फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
“मैं” - कृत खाई
Mar 16, 2021
“मैं” - कृत खाई
शहर से काफ़ी दूर जंगल के पार तीन पहाड़ थे। तीनों पहाड़ों से लगी हुई एक बहुत गहरी खाई थी जो इस इलाक़े में इंसान की पहुँच को लगभग नामुमकिन बना देती थी। इसलिए यह इलाक़ा बड़ा निर्जीव सा लगता था। एक बार भगवान विचरण करते हुए उस इलाक़े के ऊपर से जा रहे थे तभी उनके मन में उस इलाक़े का नाम रखने का विचार आया। पर अब नाम तीनों में से किसके नाम पर रखा जाए, यह एक और समस्या थी।
प्रभु तो प्रभु ठहरे, समस्या को देखने और हल करने के उनके तरीक़े भी उन्हीं की तरह निराले होते है। वे उन तीनों पहाड़ के पास गए और उनसे बोले, तुम तीनों इतने दिनों से अतल एक ही जगह पर खड़े हुए हो, मैं तुम्हें एक वरदान देता हूँ, बताओ क्या चाहते हो। पहले पहाड़ ने कहा, “मैं सबसे ऊँचा बनना चाहता हूँ, ताकी सभी लोग मुझे बहुत दुर से ही देख सकें। दूसरा पहाड़ बोला, ‘प्रभु मुझे एकदम हरा-भरा और सुंदर बना दीजिए ताकी जो भी मुझे देखे मेरी सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो जाए। तीसरा पहाड़ एकदम शांत खड़ा हुआ था। भगवान ने उससे कहा, ‘वत्स तुम क्यों चुप हो, बोलो तुम क्या वरदान चाहते हो?’ तीसरे पहाड़ ने सबसे पहले भगवान को नमन करा और कहा, ‘प्रभु मुझे ना तो बहुत बड़ा, ना ही बहुत सुंदर बनना है। मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है, आप तो बस मेरी ऊँचाई छीलकर इस खाई को भरकर इस हिस्से को समतल बना दो। जिससे यह पुरा क्षेत्र उपजाऊ भी हो जाएगा और लोगों के लिए यहाँ आना-जाना आसान हो जाएगा।’ भगवान ने तथास्तु बोला और वहाँ से चले गए।
कुछ वर्षों बाद भगवान वापस उस क्षेत्र से निकले तो उन्होंने देखा पहला पहाड़ और ज़्यादा ऊँचा हो गया है और अब तो वह काफ़ी दूर से नज़र आने लगता है। लेकिन अत्यधिक ऊँचाई की वजह से वहाँ काफ़ी बर्फ़ पड़ने लगी है, जिससे मौसम काफ़ी सर्द रहता है। इसीलिए वहाँ किसी भी इंसान का रहना बल्कि आना-जाना भी दूभर है।
दूसरा पहाड़ प्राकृतिक सम्पदा से भर गया हैं और इसी वजह से वहाँ काफ़ी सारे जंगली जानवर भी रहने लगे थे और जंगल काफ़ी घना हो गया था। उस पहाड़ के हालात इंसानों के लिए इतने विषम हो गए है कि कोई भी वहाँ जाने की हिम्मत ही नहीं कर पाता हैं।
तीसरे पहाड़ का तो नामोनिशान उस खाई को पाटने में ही खत्म हो गया था। उस पहाड़ और खाई की जगह अब समतल, उपजाऊ भूमि ने ले ली थी। खाई खत्म और भूमि समतल और उपजाऊ होने की वजह से अब लोगों के लिए आना-जाना, खेती करना व रहना सरल हो गया था। इसलिए अब कुछ परिवार वहाँ आकर बस गए थे। सभी लोगों को उस उपजाऊ भूमि का लाभ मिलने लगा था।
भगवान यह सब देख कर बड़े खुश और उत्साहित थे उन्होंने उस इलाक़े का नाम तीसरे पहाड़ के नाम पर रखने का निर्णय लिया और बोले, ‘इस पहाड़ ने इस पूरे इलाक़े को उपयोगी बनाकर दूसरों के जीवन को सरल और बेहतर बना दिया है। इसी की वजह से इस इलाक़े में लोगों का आना जाना सुगम हुआ है, लोगों को खाने के लिए अनाज और रहने के लिए जगह मिली है। लेकिन यह सब करने के लिए इसने अपने अस्तित्व को ही खत्म कर दिया है। इसने इस क्षेत्र को अपना बना लिया है, इसलिए मैंने इस क्षेत्र का नाम इस पहाड़ के नाम पर रखा है।’ इतना कहकर भगवान अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गए।
दोस्तों अगर आप अपने जीवन को पूर्ण रूप से जीना चाहते हैं तो इस कहानी में छिपे गूढ़ अर्थ को समझना होगा। यह तीनों पहाड़ हमारे अंदर ही मौजूद हैं। पहला पहाड़ है, ‘ मैं ’, हम अपने ‘ मैं ’ यानी अहम को इतना ज़्यादा बढ़ाते जाते हैं, इसके नशे में इतने चूर हो जाते हैं कि हमें कभी पता ही नहीं चलता है कि यह ‘ मैं ’ कब हमें अपनों से दूर करता जा रहा है। हमारे शब्दों, हमारे व्यवहार, हमारे कार्यकलाप से यह हमारे अपनों को काफ़ी दूर से ही नज़र आने लगता है और यह दूरी बनी ही रहती है।
दूसरा पहाड़ है दोस्तों, पैसा और संसाधनों को इकट्ठा करने की हमारी प्रवृति। कई बार हम अपनी पहचान अपने पास उपलब्ध संसाधनों में खोजने लगते हैं और उसे ही सफलता का पैमाना बना लेंगे हैं। शुरुआत में तो यह अच्छा लगता है लेकिन दोस्तों जल्द ही एहसास होता है कि इसने भी दिलों में दूरी बढ़ा दी है।
दोस्तों जैसा मैंने पहले भी आपको बताया था कि हम अपने जीवन में तीन बार मरते हैं, पहली बार खुद और परिवार की नज़रों में, दूसरी बार शारीरिक रूप से और तीसरी बार जब आपको जानने वाला अंतिम शख़्स भी इस दुनिया से चला जाता है तब।
लेकिन दोस्तों अगर आप अमर होना चाहते हैं तो कुछ ऐसा कीजिए कि आपको जानने वाला अंतिम शख़्स इस दुनिया में हमेशा बना रहे। यह तभी सम्भव हो सकता है जब आप ‘ मैं ’ और ‘ मेरा ’ को मिटाकर, अपने और अपने लोगों के बीच की खाई को पाट कर समाज की बेहतरी के लिए कार्य करें। हर पल लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com