फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
‘ना’ कहना सीखने के 10 शक्तिशाली सूत्र - भाग 3


May 10, 2021
‘ना’ कहना सीखने के 10 शक्तिशाली सूत्र - भाग 3
ज़िंदगी ईश्वर का दिया हुआ एक अनमोल तोहफ़ा है, इसे निश्चित तौर पर हम दूसरों के अनुसार जीकर ऐसे ही खत्म नहीं कर सकते हैं। इसलिए दोस्तों पिछले 2 दिनों से हम ‘ना’ कहना सीखने के 10 शक्तिशाली सूत्र सीख रहे हैं। अभी तक हम 7 सूत्र सीख चुके हैं लेकिन आगे बढ़ने से पहले आइए हम उन 7 सूत्रों को एक बार संक्षेप में दोहरा लेते हैं -
प्रथम सूत्र - स्पष्ट लक्ष्य एवं प्राथमिकताएँ रखें
हर वक्त अपने जीवन की पाँच स्पष्ट प्राथमिकताएँ बनाकर रखना और उस पर योजनाबद्ध तरीक़े से काम करना आपको अनावश्यक कार्यों के लिए ‘ना' करने का स्पष्ट कारण याद दिलाता है। साथ ही यह आपको ‘लोग क्या कहेंगे या सोचेंगे’ जैसी फ़ालतू बातों से बचाकर सकारात्मक बनाए रखता है। याद रखिएगा, ‘ना’ कहकर आप, जीवन में वाक़ई क्या महत्वपूर्ण है, उस पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
द्वितीय सूत्र - सामने वाले को निरुत्तर करते हुए अपनी प्राथमिकताएँ बताएँ
अपनी बात इस तरह कहें, जिससे सुनने वाले को एहसास हो कि आपके लिए ‘हाँ’ कहना सम्भव ही नहीं है। अपनी बात इस तरह रखें जिससे सामने वाले के पास आपके ऊपर दबाव बनाने के लिए कोई कारण ही ना बचे। साथ ही अपने कहे शब्दों का सम्मान करें और उनके प्रति ईमानदार रहें। अच्छी कम्यूनिकेशन स्किल ऐसा करना आसान बना देती है।
तीसरा सूत्र - सामने वाले के प्रस्ताव पर आप कैसा महसूस करते हैं यह बताएँ
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपके वैध कारणों के साथ ‘ना’ करने के बाद भी आपके ऊपर ‘हाँ’ कहलवाने का दबाव बनाते हैं और आपको अपनी बात पर विश्वास दिलाकर मना लेते हैं। आमतौर पर सेल्समैन इस तरह से कार्य करते हैं। ऐसे लोगों से बचने के लिए वैध कारणों के साथ ‘ना’ कहते समय अपनी बात के अंत में यह भी बता दें कि उसके प्रस्ताव पर आप कैसा महसूस कर रहे थे। ऐसा करने से सामने वाले को आपकी प्राथमिकताओं का पता चल जाता है और उसे एहसास हो जाता है कि आपसे बहस करना या ‘हाँ’ कहलवाना आसान नहीं होगा।
चौथा सूत्र - अगर सम्भव हो तो मदद करें
‘ना’ करने के बाद बातचीत खत्म करने से पहले अगर आपके लिए सम्भव हो, तो सामने वाले व्यक्ति की मदद एक अच्छी सलाह, सुझाव, ज्ञान या किसी अन्य सक्षम व्यक्ति के बारे में बताकर करें। ऐसा करने से सामने वाले का उद्देश्य भी पूरा हो जाता है और आपकी प्राथमिकताएँ भी नहीं गड़बड़ाती।
पाँचवाँ सूत्र - ना करते समय अगर आप थोड़ा असहज या दोषी भी महसूस कर रहे हैं तो भी अपने निर्णय पर अडिग रहें
भावनाओं के आधार पर प्राथमिकताएँ बदलना आपको अपने लक्ष्य से दूर कर देता है। इसलिए अगर आप ‘ना’ कहने के बाद थोड़ा असहज या दोषी महसूस कर रहे हैं तो ऐसे भाव को नज़रंदाज़ करें और सम्भव हो तो चौथे सूत्र का पालन करते हुए अपनी प्राथमिकताओं पर कार्य करते रहें।
छठा सूत्र - याद रखें, सब को खुश नहीं रखा जा सकता है
दोस्तों दुनिया में हर किसी को खुश और प्रसन्न रखते हुए अपने कार्य में सफल हो पाना सम्भव नहीं है। तय करें कि आप किसे खुश और सुखी रखना चाहते हैं, बाहर वालों को या खुद को। अगर आपकी प्राथमिकता आप और आपका परिवार है तो लोगों को खुश या संतुष्ट रखने के लिए हाँ कहने से बचें।
