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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

हौसलों की उड़ान

हौसलों की उड़ान
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June 22, 2021

हौसलों की उड़ान…


मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। वैसे तो दोस्तों इस शायरी को हम में से कई लोगों ने सुन रखा होगा या कभी ना कभी इसका प्रयोग भी करा होगा। लेकिन ज़्यादातर लोग इसका शाब्दिक अर्थ तो समझ जाते हैं पर कुछ ही लोग होते हैं जो शायरी के इन चंद शब्दों को अपने जीवन का मूल मंत्र बना लेते हैं और कुछ ऐसा कर गुजरते हैं कि सुनने वाले सिर्फ़ दाँतो तले उँगली ही दबाते रह जाते हैं। आईए, आज मैं आपको फ़िलिपींस की रहने वाली मात्र 11 वर्षीय एक ऐसी लड़की की कहानी सुनाता हूँ जिसने उपरोक्त शब्दों को शब्दशः सही सिद्ध कर दिया।


फ़िलिपींस की रहने वाली रिया बुलोस को बचपन से ही खेल में और विशेषतः एथलेटिक्स में रुचि थी। विद्यालय में उसे एक दिन 9 दिसम्बर 2019 को फ़िलिपींस में अंतर-विद्यालय एथलेटिक्स मीट के बारे में पता चला। उसने इस प्रतियोगिता में भाग लेने की इच्छा जताई। हालाँकि प्रतियोगिता में मात्र एक माह बचा था और इतने दिनों में प्रतियोगिता जीतने के लिए आवश्यक कठिन ट्रेनिंग लेना, वह भी बिना स्पाइक्स वाले जूतों के, आसान नहीं था। जी हाँ दोस्तों जहां हम बच्चों को आमतौर पर कुछ भी खेलना शुरू करने के पहले ढेर सारे गियर्स ख़रीदते देखते हैं वहीं इस बच्ची के पास दौड़ने के लिए सही जूते तक नहीं थे।


लेकिन 11 वर्षीय रिया बुलोस तो इस प्रतियोगिता में ना सिर्फ़ भाग लेने का, बल्कि इसे जीतने का ठान चुकी थी। ट्रेनिंग के लिए तय दिन वह अपने ट्रेनर प्रेडिरिक वालेंज़ुएला के पास साधारण जूते पहनकर पहुँच गई। ट्रेनर उसे साधारण जूते में देख हैरान थे पर उन्होंने उसे सिखाना शुरू कर दिया। जहां आमतौर पर बच्चे प्रशिक्षण के दौरान सिर्फ़ इसलिए थक जाते थे क्योंकि उनके पास स्पाइक्स वाले जूते नहीं होते थे, वहीं रिया साधारण जूतों में प्रशिक्षण में अपना सर्वश्रेष्ठ दे रही थी। प्रशिक्षण के दौरान रिया के पास उपलब्ध दोनों जोड़ साधारण जूते भी फट गए, अब उसके पास प्रतियोगिता में पहनने के लिए कोई से भी जूते नहीं थे।


लेकिन इससे उसके मनोबल पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, उसने हार मानने की जगह अपनी तैयारी जारी रखी। जल्द ही वह दिन भी आ गया, जिस दिन का इंतज़ार रिया को था अर्थात् अंतर-विद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिता वाला दिन। रिया ट्रैक पर पूरी तरह तैयार थी वह भी नाइकी के जूते पहनकर। चौंकिए मत, नाइकी के जूते आए कहाँ से इसके बारे में मैं आपको थोड़ी देर में बताता हूँ। ख़ैर रेस शुरू हुई और रिया ने अपना सपना स्वर्ण पदक जीत कर पूरा किया और वह भी एक नहीं तीन स्वर्ण पदक जीत कर। पहला 400 मीटर दौड़ में, दूसरा 800 मीटर दौड़ में और तीसरा 1500 मीटर दौड़ में।


आईए अब उसके नाइकी वाले जूते की कहानी भी जान लेते हैं। असल में उसने प्रैक्टिस सत्र और ट्रेनिंग के दौरान देखा था कि अच्छे धावक नाइकी के स्पाइक्स वाले जूते पहन कर दौड़ में भाग लेते हैं और उनमें से ही कुछ खिलाड़ी उसे साधारण जूतों में हीन भावना के साथ देखते थे। इस वजह से उसने यह निर्णय लिया कि कुछ भी हो जाए वह भी नाइकी के जूते पहन कर मैदान में उतरेगी जिससे उसका मनोबल बना रहे। ख़ैर सबसे बड़ा सवाल तो इसके बाद था, नाइकी के जूते आएँगे कहाँ से? इतने पैसे तो उसके पास थे नहीं, पर हाँ उसके पास कभी भी हार ना मानने वाला दृष्टिकोण ज़रूर था।



उसने जूते खुद बनाने का निर्णय लिया वह भी उपलब्ध संसाधनों के द्वारा। प्रतियोगिता वाले दिन उसने हड्डी टूटने पर चढ़ाए जाने वाले प्लास्टर टेप की पट्टियों को पैर पर जूतों की तरह लपेट लिया। खुद के द्वारा जुगाड़ से बनाए इन जूतों को पहनने के बाद उसने उनके ऊपर नीले कलर के पेन से नाइकी "स्वोश" का लोगो बनाया और इसे पहन कर तीनों स्वर्ण पदक जीते।


प्रतियोगिता जीतने के बाद उसके प्रशिक्षक प्रेडिरिक वालेंज़ुएला ने उसके ‘नाइकी जूते’ वाले फ़ोटो और विडियो को इंटरनेट पर डाल दिया कुछ ही समय में उनकी यह पोस्ट वायरल हो गई और लोग उसकी तारिफ़ करने के साथ-साथ नाइकी से उसके और उसकी टीम के अन्य सदस्यों के लिए स्पाइक्स वाले जूते देने की मांग करने लगे। इसे देख एसएम सिटी ने रिया बुलोस के लिए नए जूते, मोज़े और एक स्पोर्ट्स बैग ख़रीदा और उसे ईनाम स्वरूप दिया। फिलीपींस के एक अखबार डेली गार्जियन ने रिया की कहानी उसके नए व पुराने जूतों की तस्वीर के साथ छापी।


दोस्तों सपने तो हर कोई देखता है लेकिन हर कोई उसे हक़ीक़त में बदल नहीं पाता है। अगर आप भी अपना सपना पूरा करना चाहते हैं तो रिया की तरह अपने सपनों पर यक़ीन रख, कभी ना हारने वाले दृष्टिकोण और अपने मनोबल को ऊँचा रखना सीखना होगा। यह तभी सम्भव होगा जब आप जो उपलब्ध नहीं है के स्थान पर, जो उपलब्ध है उस पर ध्यान लगा सकें और उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग कर सकें। इसीलिए तो कहा गया है, ‘मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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