फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
‘ना’ कहना सीखने के 10 शक्तिशाली सूत्र - भाग 1


May 8, 2021
‘ना’ कहना सीखने के 10 शक्तिशाली सूत्र - भाग 1
दोस्तों ‘ना’ कहना एक ऐसी शक्तिशाली आदत है जो ग़ुस्सा, तनाव, निराशा और बेचैनी जैसे और भी कई नकारात्मक भावों से बचाते हुए आपको जीवन में हर वो चीज़ दिलवाने में मदद करती है, जो आपके लिए अति महत्वपूर्ण होती हैं। जैसे सुख, शांति, समय पर लक्ष्य प्राप्ति, अच्छा पारिवारिक माहौल आदि।
अपने कम्प्यूटर के व्यवसाय के समय मैंने अपनी इस एक आदत की वजह से खुद को कई बार परेशानी में डाल दिया था। इस आदत का सबसे बड़ा नुक़सान यह है कि जब आप ‘ना’ के स्थान पर ‘हाँ’ कहते हैं तब आप खुद के लक्ष्यों, प्राथमिकताओं आदि को एक तरफ़ रख दूसरे व्यक्ति की लक्ष्य पूर्ति में लग जाते हैं। वैसे जब आप ‘ना’ कहने के स्थान पर ‘हाँ’ कहते हैं तो तीन परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं, पहली आप तनाव, दबाव के साथ अतिरिक्त ऊर्जा लगाकर सामने वाले से आश्वस्त किया अतिरिक्त कार्य पूर्ण कर पाएँगे लेकिन इस समय आप अपनी प्राथमिकताओं से भटक जाएँगे। दूसरा, ‘ना’ के स्थान पर ‘हाँ’ कहने के बाद आप अपनी प्राथमिकताओं को पूरा करने के पश्चात, सामने वाले का कार्य उच्च गुणवत्ता के साथ ना कर पाएँ। ऐसी स्थिति में आप अपनी साख खोने लगेंगे और व्यक्ति आपके बारे में नकारात्मक छवि बनाने लगेगा। तीसरा, आप अपनी प्राथमिकताएँ और सामने वाले के कार्य, दोनों को उच्च गुणवत्ता के साथ पूरा कर लें लेकिन ऐसी स्थिति में आप काफ़ी दबाव और तनाव के साथ कार्य करेंगे जो लम्बे समय में आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। इसका बड़ा सीधा सा अर्थ हुआ दोस्तों, ‘ना’ कहने के स्थान पर ‘हाँ’ कहकर हम हर परिस्थिति में खुद का ही नुक़सान करते हैं।
वैसे जितना आसानी से मैंने अभी कहा है, यह उतना आसान नहीं है। ’ना’ कहना सीखने और उसे जीवन में अमल में लाने में मुझे खुद को, ना सिर्फ़ लम्बा समय लगा बल्कि परेशानी भी हुई। बल्कि अभी भी कई बार ऐसा लगता है कि मैं ‘ना’ कहने के स्थान पर ‘हाँ’ कह दूँ। आज मैं आपको दस ऐसे शक्तिशाली सूत्रों, आदतों और रणनीतियों के बारे में बताऊँगा जो मैंने पिछले कई वर्षों में अपने गुरुओं से सीखीं हैं और जिनकी मदद से मैंने अपने जीवन में नए मुक़ामों को पाया है। आईए आज हम उन 10 सूत्रों में से प्रथम दो सूत्रों को सीखते हैं-
प्रथम सूत्र - स्पष्ट लक्ष्य एवं प्राथमिकताएँ रखें
जब आप हर पल अपने मन में स्पष्ट लक्ष्य और प्राथमिकताएँ रखते हैं तो आप उन लक्ष्यों और प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं। ऐसी स्थिति में जब आपके समक्ष कोई भी अतिरिक्त कार्य आता है तो आपकी प्राथमिकताएँ आपको हाँ कहने से रोकेगी अर्थात् जिस कार्य के लिए आप ‘ना’ कहना चाहते हैं, उस ‘ना’ को कहने के लिए आपके मन में स्पष्ट कारण होंगे।
