फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
हर रिश्ता कुछ चाहता है


Aug 3, 2021
हर रिश्ता कुछ चाहता है…
दोस्तों एक अच्छा जीवन जीने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जितना आवश्यक है, उतना ही मानसिक शांति और स्वस्थ शरीर का होना भी है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यूँकि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति एक अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ या कौशल जुटाने में सक्षम होता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ बने रहने के लिए आवश्यक है मानसिक रूप से स्वस्थ रहना और मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक चीज़ है, अच्छे रिश्ते का होना और अक्सर ज़्यादातर लोग इस महत्वपूर्ण बात को नज़रंदाज़ कर जाते हैं।
जी हाँ दोस्तों, अच्छे रिश्ते होना वाक़ई इतना ज़रूरी है अन्यथा रिश्तों में आया तनाव जीवन के हर आनंद को, वैभव को खत्म कर सकता है। ऐसा ही कुछ मेरे एक परिचित के साथ हो रहा है। अच्छा व्यापार, संस्कारी पढ़े-लिखे बच्चे और सभी संसाधन होने के बाद भी पत्नी के साथ अच्छे रिश्ते ना होने की वजह से वे ईश्वर प्रदत्त उपरोक्त सभी चीजों का लुत्फ़ उठाने के स्थान पर अत्यधिक तनाव में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वे चाहते थे कि मैं काउन्सलिंग के माध्यम से रिश्ते सुधारने में उनकी मदद करूँ।
पति-पत्नी दोनों से हुई चर्चा में मुझे एहसास हुआ कि दोनों के बीच झगड़े का कोई बहुत बड़ा कारण है ही नहीं, बस आपसी अहंकार अर्थात् ईगो की वजह से वे सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं। वैसे तो कहा जाता है कि पति-पत्नी के रिश्ते के बीच नोक झोंक आपसी प्यार बढ़ाती है पर अहंकार अर्थात् ईगो ने इन दोनों के बीच की छोटी-मोटी समस्याओं या तकरार को बढ़ाकर रिश्तों में दूरियाँ पैदा कर दी है और इसी वजह से दोनों के बीच का विश्वास डगमगाने लगा है और वे दोनों एक-दूसरे की छोटी से छोटी बातों को भी शक की नज़र से देखने लगे।
दोस्तों दाम्पत्य जीवन में ऐसी स्थिति का असर लम्बे समय तक रहता है। इसलिए काउन्सलिंग शुरू करने के पूर्व ही मेरा उन दम्पति से पहला प्रश्न था, ‘क्या आप वाक़ई इस रिश्ते को सुधारना चाहते हैं?’ दोनों ने मुँह से तो हाँ कहा था, पर उनके आपस में कहे गए शब्द, शारीरिक हाव-भाव व ऐक्शन कुछ और ही कह रहे थे। काउन्सलिंग के 2-3 सेशन के बाद मेरा शक कि वे सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए या सामाजिक तौर पर दिखावे के लिए रिश्तों को ठीक करने का दिखावा कर रहे हैं, पुख़्ता हो गया। ऐसा मैं इसलिए कह पा रहा हूँ क्यूँकि वे काउन्सलिंग में बताई गई बातों को भी अपने अहंकार और फ़ायदे-नुक़सान के आधार पर तोल कर काम में ले रहे हैं।
दोस्तों पति-पत्नी ही नहीं किसी भी रिश्ते को दिमाग़ से नहीं चलाया जा सकता है और ना ही रिश्तों को सम्भालना इतना मुश्किल है। इसे मैं आपको एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-
एक बार समुद्र के मध्य में एक द्वीप पर सारी भावनाएँ एक साथ रहा करती थी। एक बार मौसम विभाग ने द्वीप पर रहने वाली सभी भावनाओं को सूचना दी कि एक बहुत ख़तरनाक समुद्री तूफ़ान आने वाला है जिसमें उक्त द्वीप के पूरा डूब जाने की सम्भावना है। सारी भावनाएँ डर गई लेकिन ‘प्यार’ ने अपना हौंसला बरकरार रखा और सारी भावनाओं को समुद्री तूफ़ान से बचाने के लिए एक बहुत बड़ी नाव बनाई। ‘प्यार’ ने सभी भावनाओं को उचित सम्मान के साथ, बड़े प्यार से नाव के ऊपर बुलाया। सिर्फ़ एक भावना को छोड़कर अपना जीवन बचाने के लिए सारी भावनाएँ नाव पर आ गई। ‘प्यार’ तुरंत नाव से नीचे उतरा और देखने लगा आख़िर कौनसी भावना पीछे छूट गई है।
नीचे उतरकर देखने पर पता चला ‘अहंकार’ नीचे छूट गया था। ‘प्यार’ ने उसे साथ चलने के लिए बहुत समझाया पर ‘अहंकार’ साथ चलने के लिए राज़ी ही नहीं था। सभी ने ‘प्यार’ को ‘अहंकार’ को छोड़कर नाव में आने के लिए कहा, लेकिन ‘प्यार’ तो प्यार के लिए ही था, उसने अहंकार के साथ रहने का निर्णय लिया। कहते हैं उस भीषण तूफ़ान में बाक़ी सारी भावनाएँ तो ज़िंदा बच गई पर ‘अहंकार’ की वजह से ‘प्यार’ मारा गया।
जी हाँ दोस्तों पति-पत्नी ही नहीं, सभी रिश्तों में ऐसा ही होता है। हमारा अहंकार रिश्तों में से प्यार को खत्म कर देता है और बिना प्यार के विश्वास होना भी असंभव ही है। बिना प्यार और विश्वास के अच्छे रिश्ते की सिर्फ़ कल्पना ही की जा सकती है। याद रखिएगा दोस्तों, हर रिश्ते की नींव प्यार और विश्वास के साथ ही बनती है और उस पर रिश्तों की मज़बूत इमारत आपसी सामंजस्य के साथ बनाई जा सकती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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