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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

‘रेडीमेड स्मार्टनेस’ नहीं, तैयारी दिलाएगी सफलता

‘रेडीमेड स्मार्टनेस’ नहीं, तैयारी दिलाएगी सफलता
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Aug 28, 2021

‘रेडीमेड स्मार्टनेस’ नहीं, तैयारी दिलाएगी सफलता !!!


कल एक बच्चे ने मेरे हाथ में फ़ोन देखकर कहा, ‘आप अभी भी आइफ़ोन 6एस ही उपयोग में ला रहे हैं? यह तो कितना पुराना हो गया है। ओह! आप घड़ी भी ऐपल की काम में लेते हैं, कौन सी सिरीज़ की है यह?’ उसकी बात सुन मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया। मैं सोच रहा था मेरी पहचान मेरे कौशल या मेरे ज्ञान से है या मेरे पास जो संसाधन है, उससे है? मैंने क्या पहना है, कौनसे ब्रांड का सामान मैं उपयोग में ला रहा हूँ, शायद यह लोगों के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है और शायद वे मेरी क्षमता या योग्यता का पता इन्हीं चीजों से लगाते हैं।


जी हाँ दोस्तों, आजकल एक नई पीढ़ी तैयार हो रही है जिसको ‘रेडीमेड स्मार्टनेस’ चाहिए। जी हाँ, ‘रेडीमेड स्मार्टनेस!’ अर्थात् खुद को सभ्य, पढ़ा-लिखा, ज्ञानी और समझदार दिखाने के लिए, पाश्चात्य जीवनशैली का अनुसरण करते हुए, भाषा विशेष के प्रयोग से अथवा पहनावे या रहन-सहन के तरीक़े अपनाकर स्मार्ट बन जाना। पर सोच कर देखिए, क्या यह सम्भव है? शायद नहीं!


एक छोटी सी, हंसी मज़ाक़ वाली कहानी से ऐसी ‘स्मार्टनेस’ का क्या हश्र होता है समझाने का प्रयास करता हूँ।


एक रात कॉलेज के चार छात्रों ने जमकर देर रात तक पार्टी करी। आधी रात होने से उन्हें एहसास हुआ कि वार्डन उन्हें हॉस्टल में प्रवेश नहीं देंगे। इसलिए उन चारों ने मिलकर एक योजना बनाई और अपने कपड़ों पर धूल-मिट्टी और तेल के दाग लगाकर हॉस्टल पहुँच गए। 


जब वार्डन ने देर से आने का कारण पूछा, तो अपनी योजना अनुसार, ’स्मार्ट’ बनते हुए उनमें से एक ने बहाना बनाते हुए कहा, ‘सर हम एक पार्टी में गए थे लेकिन वहाँ से आते समय रास्ते में कार का टायर फट गया इसलिए लेट हो गए। हालाँकि वार्डन को लग रहा था कि बच्चे झूठ बोल रहे हैं लेकिन फिर भी मानवीय आधार पर उसने उन्हें हॉस्टल में प्रवेश दे दिया। 


लेकिन छात्रों के समक्ष एक और समस्या बची थी, बिना तैयारी के अगले दिन होने वाली परीक्षा का क्या करें? उन्होंने इसी कहानी को एक बार फिर उपयोग करने का मन बनाया और अगले दिन परीक्षा के पूर्व, प्राचार्य के समक्ष रोनी सुरत बनाकर बोले, ‘सर, कल रात शादी से लौटते समय हमारी कार का टायर फट गया था इसलिए हम पढ़ नहीं पाए और आज हम परीक्षा देने की स्थिति में नहीं है।’


प्राचार्य ने थोड़ी देर सोचा और कहा ठीक है तुम तीनों 3 दिन बाद मेरे पास आकर परीक्षा दे सकते हो। तीनों छात्रों ने प्राचार्य को धन्यवाद दिया और वहाँ से बाहर चले गए। बाहर निकलते ही चारों छात्र अपनी योजना को सफल होता देख एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए और वहाँ से चल दिए। अगले दो दिनों तक उन्होंने बढ़िया तैयारी करी और परीक्षा देने के लिए प्राचार्य के पास पहुँच गए।  


प्राचार्य ने विशेष परिस्थितियों में आयोजित की गई इस परीक्षा के लिए चारों छात्रों को अलग-अलग कक्षाओं में बैठाया और कहा, यह टेस्ट कुल 100 अंकों का होगा और तुम्हें केवल 2 प्रश्नों को हल करना है। इन दो प्रश्नों में से एक प्रश्न के चार उत्तर दिए हैं तुम्हें बस सही उत्तर पर सही का निशान लगाना है। इतना सुनते ही चारों छात्र खुश हो गए। लेकिन उनकी यह ख़ुशी कुछ पलों की ही थी क्यूँकि प्रश्न पत्र देखते ही उनके होश उड़ गए। दोनों प्रश्न इस तरह थे:


1) आपका नाम? ____ (1 अंक)

2) आपकी कार का कौन सा टायर फटा था? ____ (99 अंक)

विकल्प - (ए) फ्रंट लेफ्ट (बी) फ्रंट राइट (सी) बैक लेफ्ट (डी) बैक राइट


बताने की ज़रूरत नहीं है दोस्तों उस परीक्षा में उन चारों छात्रों का क्या हुआ होगा।

दोस्तों, कहानी मज़ाक़िया ज़रूर है पर हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण रहस्य सिखाने के लिए सम्पूर्ण है। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता और आप किसी की नक़ल करके या किसी और जैसा कार्य करके स्मार्ट नहीं बन सकते हैं। याद रखिएगा दोस्तों ‘रेडीमेड स्मार्टनेस’ से ज्ञानी को ना तो हराया जा सकता है, ना ही उसका स्थान लिया जा सकता है। लेकिन ज्ञान के साथ अगर आप स्मार्ट हैं तो निश्चित तौर पर आप अपनी स्वीकार्यता बढ़ा सकते हैं, सफल हो सकते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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