सातवाँ सूत्र - अपने आत्मसम्मान का ध्यान रखें
अपनी ऊर्जा और समय का मूल्य पहचानने के लिए अपने आत्मसम्मान का ध्यान रखना आवश्यक है। अपने आत्मसम्मान के ख़िलाफ़ जाकर कार्य करने के स्थान पर अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर कार्य करें।
चलिए दोस्तों अब शुरू करते हैं ‘ना’ कहना सीखने के अंतिम 3 शक्तिशाली सूत्र-
आठवाँ सूत्र - याद रखें, लोग ‘आप क्या कहते हैं’ से नहीं बल्कि ‘आपके व्यवहार’ से सीखते हैं
परिवार में बच्चे, अन्य सदस्य, दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी आदि ‘आप क्या कह रहे हैं’ से ज़्यादा ‘आप कैसा व्यवहार करते हैं’ से सीखते हैं। आपका व्यवहार सबसे ज़्यादा फ़र्क़ पैदा करता है, इसीलिए मैं इसे सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण सूत्र मानता हूँ। कभी भी आप ऐसे किसी कार्य के लिए हाँ ना करें जो आप अपने आस-पास मौजूद लोगों को सिखाना नहीं चाहते हैं या उनसे वैसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं करते हैं। ऐसा करना जीवन और संबंधों को सरल और अधिक सम्मानजनक बनाकर आपके आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
नवाँ सूत्र - आपके ‘ना’ कहने से दुनिया रुक नहीं जाएगी
जी हाँ दोस्तों आपके ना कहने से किसी का कार्य या दुनिया खत्म या रूक नहीं जाती है। सामने वाले व्यक्ति को कोई और व्यक्ति मिलेगा जो उस कार्य को पूर्ण करेगा। याद रखिएगा जीवन कभी किसी के लिए रुकता नहीं है, वह चलता रहता है। अनावश्यक हाँ कहने की वजह से लोग वह नहीं पा पाते जो वे पाना चाहते हैं, वे सोचते कुछ हैं, करते कुछ हैं, होता कुछ हैं और अंत में उन्हें मिलता कुछ और ही है। इसलिए जब आप ‘ना’ कहना चाहते हैं, तो ‘हाँ’ कभी मत कहिए, नहीं तो अंत में सिर्फ़ और सिर्फ़ आप पछताएँगे।
दसवाँ सूत्र - सफलताओं का जश्न मनाएँ और पूरी यात्रा का विश्लेषण करें
हो सकता है आप शुरू में उपरोक्त सूत्र सीखने के बाद भी चाहते हुए भी हर बार ‘ना’ न कह पाएँ। ऐसी परिस्थितियों या मौक़ों पर अपना ध्यान केंद्रित ना करें, बस जहां सम्भव लगे वहाँ ‘ना’ कहना प्रारम्भ कीजिए, उससे मिलने वाले परिणाम का विश्लेषण कीजिए और उस वजह से जीवन में आए सकारात्मक बदलाव पर फ़ोकस कीजिए। जश्न मनाइए, खुद की पीठ थपथपाएं क्यूँकि आपने थोड़ा-थोड़ा ही सही लेकिन ‘ना’ कहकर खुद के जीवन को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। ऐसा करके आप अपने आत्मसम्मान को बिना नुक़सान पहुँचाए, स्व-प्रेरणा से इस आदत को बदलकर सकारात्मक बदलाव ला पाएँगे, जीवन में आगे बढ़ पाएँगे।
अब रोज़ अपने दिन का विश्लेषण करने की आदत विकसित करें, विश्लेषण करने के बाद विचार करें इससे क्या सीखा जा सकता है और भविष्य में इस सीख का इस्तेमाल करके किस तरह इच्छित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं? अब बस इन सीख को रोज़ इस्तेमाल करना शुरू कीजिए। याद रखिएगा, हमें अपनी दुनिया बदलने के लिए किसी बड़े ईश्वरीय चमत्कार या जादू की ज़रूरत नहीं है, इसके लिए हमें बस अपने अंदर कुछ नई आदतों को विकसित करना है और इन आदतों को विकसित करने की क्षमता पहले से ही हमारे अंदर मौजूद है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर