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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सोच बदलो, सितारे बदलो

सोच बदलो, सितारे बदलो
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April 6, 2021
सोच बदलो, सितारे बदलो!!!

हाल ही में मित्र के साथ चर्चा के दौरान उसका फ़ोन बज उठा। बड़े अनमने मन से उसने फ़ोन उठाया और बातचीत पूरी करते ही वे बोले, “है भगवान! पहले ही कम परेशानियाँ थी क्या?, जो यह एक और नई परेशानी भेज दी।”  मित्र ने यह हालाँकि मज़ाक़िया लहजे में बोला था लेकिन मुझे उसके मज़ाक़ से जीवन की एक सच्चाई याद आ गई कि हमारे पास जो होता है, जैसा हम सोचते है वैसा ही ईश्वर हमें और देते जाते है। मतलब जो नकारात्मक सोचते हैं, वे और नकारात्मक हो जाते हैं। जो ग़रीबी के बारे में सोचते हैं, वे और गरीब हो जाते हैं। इसे बेहतर तरीक़े से समझने के लिए आईए, हम माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की एक कहानी सुनते है ।

एक दिन धरती की ओर देखते हुए माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से एक प्रश्न करा, “भगवन्, आज धरती लोक को देखते हुए कुछ अटपटा-सा लग रहा था, सही पूछिए तो मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। माता लक्ष्मी के वचन सुन भगवान विष्णु ने कहा “ऐसा क्या देख लिया प्रिये?”

माँ लक्ष्मी ने कहा, “प्रभु, मैंने बहुत गोर से देखा, धरती पर आपके कार्य करने का तरीक़ा बड़ा विचित्र है, जो व्यक्ति पहले से ही दुःखी है आप उसे और ज्यादा दुःख, और जो सुखी हैं आप उसे और ज्यादा सुख देते है।”
भगवान विष्णु मुस्कुराते हुए बोले, “ये संसार का नियम है, इसे समझने के लिए तुम्हें धरती पर ही चलना होगा”।

भगवान की बात मानकर माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु के साथ, मानव रूप धारण कर धरती पर पहुँची। धरती पर पहुँचकर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि अब हम मानव रूप में धरती पर है तो हमें यहाँ के नियमों का पालन भी करना होगा। जैसे स्वयं भोजन पकाकर खाना, तो मैं भोजन के लिए आटा, दाल इत्यादि सामग्री की व्यवस्था करता हूँ, तब तक तुम भोजन पकाने के लिए चूल्हा बनाने का इंतजाम करो। इतना कहकर भगवान विष्णु वहाँ से चले गए और माँ लक्ष्मी भी चूल्हा बनाने के लिए ईंटों का इंतज़ाम करने के लिए नगर भ्रमण पर चली गई।

कुछ ही देर में माँ लक्ष्मी ने ईंटों का इंतज़ाम करके खाना बनाने के लिए चूल्हा बना लिया। चूल्हा तैयार होते ही भगवान विष्णु वहाँ प्रकट हो गए। उन्हें बिना भोजन सामग्री लेकर आया देख माँ लक्ष्मी बोली, “प्रभु, चूल्हा तो मैंने तैयार कर दिया है, परंतु आप बिना भोजन सामग्री के आए है, बताइये भोजन कैसे बनेगा? माँ लक्ष्मी की बात सुनकर भगवान बोले, “लक्ष्मी, अब तुम्हें शायद भोजन पकाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी?

माता लक्ष्मी ने बड़े विस्मय के साथ पूछा, “ऐसा क्यूँ प्रभु?” भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी के प्रश्न का जवाब देने के स्थान पर उनसे ही प्रश्न कर लिया, “लक्ष्मी, तुम चूल्हा बनाने के लिए इन ईंटों को कहाँ से लेकर आई हो?” माता लक्ष्मी ने जवाब दिया, "प्रभु! मैंने इस नगर का भ्रमण किया, तो पाया कि यहाँ बहुत से ऐसे घर हैं जिनकी देखरेख ठीक से नहीं हो रही है, जिसके कारण उनकी दीवारें जर्जर हो चुकी है और वे बहुत बुरी हालात में थी। उन्हीं कुछ घरों की दीवारों से मैं चूल्हा बनाने के लिए ईंटें लेकर आई हूँ।" /

भगवान ने तुरंत माता लक्ष्मी से कहा, "जो घर पहले से जर्जर थे तुमने उन्हें और खराब कर दिया? तुम्हें जो अच्छे घर थे उनमें से ईंटें लेकर आनी थी।” माता लक्ष्मी बोलीं, "प्रभु ! उन घरों में रहने वाले लोगों ने अपने घरों की देखरेख बहुत मेहनत से करी है, जिसके कारण वे बहुत सुन्दर भी लग रहे थे। ऐसे में उनकी सुन्दरता को बिगाड़ना मुझे बिलकुल भी उचित नहीं लगा।"  भगवान विष्णु बोले, "लक्ष्मी! यही तुम्हारे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर है।”

जी हाँ दोस्तों, जिन लोगों ने अपने घर मतलब अपने शरीर, अपने जीवन, अपने मन का, अपनी सोच का, अपने कर्म का रखरखाव अच्छे से करा है, ईश्वर उन्हें दुखी या परेशान कैसे कर सकते हैं? इसलिए वे इन्हीं चीजों को कई गुना बढ़ा देते हैं अर्थात् आप हमेशा देखेंगे कि उनका मन अच्छा है, वे खुश, संतुष्ट और मस्त हैं। ईश्वर उन्हें और अधिक मानसिक शांति, ख़ुशी और मस्ती देता है। लेकिन अगर आप दुखी, परेशान और असंतुष्ट रहते हैं तो ईश्वर इन्हीं चीजों को कई गुना बढ़ाकर आपको दे देता है। अर्थात् जो सुखी हैं अपने कर्मों की वजह से सुखी है, और जो दुखी हैं वे भी अपने कर्मों की वजह से ही दुखी हैं। इसलिए हर एक मनुष्य को अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए, जिससे वह अपने जीवन की इतनी मजबूत व खूबसूरत इमारत खड़ी करे कि कभी भी, कोई भी उसकी एक भी ईंट न निकाल पाए।”

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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