वैसे ‘ना’ के स्थान पर ‘हाँ’ कहने का एक महत्वपूर्ण कारण ‘लोग या वह व्यक्ति क्या कहेगा या सोचेगा?’ इस विचार का हमारे मन में होना होता है। इसलिए अपनी प्राथमिकताओं और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना आपको ‘ना’ कहने के बाद भी सकारात्मक बनाए रखता है और आप अपने खुद के लिए, अपने शौक़, अपने परिवार और अपने लक्ष्यों के लिए समय निकालकर, अपनी ऊर्जा का सही इस्तेमाल करके तनाव रहित कार्य कर पाते हैं।
याद रखिएगा दोस्तों ‘ना’ कहना कठिन है, असम्भव नहीं। अगर हम हमारे जीवन में क्या महत्वपूर्ण है इसका ध्यान नहीं रखेंगे तो और कौन रखेगा? ‘ना’ हमारे जीवन के लिए क्या महत्वपूर्ण है उस पर ध्यान लगाने का एक आसान तरीक़ा है। इस आदत को विकसित करने के लिए आप स्वयं से पूछें, इस वक्त मेरे जीवन की शीर्ष 5 प्राथमिकताएँ क्या हैं? इन प्राथमिकताओं को एक कार्ड पर लिखकर हमेशा अपने पास रखें और दिन में कम से कम तीन बार इसे पढ़ें। इन्हीं प्राथमिकताओं को आप अपने कार्यालय और घर में भी उन स्थानों पर लगाकर रख सकते हैं जहां से यह आपको अपने आप दिखती रहें। अगर आप फ़ोन, लैपटॉप या कम्प्यूटर का अधिक उपयोग करते हैं तो इन प्राथमिकताओं का बैकड्रॉप बनाकर रख सकते हैं।
द्वितीय सूत्र - सामने वाले को निरुत्तर करते हुए अपनी प्राथमिकताएँ बताएँ
दोस्तों यह बड़ा प्रभावशाली तरीक़ा है लेकिन इसके इस्तेमाल के लिए आपको अपनी कम्यूनिकेशन स्किल को बेहतर बनाना होगा। वैसे भी दोस्तों कम्यूनिकेशन स्किल जीवन में सबसे ज़्यादा काम आने वाली स्किल है। ख़ैर, इस पर हम कभी और चर्चा करेंगे अभी हम मुख्य बिंदु पर वापस आते हैं।
जब भी आप किसी को ‘ना’ कहना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके समक्ष अपना पक्ष कुछ इस तरह रखें कि वह आपके ऊपर ‘हाँ’ कहलवाने के लिए दबाव ना बना सके। उसके मन में आपके ना कहने पर आने वाले नए प्रश्नों के उत्तर भी आप पहले ही देने का प्रयास करें, इससे सामने वाले के लिये आपकी ना को स्वीकारना आसान हो जाएगा। इसे मैं आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ, कल मेरे समक्ष एक वेबीनेयर का प्रस्ताव आया। मुझे प्रस्ताव सुनकर ऐसा लगा कि इस वक्त इसे स्वीकारना मेरे लिए उचित नहीं रहेगा। मैंने प्रस्तावक से कहा, ‘सर, आपका प्रस्ताव वाक़ई में अद्भुत है और निश्चित तौर पर यह मेरे कार्य को नया आयाम दे सकता है। मैं इस वक्त अपने दैनिक रेडियो शो ‘ज़िंदगी ज़िंदाबाद’ और समाचार पत्र के दैनिक कॉलम ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है…’ के साथ-साथ कुछ पूर्व के व्यवसायिक प्रतिबद्धता से बंधा हुआ हूँ साथ ही मैं और मेरा परिवार अभी-अभी कोरोना से ठीक हुआ है इसलिए इस वक्त चाहते हुए भी मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार नहीं पाऊँगा। अगर आप चाहेंगे तो हम इस पर कुछ समय बाद फिर चर्चा कर लेंगे।’
लेकिन दोस्तों, इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात जो हमें ध्यान रखना है वह यह है कि आप जो भी कहें उस पर दृढ़ रहें और अपनी कही हुई बातों के प्रति ईमानदार रहें।
आज के लिए इतना ही दोस्तों, कल हम ‘ना’ कहना सीखने के अगले पाँच सूत्र सीखेंगे।
-निर्मल भटनागर
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