ भाव से इस कार्य को नहीं करा होता, तो शायद मेरे दोनों बेटों की जान चली गई होती। इसकी अच्छाई के सामने तो यह छोटा सा तोहफ़ा है।’

मुझे यह कहानी एक चर्चा की वजह से याद आई कि किस तरह पैथोलॉजी लैब, डॉक्टर, मेडिकल प्रोफ़ेशन से जुड़े लोग मनमाने तरीक़े से कार्य कर रहे हैं और लोगों की जान से खेल रहे हैं इसके विपरीत मेडिकल प्रोफ़ेशन से जुड़े लोग समाचार पत्रों और लोगों द्वारा फैलाई जा रही भ्रामक बातों से सहमत नहीं थे।

दोस्तों पिछले दो दिनों से मेरा खुद का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और मुझे बिना परिचय वाली लैब पर जाकर अपने कुछ टेस्ट करवाने पड़े। मैं लैब का माहौल देख हैरान था, वहाँ काफ़ी भीड़ होने के बाद भी वे काफ़ी संयम और सुरक्षा बरतते हुए कार्य कर रहे थे। वहाँ दिक़्क़त सिर्फ़ एक थी तमाम व्यवस्था होने के बावजूद भी लोगों में संयम की कमी साफ़ नज़र आ रही थी। हाँ, यह भी सही है कि कई जगह सिस्टम फेल होता नज़र आ रहा है लेकिन फिर भी लड़ना, चिल्लाना, झगड़ना कोई समाधान नहीं है।

इस नज़ारे को देख मुझे तत्काल अपने डॉक्टर मित्रों की याद आई कि किस तरह वे तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अपने कार्य को पूरी गुणवत्ता के साथ कर रहे है। इस कॉलम के माध्यम से में डॉक्टर निलेश शर्मा, डॉक्टर हर्षवर्धन चौधरी, डॉक्टर इक़बाल कुरेशी, डॉक्टर शीला छाबड़ा, डॉक्टर अभिषेक मनु, डॉक्टर भागवत, समीर शर्मा जैसे असंख्य लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, जो निस्वार्थ भाव से दिन या रात देखे बिना कार्य कर रहे हैं। दोस्तों आप सभी से विनती है कि इस मुश्किल वक्त में सिर्फ़ अपना फ़ायदा देखने के स्थान पर पेंटर की तरह निस्वार्थ सेवा करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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